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कोरोना की दूसरी लहर और विद्यार्थियों की सेहत

-भूपिंदर सिंह-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

पिछले एक वर्ष से भी अधिक समय से पूरा विश्व कोरोना महामारी के कारण अस्त-व्यस्त चल रहा है कि अब इस वर्ष भी कोरोना से राहत मिलती नजर नहीं आ रही है। हमारे देश के पहली कक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक के करोड़ों विद्यार्थी जहां सुचारू शिक्षण व प्रशिक्षण से महरूम हैं, वहीं पर उनकी सामान्य फिटनेस के लिए जो थोड़े-बहुत कार्यक्रम थे वो भी नहीं हो पा रहे हैं। पांच से लेकर सोलह वर्ष तक के बच्चों व किशोरों को जहां सुचारू फिटनेस कार्यक्रम की बहुत ज्यादा जरूरत होती है, वहीं पर हर उम्र के लिए भी फिटनेस कार्यक्रम की जरूरत है। आज जब घर पर बच्चा नियमित न तो कोई घरेलू काम कर रहा है और न ही शिक्षा संस्थान के पास फिटनेस का भी कोई कार्यक्रम है, ऐसे में हमें पहले मानव के वृद्धि व विकास की प्रक्रिया को ठीक से समझना होगा और फिर एक संतुलित फिटनेस कार्यक्रम लागू करना होगा। इस सबके लिए अभिभावकों का जागरूक होना जरूरी है। इस कॉलम के माध्यम से पहले भी इस विषय पर कई बार लिखा जा चुका है। खेल व शारीरिक क्रियाओं का जिक्र होते ही आम जनमानस की यह धारणा होती है कि खिलाडि़यों की बात हो रही है, मगर वास्तव में हर नागरिक को यदि उम्रभर स्वस्थ व खुशहाल रहना है तो फिटनेस कार्यक्रम बहुत ही जरूरी है। खेल प्रशिक्षक व शारीरिक शिक्षक को यह ज्ञान जहां बहुत ही जरूरी है, वहीं पर हर अभिभावक को भी मानव वृद्धि व विकास के सिद्धांतों को समझना अनिवार्य हो जाता है। संसार के विकसित देशों ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी, चिकित्सा पद्धति व मनोरंजन के क्षेत्र में बहुत ज्यादा प्रगति कर ली है और इन्हें बेहतर बनाने के लिए निरंतर प्रयास हो रहे हैं। आज कौन देश कितना हर क्षेत्र में आगे है, इस बात का पता ओलंपिक में जीते हुए पदकों से चलता है जहां विकसित देश ही अधिक पदक विजेता होते हैं। विकसित देशों ने विज्ञान, प्रौद्योगिकी व चिकित्सा के साथ-साथ खेल क्षेत्र में काफी प्रगति की है।

मानव की वृद्धि व विकास जानने के लिए उसके जन्म से लेकर अंत तक विभिन्न अवस्थाओं का अध्ययन बहुत जरूरी है। जन्म के पहले तीन महीनों तक शिशु बिल्कुल लाचार होता है। वह स्वयं हिलडुल भी नहीं सकता है। फिर वह पलटना सीखता है। आठवें व नौवें महीनों तक वह सहायता से खड़ा होना और चलना सीखता है। शिशु अपने दूसरे व तीसरे वर्ष में चलना, दौड़ना, कूदना, चढ़ना, खैंचना, धक्का देना व फैंकने का काफी धीमी गति से प्रारंभिक स्तर सीख लेता है। यही समय है जब बच्चा बोलना व भाषा को समझने लगता है। बचपन के पहले चार से सात सालों में बच्चों में शारीरिक क्रियाओं को करने की प्रबल इच्छा होती है। साथी बच्चों के साथ सहभागिता सीखता है। पहले सीखी गई क्रियाओं में और सुधार आता है। इसके अतिरिक्त कैचिंग, हापिंग व स्किपिंग आदि कोआर्डिनेशन वाली क्रियाओं को भी करने लग जाता है। बहुत सी शारीरिक क्रियाओं को करने की शुरुआत इस आयु से हो जाती है। जिम्नास्टिक व तैराकी जैसे खेलों का प्रशिक्षण इस उम्र से शुरू हो जाता है। इस अवस्था में बच्चे की सही शारीरिक संरचना व शारीरिक क्षमताओं को विकसित करते हुए सर्वांगीण विकास का ध्यान रखना जरूरी है। बचपन के मध्य भाग जो सात से दस साल तक चलता है, इस समय बच्चे का शारीरिक व मानसिक विकास समान रूप से हो रहा होता है। समाज में क्या घटित हो रहा है, उसे बच्चा बहुत तेजी से सीखता है। इसलिए बच्चे को अच्छा स्कूल चाहिए होता है जो उसके शारीरिक व मानसिक विकास को सही गति दे सके। बच्चे की इस अवस्था में स्ट्रैंथ व स्पीड का विकास तेजी से होता है। बुनियादी इडोरैंस का विकास भी इस उम्र में तेजी से होता है। जब दस से बारह वर्ष तक की अवस्था तक बच्चा पहुंचता है तो उसका बचपन खत्म हो जाता है।

