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मेहुल चोकसीः पहले शह-मात अब अदालत में दो-दो हाथ

-ऋतुपर्ण दवे-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

छक-छककर दाना चुगने के बाद कैद के डर से सरहदों के पार जा चुकी चिड़िया पराए हाथों पकड़ तो ली गई लेकिन उसे अपने पिंजरे में कैद करने की हसरत फिलहाल अधूरी है। मेहुल चोकसी के भारत प्रत्यार्पण की राह कठिन होती जा रही है। कानूनी पेचीदगियां सिर्फ हमारे देश में ही नहीं होती, डॉमिनिका में भी उसे यही फायदा मिला। उसके वकीलों ने उच्च न्यायालय में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दाखिल की तो निचली अदालत से डॉमिनिकन कानून में गिरफ्तार व्यक्ति को कानूनी या गैरकानूनी तरीके से हिरासत में बंदी बनाने और अदालत में पेश करने व जमानत देने की गुहार लगाई। मसकद कानूनी उलझन व तुरंत भारत आने से बचना था।

भारतीय बैंक घोटाले के सबसे बड़े घोटालेबाज मेहुल चोकसी और उसके भांजे नीरव मोदी पर 13, 578 करोड़ रुपयों की बैंक धोखाधड़ी के आरोप हैं जिसमें 11, 380 करोड़ रुपयों के फर्जी और बेजा लेने-देन हैं। पीएनबी बैंक घोटाला 7 साल चलता रहा किसी को भनक तक नहीं लगी। भागने से पहले ही मेहुल ने 2017 में पूरी व्यूह रचना कर ली थी। पहले अपने कथित पासपोर्ट नंबर जेड 3396732 को कैंसिल्ड बुक्स के साथ जमा कर नागरिकता छोड़ने के लिए 177 अमेरिकी डॉलर का ड्राफ्ट भी जमा कराया और नागरिकता छोड़ने वाले फार्म में नया पता मेहुल चोकसी, जौली हार्बर सेंट मार्कस एंटीगुआ लिखाया। जैसे ही घोटाले की पर्ते खुलने को आईं, उसके चुपचाप 4 जनवरी 2018 एंटीगुआ फुर्र होने की बात सामने आई। अब कूटनीतिक प्रयास या अन्य जो भी कारण हों, एंटीगुआ से 72,000 लोगों की आबादी वाले एक छोटे से आइसलैंड डॉमिनिका मई के आखिरी हफ्ते कैसे और क्यों पहुंचा रहस्य ही है। कहते हैं यहां से क्यूबा जाने की फिराक में था। शरीर पर चोट, मिस्ट्री गर्ल का नाम, भगाने में आरोप के साथ कई किस्से और पेंच हैं।
दरअसल एंटीगुआ और भारत के बीच प्रत्यर्पण संधि नहीं है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ की भ्रष्टाचार निरोधी संयुक्त राष्ट्र संधि (यूएनसीएसी) पर भारत और एंटीगुआ ने सहमति जताते हुए हस्ताक्षर किए हैं। शायद इसी के तहत भारत वापसी का डर हो। जबकि डॉमिनिका के साथ भारत की प्रत्यर्पण संधि नहीं है। उधर एंटीगुआ के प्रधानमंत्री गैस्टन ब्राउन का कहना कि उनका देश मेहुल चोकसी को स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि उसने द्वीप से जाकर बड़ी गलती की है। डोमिनिका भी हमारे साथ सहयोग कर रहा है। इधर भारत से स्पेशल प्लेन लेकर 14 घण्टे का सफर कर तमाम अधिकारी व दूसरे डिप्लोमेट मेहुल को लेने भी जा पहुंचे लेकिन डॉमिनिका की अदालत और कानूनी बंदिशों ने पानी फेर दिया।

डॉमिनिका में मेहुल पर दो मामले चल रहे हैं। पहला उसकी जमानत को लेकर मजिस्ट्रेट की अदालत में है जिसे बीते 3 जून को खारिज किया गया जिसकी अगली सुनवाई 14 जून को होगी। इसमें वह जमानत खातिर नियमानुसार जुर्माना भी भरने को तैयार था। दलील थी कि उसे जबरन अपहरण कर उठाया गया है। वहीं दूसरा मामला हाईकोर्ट में है जहां तय होगा कि वह डॉमिनिका वैध या अवैध कैसे पहुंचा? किस पर फैसला पहले आता है यह तो जज पर निर्भर है। चाहे तो निचली अदालत के फैसले का इंतजार किए गए बगैर फैसला दें या फिर उसका इंतजार करें। जानकार मानते हैं कि इसी दांव-पेंच में मेहुल चोकसी अंदाजन एक महीने वहां पुलिस हिरासत में रहेगा।

