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हमारी मुट्ठियों में चमकीला बाजार

-डा. जयंतीलाल भंडारी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

यकीनन इस समय कोरोना संक्रमण की दूसरी घातक लहर ने देश भर में ई-कॉमर्स की अहमियत और बढ़ा दी है। कोरोना संक्रमण और लॉकडाउन से निर्मित हुई ऑनलाइन खरीददारी देश के कोने-कोने में करोड़ों उपभोक्ताओं की आदत और व्यवहार का अभिन्न अंग बन गई है। ऑनलाइन उत्पादों के कैटलॉग चेक करके मनपसंद वस्तुओं की एक क्लिक पर वापसी की सुविधा के साथ घर के दरवाजे पर डिलिवरी का चमकीला लाभप्रद बाजार ई-कॉमर्स की देन है। देश में ई-कॉमर्स कितनी तेजी से छलांगें लगाकर आगे बढ़ रहा है, इसका अनुमान ई-कॉमर्स से संबंधित कुछ नई रिपोर्टों से लगाया जा सकता है। विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल प्रोफेशनल सर्विसेज फर्म अलवारेज एंड मार्सल इंडिया और सीआईआई इंस्टीट्यूट ऑफ लॉजिस्टिक्स द्वारा तैयार रिपोर्ट 2020 के मुताबिक भारत में ई-कॉमर्स का जो कारोबार वर्ष 2010 में एक अरब डॉलर से भी कम था, वह वर्ष 2019 में 30 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया है और अब 2024 तक 100 अरब डॉलर के पार पहुंच सकता है। उल्लेखनीय है कि अमरीकी कंपनी एफआईएस की ग्लोबल पेमेंट रिपोर्ट 2021 में मौजूदा और फ्यूचर पेमेंट्स ट्रेंड्स के लिए 41 देशों के रुझानों को शामिल किया गया है। इसमें कहा गया है कि भारत में ‘बाय नाउ, पे लेटर’ के चलते ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम दूसरे देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहा है। रेडसीर की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में भारत में ऑनलाइन खरीददारों की संख्या करीब 18.5 करोड़ अनुमानित है। देश में जिस रफ्तार से ई-कॉमर्स बढ़ रहा है, उसी रफ्तार से देश में ई-कॉमर्स के तहत विदेशी निवेश भी तेजी से बढ़ा रहा है। ऐसे में देश में ई-कॉमर्स के चमकीले बाजार तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए दुनियाभर की बड़ी-बड़ी ऑनलाइन कंपनियों के कदम भारत की ओर तेजी से बढ़ते हुए दिखाई दे रहे हैं। गौरतलब है कि देश में ई-कॉमर्स के छलांगें लगाकर बढ़ने के कई कारण हैं। कोरोना संक्रमण की चुनौतियों का सामना कर रहे देश के करोड़ों लोगों के लिए घर बैठे सामान प्राप्त करने की प्रवृत्ति जीवन का अहम भाग बन गई है। विश्व प्रसिद्ध ग्लोबल डेटा एजेंसी स्टेटिस्सा सहित विभिन्न वैश्विक अध्ययन रिपोर्टों के मुताबिक देश में बड़ी संख्या में लोगों का मानना है कि वे अब खरीदी के लिए भीड़भाड़ में नहीं जाएंगे। देश में इंटरनेट मीडिया लोकल सर्कल ने पिछले दिनों देश में 15 मार्च 2021 को विश्व उपभोक्ता अधिकार दिवस के मद्देजनर एक विशेष सर्वे किया था। इसमें यह बात सामने आई कि 49 फीसदी भारतीय अब खरीददारी के लिए ई-कॉमर्स साइट एवं ऐप को वरीयता देने लगे हैं। निःसंदेह देश बढ़ते डिजिटलीकरण, इंटरनेट के उपयोगकर्ताओं की लगातार बढ़ती संख्या, मोबाइल और डेटा पैकेज दोनों का सस्ता होना भी ई-कॉमर्स के बढ़ने के प्रमुख कारण हैं। मोबाइल ब्रॉडबैंड इंडिया ट्रेफिक (एमबीट) इंडेक्स 2021 के मुताबिक डेटा खपत बढ़ने की रफ्तार पूरी दुनिया में सबसे अधिक भारत में है। पिछले वर्ष 2020 में 10 करोड़ नए 4जी उपभोक्ताओं के जुड़ने से देश में 4जी उपभोक्ताओं की संख्या 70 करोड़ से अधिक हो गई है। ट्राई के मुताबिक जनवरी 2021 में भारत में ब्राडबैंड उपयोग करने वालों की संख्या बढ़कर 75.76 करोड़ पहुंच चुकी है।

