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अप्रासंगिक होता आंदोलन

-डॉ. दिलीप अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

किसानों ने नाम पर चल रहा आंदोलन अप्रासंगिक होता जा रहा है। दो महीने में यह आंदोलन अपने को किसान हितैषी प्रमाणित करने में भी विफल रहा है। सरकार के साथ हुई ग्यारह दौर की वार्ता में भी यही उजागर हुआ। वार्ता में शामिल कोई भी नेता यह नहीं बता सका कि कृषि कानूनों में किसान हित के प्रतिकूल क्या है। व्यवस्था व प्रक्रिया संबन्धी कुछ सुझाव अवश्य दिए गए, उन्हें सरकार ने स्वीकार भी कर लिया था। लेकिन ऐसा लगा कि आंदोलन के नेताओं की समाधान में कोई दिलचस्पी ही नहीं थी। विपक्षी नेताओं की तरह ही इनके बयान थे।

शुरू से लेकर आजतक एक जैसे स्वर सुनाई दे रहे हैं। कहा जा रहा कि यह काला कानून है, किसनों की जमीन पर देश के दो उद्योगपतियों का कब्जा हो जाएगा। लेकिन यह नहीं बताया जा रहा है कि दो उद्योगपति पूरी जमीन पर कब्जा कैसे कर लेंगे। कृषि कानूनों के किसी भी प्रावधान से ऐसा करना संभव ही नहीं है। इसमें जमीन का नहीं, फसल का उल्लेख है। आंदोलन जमीन के लिए चल रहा है। यह एक बड़ा दुष्प्रचार है। नरेन्द्र मोदी ने ठीक कहा कि जिन्होंने विदेशी कम्पनियों को भारत बुलाया था, वही अब भारतीयों की कम्पनियों पर हमला बोल रहे हैं। इसे सामान्य बात नहीं माना जा सकता। कृषि कानून तो वैकल्पिक है। मतलब किसान कृषि मंडी में उत्पाद बेचे या अन्यत्र, यह विकल्प भी है, उसका अधिकार भी है। इसके विरोध में आंदोलन करना किसान हित में नहीं हो सकता।

यूपीए के मुकाबले इस सरकार ने समर्थन मूल्य बढ़ाया। प्रधानमंत्री ने कहा कि समर्थन मूल्य समाप्त नहीं होगा। कृषि मंडियों को आधुनिक बनाया जा रहा है। किसान कौन-सा विकल्प चुनता है, यह उसकी मर्जी। ऐसे में यह आंदिलन तो शुरू से ही अप्रासंगिक था। वस्तुतः यह आंदोलन किसानों के हित में नहीं बल्कि राजनीतिक कारणों से शुरू किया गया था। इसीलिए समाधान के प्रति अड़ियल रुख अपनाया गया।

गणतंत्र दिवस पर अमर्यादित प्रदर्शन से भी आंदोलन की असलियत सामने आ गई थी। इसके अलावा दोहरे मापदंडों के कारण भी इस आंदोलन की मर्यादा समाप्त हो रही है। इसका आरोप केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लगाया था। उन्होंने संसद में कहा था कि पंजाब में जो कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट में करार तोड़ने पर किसान पर न्यूनतम पांच हजार रुपए जुर्माना जिसे पांच लाख तक बढ़ाया जा सकता है, उसका प्रावधान है। जबकि केंद्र द्वारा लागू कृषि कानूनों में किसान को सजा का प्रावधान नहीं है। यह कांग्रेस का दोहरा चरित्र है। पंजाब की वर्तमान कांग्रेस सरकार ने केंद्र के कृषि कानूनों के विरोध में तो प्रस्ताव पारित किया लेकिन पहले से जो फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट कानून पंजाब में लागू था उसे रद्द नहीं किया। इसमें किसानों के लिए भी सजा का प्रावधान है।

इसी प्रकार कांग्रेस नेतृत्व वाले केंद्र सरकार ने ऐसे ही सुधारों के लिए प्रयास शुरू किए थे। कांग्रेस ने पिछले लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में ऐसे ही सुधारों के वादा किया था। अब दोहरे चरित्र का परिचय दिया जा रहा है। विदेशियों की आंदोलन पर टिप्पणियों के संबन्ध में जो चर्चाएं चल रही है, उनसे भी आंदोलन को लेकर आशंकाएं बढ़ी हैं। बताया जा रहा है कि विदेशी सेलेब्रिटीज के द्वारा किसान आंदोलन के समर्थन में किए गए ट्वीट के बदले में उन्हें बड़ी धनराशि दी गई। ग्रेटा थनबर्ग द्वारा किसान आंदोलन से संबंधित टूलकिट को शेयर किया गया। सवाल उठने लगे तो इसे हटा लिया गया। आंदोलन में लोगों की भावनाओं को भड़काने का प्रयास किया गया। इतना ही नहीं अमेरिका के भीड़ वाले सुपर बाउल लीग दौरान भी इस किसान आंदोलन का सुनियोजित प्रचार किया गया। इसके विज्ञापन में बड़ी धनराशि खर्च की गई। इसे इतिहास का सबसे बड़ा प्रदर्शन बता कर प्रचारित किया गया। बिडम्बना यह कि आन्दोलन के सूत्रधार व समर्थन देने वाले नेताओं ने इन भारत विरोधी हरकतों के खिलाफ बयान तक नहीं दिया।

किसानों की समस्याओं से इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन गरीबों व किसानों की भलाई में वर्तमान सरकार का रिकार्ड यूपीए सरकार से बेहतर है। हर गरीब को पक्का घर उपलब्ध कराने का अभियान चल रहा है। छह वर्षो में करीब ढाई करोड़ आवास गरीब परिवारों को आवास दिए गए। इनमें किसान भी शामिल है। जल जीवन मिशन के शुरू होने के अठारह महीनों के भीतर करीब सवा तीन लाख से अधिक ग्रामीण घरों में पाइप से पेयजल की सुविधा उपलब्ध करायी गयी है। गांवों में इंटरनेट सुविधा के लिए देने की भारत नेट योजना चल रही है।

नीति आयोग की मीटिंग में प्रधानमंत्री ने कहा था कि खाद्य तेलों के आयात में लगभग पैसठ हजार करोड़ रुपये खर्च होते हैं, जिसे किसानों के पास जाना चाहिए। इसी तरह कई कृषि उत्पाद हैं, जिनकी आपूर्ति न केवल देश के लिए बल्कि दुनिया के लिए भी की जा सकती है। इसके लिए आवश्यक है कि सभी राज्य अपनी कृषि जलवायु क्षेत्रीय योजना रणनीति तैयार करें। कृषि से लेकर पशुपालन और मत्स्य पालन तक पर समग्र दृष्टिकोण अपनाया गया है। इससे कोरोना के समय में भी देश के कृषि निर्यात में काफी वृद्धि हुई है। कृषि उत्पादों की बर्बादी को कम करने के लिए भंडारण और प्रसंस्करण पर ध्यान दिया जा रहा है। लाभ बढ़ाने के लिए कच्चे खाद्य पदार्थों की बजाय प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को निर्यात करने पर विचार चल रहा है। नरेंद्र मोदी ने कहा कि कृषि सुधार अपरिहार्य थे। इससे किसानों को आवश्यक आर्थिक संसाधन, बेहतर अवसंरचना और आधुनिक तकनीक प्राप्त करने में सुविधा होगी।

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