
-डॉ.शंकर सुवन सिंह-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
देश संकट में है। कोविड-19 महामारी से देश जूझ रहा है। देश राजनीति का दंश झेल रहा है। देश के लोग सरकार से आशा लगाए बैठे थे की सरकार उनकी जान बचाएगी। जान बचाना तो दूर नेताओं को लोगों की चीख पुकार तक नहीं सुनाई दी। शमशान में जलती लाशें,कब्रिस्तान में दफन होते लोग,होम आइसोलेशन में मरते लोग,अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडर की कमी से मरते लोग,देश के प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर दिया है। देश के प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय आपदा के समय चुनाव क्यों नजर आया ? मरते लोग क्यों नहीं नजर आए ? बी.जे.पी. का सत्ता मोह चरम सीमा पर है। कोई भी सत्ता,जनता तय करती है। जनता ने बी.जे.पी. को सत्ता दी। इस सत्ता ने कोविड-19 महामारी के दौरान जनता को मरने के लिए छोड़ दिया। चुनाव कराने को लेकर सत्ता के लोभियों को मौतों की चीख पुकार भी न रोक पाई। महामारी में लोग मर रहे है और सरकार को चुनाव की पड़ी थी। इसी सन्दर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग पर हत्या का मुकदमा चलाने की बात कही थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने महामारी के संक्रमण को देखते हुए उत्तर प्रदेश सरकार को लॉक डाउन लगाने की नसीहत दी थी पर सरकार ने उसको सिरे से तुरंत खारिज कर दिया था। यह घटना सरकार के तानाशाही रवैय्ये को चरितार्थ करती है। बाद में कुछ दिनों के लिए जरूर लॉक डाउन लगाया गया। ये लॉक डाउन लगाने का एहसास सरकार को तब हुआ जब उनके विधायक,नेता,सांसद,मंत्री आदि संक्रमण के चलते गोलोकवासी होने लगे। जो लोग महामारी के दौरान सरकारी अव्यवस्था के कारण संक्रमण के दौरान जान गावं बैठे उनके प्रति मेरी भाव पूर्ण श्रद्धांजलि। बी.जे.पी. सरकार हाई कोर्ट के विचार को पहले मान लेती तो सरकार की इज्जत घट जाती क्या ? ये भी तो अदालत की अवमाना जैसा रवैय्या था। सरकारी रवैय्ये से हर आदमी डरा,सहमा भयभीत दिखाई पड़ता है। चुनाव आयोग में बैठे अधिकारी सत्ता लोभी नेताओं के मकड़ जाल में फंस चुके है। महामारी के दौरान मौतों का आंकड़ा बी.जे.पी. के सत्ता मोह को चरितार्थ करता है। सत्ता का मोह बी.जे.पी. का मुख्य उदेश्य हो चुका है। मोह अर्थात जो है उसे पकड़े रहना। जो है वो कहीं छूट न जाए इसका निरंतर भय बना रहता है। बी.जे.पी. का सत्ता लोभ सर चढ़ कर बोल रहा है। लोभी अर्थात जो नहीं है उसको पाने की लालसा करना। मोह,लोभ की छाया(परछाई) है। इसी मोह और लोभ ने राष्ट्रीय आपदा जैसे दौर में भी बी.जे.पी. को चुनाव करवाने से न रोक पाई। आज इसका खामिआजा जनता कोरोना से ग्रसित होकर या कोरोना बीमारी से जान गवां कर भुगत रही है। 