मेहुल ने 2017 में ही कैरेबियाई देश एंटीगुआ और बारबुडा की नागरिकता ले ली थी। आर्थिक रूप से कमजोर कुछ देश नागरिकता बेचते हैं। मेहुल जैसे अपराधियों ने इसका फायदा उठाया। एंटीगुआ, ग्रेनेडा, माल्टा, नीदरलैंड्स और स्पेन इसीलिए अमीर निवेशकों के आकर्षण का केन्द्र हैं तथा प्रत्यक्ष निवेश के जरिए नागरिकता बेच रहे हैं। बाहरी अमीर निवेशकों के लिए कई प्रस्ताव बना रखे हैं। एंटीगुआ में 2013 में नागरिकता निवेश कार्यक्रम (सीआईपी) की शुरुआत हुई। नागरिकता हासिल करने हेतु पहले एंटीगुआ के नेशनल डेवलपमेंट फंड में एक लाख अमेरिकी डॉलर का दान। दूसरा, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्ट इंडीज में डेढ़ लाख अमेरिकी डॉलर का दान। तीसरा, सरकारी इजाजत वाले रियल एस्टेट में दो लाख अमेरिकी डॉलर का निवेश। चैथा, नागरिकता पाने के खातिर तय किसी व्यवसाय में डेढ़ लाख अमेरिकी डॉलर का निवेश जरूरी होगा। मेहुल ने सभी पूरा करते हुए 2017 में ही नागिरकता ले ली थी। ऐसे देशों के बारे में अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को सोचना होगा।

भारत में धोखाधड़ी के ज्यादातर मामले भारतीय स्टेट बैंक, एचडीएफसी बैंक और आईसीआईसीआई बैंक में दिखे। आंकड़ों के मुताबिक, पिछले 11 सालों में 2.05 लाख करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 53,334 मामले दर्ज किए गए थे। 70 से ज्यादा विदेश भाग गए। 27 की सूची तो जनवरी 2019 में लोकसभा में बताई गई। एक रिसर्च से पता चला है कि चाहे छोटी धोखाधड़ी हो या बड़ी, दोनों में सिस्टम की कमजोरियों से अनुचित लाभ उठाया जाता है। इधर आर्थिक अपराधियों को सख्ती से रोकने, उनकी संपत्तियां जब्त करने, दण्डित करने के लिहाज से ही भारतीय भगोड़ा आर्थिक अपराधी कानून 2018 भी बना लेकिन उसके बाद भी अपराध थम नहीं रहे हैं। जबकि दूसरी ओर रिजर्व बैंक के पास धोखाधड़ी से बचने खातिर प्रारंभिक चेतावनी संकेत यानी ईडब्ल्यूएस प्रणाली मौजूद है। लेकिन जैसा कि नीरव मोदी मामले में हुआ, बैंक हमेशा इसका फायदा नहीं उठा पाते हैं? ज्यादातर मामले सरकार के स्वामित्व वाले बैंकों में जोखिम से निपटने की खराब कार्यप्रणाली, कुप्रबंधन तथा अप्रभावी इंटरनल ऑडिट से होते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियों और बैंक लोन विभाग के उच्चाधिकारियों की मिलीभगत भी होती है। जाहिर है आंकड़ों में धोखाधड़ी करने वाला तीसरा पक्ष जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंट, वकील, ऑडिटर्स और रेटिंग एजेंसी पर भी कड़ी निगाहें व संलिप्तता पर कठोर से कठोर सजा जरूरी हैं। कह सकते हैं कि संगठित और साजिशन आर्थिक अपराध रोकने के लिए पूरे तंत्र पर नकेल कसनी होगी। कानून का कागज में होना नहीं हकीकत में असर भी दिखना चाहिए तभी यह सब रुक पाएगा। शायद रामायण में भी इसीलिए कहा गया है कि “विनय न मानत जलधि जड़, गये तीन दिन बीत. बोले राम सकोप तब, बिन भय होय न प्रीत।”

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