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ऑक्सीजन की किल्लत

-सिद्धार्थ शंकर-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

क्या दिल्ली, क्या मुंबई, हर जगह अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही है। इसी के साथ ऑक्सीजन की किल्लत भी बढ़ रही है। मौतों का सिलसिला बढ़ता जा रहा है। कोई दिन ऐसा नहीं है, जब ऑक्सीजन की कमी से किसी की जान न गई हो। इस समय केंद्र से लेकर सभी राज्यों की सरकारें ऑक्सीजन सप्लाई को दुरुस्त करने में लगी हैं। देश के सक्षम लोगों ने मदद का हाथ बढ़ाया है। दुनिया के कई देशों से मदद पहुंचने लगी है। अमेरिका से लेकर पाकिस्तान तक भारत के साथ खड़े हैं। जिससे जो बन पड़ रहा है, कर रहा है। मगर हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे हैं। मौत का आंकड़ा हर रोज रिकॉर्ड तोडने में लगा है। ऑक्सीजन नहीं मिल पाने से अस्पताल मरीजों को भर्ती नहीं कर रहे हैं। कई अस्पताल अपने यहां बिस्तरों की संख्या इसीलिए कम करते जा रहे हैं क्योंकि ऑक्सीजन नहीं है। निजी अस्पताल रो-रो कर बता रहे हैं कि उनके यहां विकट हालात हैं। भर्ती मरीजों की जान सांसत में है। ऐसे में एक सवाल यह भी है कि जब अस्पताल मरीजों को भर्ती ही नहीं करेंगे तो लोग जाएंगे कहां? इतनी भयंकर अराजकता देश ने कभी देखी हो, याद नहीं पड़ता। हालात बता रहे हैं कि सरकारें पूरी तरह से लाचार हो चुकी हैं और लोगों को मरने के लिए छोड़ दिया है। ऐसे में जरूरत है कि अस्पतालों को जहां से, जैसे भी और जिस कीमत पर ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जा सके, करवाई जाए। ऑक्सीजन मुहैया कराने के लिए स्थानीय स्तर पर फौरन कोशिश होती तो अस्पताल एक-एक घंटे की ऑक्सीजन पर नहीं चल रहे होते। हालत यह है कि फिलहाल जितनी भी ऑक्सीजन जहां पहुंच रही है, वह सैंकड़ो किलोमीटर दूर से ही रेल और टैंकरों के जरिए आ रही है। जिन राज्यों में ऑक्सीजन संयंत्र कम हैं, वहां यह संकट ज्यादा गहरा है। कहने को केंद्र ने पिछले दिनों ऑक्सीजन के उत्पादन, आपूर्ति और क्रायोजनिक टैंकरों के आयात के लिए नीतिगत कदम उठाए हैं। लेकिन इनका असर दिखने में तो अभी बहुत समय लग जाएगा। तब तक हालत और भयावह हो जाएंगे। अगर अस्पताल अपने स्तर पर ऑक्सीजन का बंदोबस्त नहीं कर पाए, जैसा कि हो भी रहा है, तो हर पल मरीज दम तोड़ते रहेंगे।
पिछले साल संसद की स्थायी समिति ने ऑक्सीजन और बिस्तरों की संख्या बढ़ाने की जरूरत बताई थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने अस्पतालों में ऑक्सीजन संयंत्र लगाने की योजना को हरी झंडी दी थी। पर दिल्ली जैसे महानगर में ही कितने अस्पतालों में ये संयंत्र लग पाए होंगे, इसका अनुमान मौजूदा अफरातफरी से लगा सकते हैं। क्या इस बात की जांच नहीं होनी चाहिए कि आखिर ऑक्सीजन संयंत्र नहीं लग पाने के लिए जिम्मेदार कौन है? आज सरकारें अदालतों में जाकर आपस में उलझ रही हैं। एक दूसरे पर ठीकरे फोड़ रही हैं। अदालतों में बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन संयंत्र लगाने और अस्पतालों को ऑक्सीजन पहुंचाने की जिम्मेदारी किसकी है और कौन नाकाम रहा। क्या यह वक्त ऑक्सीजन का कोटा तय करने का है? ऑक्सीजन आवंटन की केंद्रीय नीतियों के बारे में अब नए सिरे से सोचने की जरूरत है। कोटा व्यवस्था से काम नहीं चलने वाला। और वैसे भी कम से कम जीवन का तो कोई कोटा तय नहीं हो सकता। वरना लोग सिर्फ इसलिए मरते रहेंगे कि सरकार पर्याप्त ऑक्सीजन का बंदोबस्त कर पाने में नाकाम रही।

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