4 लाख से भी ज्यादा लोग महामारी की चपेट में आ चुके है। जनता मर रही है। लोग चीख -चिल्ला रहे है। शमशान में मृत परिजनों के आंसुओं का सैलाब है। कब्रिस्तान में शवों के कतार है। मौत पर राजनीति करने वालों सुधर जाओ। ये कोविड-19 महामारी नाम,पता,पद,पूछकर चपेट में ले रही है ऐसा बिलकुल नहीं है। सरकार को मोह और लोभ के भ्रम से बाहर आ जाना चाहिए। चुनाव के दौरान खूब भीड़ इकट्ठा की गई। इस भीड़ से कोरोना विस्फोट हुआ। कोरोना विस्फोट से आज सारा भारत जूझ रहा है। भीड़ इकठ्ठा करने वाले,भीड़ में जाने वाले,चुनाव प्रचार करने वाले,चुनाव करवाने वाले ये सभी हत्या के दोषी है। अब तो ऐसा लगने लगा है – ‘मुर्दाओं की बस्ती में,जिंदगी तरसती है। यहां हर एक चीज, जीवन से सस्ती है। ‘ कहने का तात्पर्य यह है कि शमशान/कब्रिस्तान में लाशों का ढेर देखकर ऐसा लगता है जैसे कि जिंदगी कुछ नहीं है,जिंदगी जीने के लिए तरस रही है। इस संसार में हर एक चीज जीवन से सस्ती लगने लगी है पर जीवन बहुत ही मंहगा लगने लगा है। जिधर देखो जीने के लिए ऑक्सीजन सिलिंडर,दवाई,हॉस्पिटल,बेड आदि की जरुरत पड़ने लगी है। वाकई में जीवन बहुत मंहगा लगने लगा है। यह देश महामारी के चलते एक अँधेरी गुफा में जा चुका है। लाशें,मौते,बढ़ती चली जा रही है। पांच राज्यों के साथ बंगाल (छह विधान सभा) राज्यों में चुनाव परिणाम आने के बाद पार्टियों की सारी नौटंकी,नाटक,शोर,नारे बंद हो गए। इस देश ने, इस देश की कई परिस्थितियां देखीं,पर इस देश ने संसाधनों की कमी से होने वाली मौतों का ये आंकड़ा कभी नहीं देखा था। भारत में ट्रम्प के आने से लेकर आज तक सरकार को होश नहीं आया। प्रधानमंत्री कोरोना को नजर अंदाज कर 7 मार्च, 18 मार्च,20 मार्च,21 मार्च,24 मार्च को बंगाल में चुनाव प्रचार कर रहे थे। अप्रैल माह में देश के प्रधानमत्री,गृह मंत्री ने 50 से ज्यादा रैली और रोड शो किया। देश में 2 अप्रैल को 714,3 अप्रैल को 513,6 अप्रैल को 630,10 अप्रैल को 849,12 अप्रैल 879,17 अप्रैल 1600 लोगो की मौत कोरोना की चपेट में आने से हुई। फिर भी प्रधानमंत्री बंगाल में इन तारीखों को चुनाव प्रचार करते रहे। 23 अप्रैल को और उसके बाद वर्चुअल रैली करते है। देश में 23 अप्रैल को 2624 लोगो की मौत कोरोना महामारी से होती है। उसके बावजूद चुनाव पर पूरा फोकस किया जाता है। कोरोना संक्रमण के चलते चुनाव की तारीख को टाला जा सकता था क्योंकि चुनाव तो कभी भी कराए जा सकते थे पर जिनके परिवार के परिवार कोरोना के चलते खत्म हो गए,क्या उनको दुबारा लाया जा सकता है ? कभी नहीं। केरल राज्य में कोविड महामारी से बचने के लिए जो रुख अख्तियार किया गया उससे केंद्र सरकार को सिखने की जरुरत है। केरल में वामपंथयों की सरकार है और वहाँ विकास असली है नकली नहीं। एक लाइन में कहूँ तो वामपंथ वो विचारधारा है जो बदलाव मे विश्वास करती है ये लोग सामाजिक समानता,लैंगिक समानता,मानवता,धर्म-निर्पेक्षता आदि की बात करते हैं। अभी भी वक्त है कि सरकार को स्थिति सम्हाल लेनी चाहिए। एक कहावत है – दुर्घटना से देर भली। चुनाव में देरी कर लेते तो कोरोना विस्फोट की दुर्घटना से बचा जा सकता था।