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दिल्ली में अंग दान की संख्या में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी

नई दिल्ली, 25 जुलाई (सक्षम भारत)।

-जागरुकता के लिए लीडर्स-सेलिब्रिटी की भागीदारी जरूरी

देश की राजधानी दिल्ली में वर्ष 2018 के दौरान ब्रेन-डेड मरीजों के अंग दान की संख्या में 50 प्रतिशत से ज्यादा कमी आ गई थी। महाराष्ट्र (132), तमिलनाडु (137), तेलंगाना (167) और आंध्र प्रदेश (45) को छोड़ें तो राष्ट्रीय राजधानी अपने पड़ोसी संघ शासित क्षेत्र चंडीगढ़ (35) से भी काफी पीछे है। प्रति वर्ष राजधानी में सड़क हादसों द्वारा ब्रेन डेड मरीजों की संख्या भी बढ़ रही है। दिल्ली में हर साल लगभग 1,562 सड़क हादसे होते हैं और बड़ी संख्या में लोगों के सिर पर गहरी चोटें लगने से क्लीनिकल ब्रेन डेथ के मामले सामने आते हैं। दुनिया भर में माना जाता है कि ये बदकिस्मत लोग अंगों के संभावित दानकर्ता हैं। प्रति मिलियन आबादी (10 लाख लोगों पर) पर 0.5 डोनर के साथ भारत, दुनिया में सबसे कम अंग दान की दर वाले देशों में से एक है, अतः स्कूली बच्चों, कॉर्पोरेट्स एवं सेलिब्रिटीज के बीच जागरूकता फैलाने की हर कोशिश से इस दिशा में मदद मिलती है। भारत में स्वास्थ्य और चिकित्सा सुविधाओं में व्यापक सुधार के बावजूद अंगों की अनुपलब्धता के चलते हर साल भारत में 5 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। ऐसे मरीज जिनके जीवित रहने के लिए प्रत्यर्पण ही अंतिम विकल्प है, उनके लिए देश में डोनर्स की भारी कमी कष्टकर हकीकत साबित हो रही है। डायरेक्टर और चेयरमैन डॉ. संदीप अत्तावर की अगुआई में ग्लेनईगल्स ग्लोबल हॉस्पिटल्स की हृदय और फेफड़ा प्रत्यारोपण टीम टीम को पिछले 25 महीने में 196 प्रत्यारोपण का श्रेय जाता है। इस प्रोग्राम का सफलता का मुख्य श्रेय टीम की विशेषज्ञता और क्षमता को जाता है। इसके परिणामस्वरूप यह देश का एकमात्र ऐसा प्रोग्राम है, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर के मानकों का पालन करते हुए बड़ी संख्या में हृदय और फेफड़ों के प्रत्यारोपण करने में और एक साल से अधिक अवधि तक मरीजों को स्वस्थ रखने में सफल हुआ है। डॉ. अत्तावर ने कहा कि विभिन्न कारणों के चलते भारत में स्वास्थ्य के संकेतकों में खासी गिरावट के अलावा हृदय और लंग के फेल होने की वजहों में जेनेटिक असामान्यताएं, इस्केमिक हृदय की बीमारियां, मधुमेह, धूम्रपान की आदत, प्रदूषण, तनाव, खानपान की खराब आदतों, मोटापे के स्तर में बढ़ोतरी और जीवनशैली से जुड़ी दिक्कतें शामिल हैं। नतीजतन, बीमारी के अंतिम चरण में पहुंचने वाले मरीजों की संख्या खासी ज्यादा हो गई है जिनकी जिंदगी प्रत्यारोपण से ही बच सकती है। उन्होंने बताया कि भले ही 2018 के इप्सॉस सर्वे में 74 प्रतिशत भारतीयों ने माना कि वे जरूरतमंदों की मदद के लिए अपने अंगों को दान करने की अनुमति देंगे, लेकिन भारत में मृतक दानदाताओं की दान की दर अभी भी महज 0.34 प्रति मिलियन है, जो स्पेन (36), क्रोएशिया (35), अमेरिका (27.02) जैसे अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी कम है। हृदय प्रत्यारोपण के लिए सालाना 50,000 से ज्यादा और फेफड़े प्रत्यारोपण के लिए सालाना 20,000 से ज्यादा मरीजों की सूची के साथ प्रत्यारोपण के लिए प्रतीक्षा सूची और उपलब्ध अंगों के बीच खासा अंतर है।

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