इस अवस्था में बहुत हल्के स्तर पर मगर सुचारू रूप से लगातार खेलों का प्रशिक्षण शुरू कर देना चाहिए क्योंकि बच्चा पहले अधिक ताकतवर हर शारीरिक क्षमता में हो गया होता है। इस उम्र में बच्चा शारीरिक क्रियाओं को बहुत तेजी से सीखता है। स्पीड व समन्वयक क्रियाओं का विकास बच्चे में बहुत तेजी से होता है। इस अवस्था में बच्चे का मानसिक विकास काफी हद तक हर चीज को समझने वाला हो जाता है। परिचर्चा व व्याख्यान से पहले तकनीक को समझ कर फिर आसानी से कार्यनिष्पादन करने वाला हो जाता है। इस उम्र से पहले जो लड़के-लड़कियों के विकास में कोई फर्क नहीं था, अब लड़कियों का शारीरिक विकास लड़कों के मुकाबले तेजी से होता है। बचपन खत्म होते ही किशोरावस्था शुरू हो जाती है। विकसित देशों में लड़कियों में 11 से 12 वर्ष व लड़कों में 12 से 13 वर्ष की आयु में सैक्स मैच्योरिटी शुरू हो जाती है। भारत में यह एक-दो वर्ष बाद आती है। शुरू से लेकर अंत तक किशोरावस्था अगले 6 से 7 वर्ष तक चलती है। किशोरावस्था में शारीरिक क्षमताओं व सलीके में पुनर्गठन होता है। शारीरिक क्षमताओं का तेजी से विकास होता है। हां शारीरिक योग्यताएं जो बचपन में तेजी से विकसित हो रही थीं, अब रफ्तार धीमी कर देती हैं और जो धीमी थी वह किशोरावस्था में तेजी से विकसित होती हैं। शारीरिक विकास भी तेजी से होता है।

लंबाई व वजन भी काफी बढ़ जाते हैं। इससे स्ट्रैंथ में, विशेषकर अधिकतम व विस्फोटक स्ट्रैंथ में काफी सुधार होता है। एनारोविक इडोरैंस में तेजी से विकास होता है। स्पीड योग्यता हालांकि धीमी हो गई होती है, मगर एक्सपलोजिव स्ट्रैंथ व कदमों में हुई बढ़ौत्तरी के कारण स्परिंट में काफी सुधार देखने को मिलता है। इस अवस्था में शारीरिक लोच में कमी आती है, मगर प्रशिक्षण द्वारा उसे स्थिर रखा जाता है। किशोरावस्था के अंत तक लड़कियां लड़कों के मुकाबले अपने श्रेष्ठ प्रदर्शन की ओर तेजी से बढ़ रही होती हैं, मगर लड़कों में हो रहे हार्मोनल बदलाव के कारण लड़के-लड़की के प्रदर्शन में काफी अंतर आ रहा होता है। लड़कियों की युवावस्था 17-18 वर्ष की आयु में शुरू हो जाती है, लड़कों में यह एक-दो वर्ष बाद आती है। इस अवस्था तक जहां फिटनेस कार्यक्रम हर विद्यार्थी को जरूरी है, वहीं पर आगे चल कर सामान्य फिटनेस हर नागरिक के लिए भी जरूरी हो जाती है। इस तरह जब अभिभावक व शिक्षा संस्थान अपने विद्यार्थी बच्चों के वृद्धि व विकास के सिद्धांत को मद्देनजर रख कर उनके फिटनेस प्रशिक्षण व पढ़ाई में तालमेल बिठा कर कार्यक्रम को पूरा करेंगे तो उससे निश्चित ही लोग फिटनेस के महत्व को समझते हुए उम्र भर फिटनेस कार्यक्रम को अपनाने के कारण फिट रह कर देश को उन्नति की राह पर अग्रसर करेंगे।

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