विश्व प्रसिद्ध रेडसीर कंसल्टिंग की नई रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2019-20 में जो डिजिटल भुगतान बाजार करीब 2162 हजार अरब रुपए का रहा है, वह वर्ष 2025 तक तीन गुना से भी अधिक बढ़कर 7092 हजार अरब रुपए पर पहुंच जाना अनुमानित है। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि छोटे शहरों के उपभोक्ताओं में भी गुणवत्तापूर्ण जिंदगी जीने की महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए ई-शॉपिंग के विभिन्न विकल्पों वाले प्लेटफॉर्मों के उपलब्ध होने के कारण देश में ई-कॉमर्स की रफ्तार बढ़ी है। देश में पहली बार ई-कॉमर्स का इस्तेमाल कर रहे लोगों को खरीददारी में आसानी हो, इसके लिए कुछ ई-कॉमर्स कंपनियों के द्वारा किराना खंड में वॉयस असिस्टेंट और हिंदी, तमिल, तेलुगू और कन्नड़ समेत विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में खरीद की सुविधा शुरू किए जाने से भी ई-कॉमर्स बढ़ा है। जैसे-जैसे देश में ई-कॉमर्स छलांगे लगाकर आगे बढ़ता गया है, वैसे-वैसे देश के विभिन्न औद्योगिक संगठनों और छोटे उद्योग-कारोबारियों की ई-कॉमर्स के प्रति शिकायतें लगातार बढ़ती गई है। इनका कहना है कि विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा गलाकाट प्रतिस्पर्धा करने के लिए अपने मार्केट प्लेटफॉर्मों के संचालन के लिए भारत में लाखों करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। देश के छोटे उद्योग कारोबारियों के द्वारा यह भी कहा गया है कि एमेजॉन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के द्वारा अपने प्लेटफॉर्म पर विक्रेताओं द्वारा गुपचुप तरीके से भारी छूट उपलब्ध कराकर छोटे उद्योग-कारोबार के भविष्य के सामने चिंताएं की लकीरें खींची जा रही हैं। ऐसे में पिछले माह मार्च 2021 में सरकार के द्वारा ई-कॉमर्स से संबंधित विभिन्न पक्षों के साथ नई ई-कॉमर्स नीति को लेकर विचार-विमर्श किया गया है। इसमें देश के उद्योग-कारोबार संगठनों ने यह साफ कह दिया है कि नई ई-कॉमर्स नीति के तहत छोटे उद्यमियों और कारोबारियों के हितों का पूरा ध्यान रखा जाना चाहिए। ई-कॉमर्स की वैश्विक और भारतीय कंपनियों के लिए समान अवसर मुहैया कराए जाने चाहिए ताकि छूट और विशेष बिक्री के जरिए बाजार को बिगाड़ा न जा सके। एमेजॉन और फ्लिपकार्ट सहित 16 कंपनियों के कार्याकारियों ने सरकार को सुझाव दिया है कि ई-कॉमर्स में एफडीआई नीति में स्थायित्व और निरंतरता लाई जाए। उन्होंने यह भी कहा कि ई-कॉमर्स कंपनियों ने देश में एक वैध नीतिगत व्यवस्था के तहत निवेश किया है।

अब देश में नई ई-कॉमर्स नीति तैयार करते समय सरकार का दायित्व है कि ई-कॉमर्स से देश की विकास आकांक्षाएं पूरी हों तथा बाजार भी विफलता और विसंगति से बचा रहे। नई ई-कॉमर्स नीति के तहत सरकार के द्वारा देश के बढ़ते हुए ई-कॉमर्स बाजार में उपभोक्ताओं के हितों और उत्पादों की गुणवत्ता संबंधी शिकायतों के संतोषजनक समाधान के लिए नियामक भी सुनिश्चित किया जाना होगा। सरकार के द्वारा नई ई-कॉमर्स नीति के तहत ऐसी बहुराष्ट्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों पर उपयुक्त नियंत्रण करना होगा जिन्होंने भारत को अपने उत्पादों का डंपिंग ग्राउंड बना दिया है। नई ई-कॉमर्स नीति में ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी कंपनियों के बाजार, बुनियादी ढांचे के साथ-साथ निर्यात बढ़ाए जाने संबंधी रणनीति भी शामिल की जानी होगी। नई ई-कॉमर्स नीति के लिए इन रणनीतिक कदमों के साथ-साथ सरकार के द्वारा देश के छोटे उद्योग-कारोबार को ई-कॉमर्स से जोड़ने के लिए विशेष सुविधाएं सुनिश्चित की जानी होंगी। हम उम्मीद करें कि सरकार देश में छलांगे लगाकर बढ़ रहे ई-कॉमर्स की चमकीली संभावनाओं को मुठ्ठियों में लेने, देश के करोड़ों उपभोक्ताओं की उपभोक्ता संतुष्टी बढ़ाने और अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने के लिए ई-कॉमर्स कंपनियों तथा देश के उद्योग-कारोबार से संबंधित विभिन्न पक्षों के हितों के बीच उपयुक्त समन्वय से नई ई-कॉमर्स नीति को मूर्तरूप देने की डगर पर तेजी से आगे बढ़ेगी।

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