EducationPolitics

सूर्योपासना, आस्था, प्रकृति, स्वच्छता व प्राचीन संस्कृति के संगम का महापर्व है ‘छठ पूजा’

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

दुनिया में भारत की एक निराली पहचान है विदेशी लोग भारत को उत्सवों का देश कहते हैं, क्योंकि यहां पर सेलिब्रेशन करने के पल-पल में बहाने ढूंढें जाते है। वैसे भी हमारा प्यारा देश भारत दुनिया के सबसे प्राचीन धर्म ‘सनातन धर्म’ के विभिन्न त्योहारों का देश है, हम लोग विकट से विकट परिस्थितियों में भी पूर्ण हर्षोल्लास के साथ अपने पूजा-पाठ व उत्सवों का आनंद लेते हैं। पिछ़ले पूरे हफ्ते दीपावली के पंच दिवसीय पावन पर्व को इस वर्ष कोरोना से राहत मिलने के चलते सभी देशवासियों ने धूमधाम पूर्ण माहौल में हर्षोल्लास के साथ मनाया था। अब सूर्योपासना व प्रकृति पूजा के महापर्व ‘छठ’ की बड़ी धूमधाम से मनाने की तैयारी हो गयी हैं, हालांकि पहले ‘छठ पूजा’ बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनायी जाती थी, लेकिन अब इसका दायरा बढ़कर पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी हो गया है, आज इस त्योहार से देश-विदेश के करोड़ों लोगों की आस्थाएं जुड़ी हुई हैं।

इस पर्व में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता है, इस वर्ष ‘छठ पूजा’ का चार दिवसीय महापर्व कार्तिक शुक्ल चतुर्थी यानी 8 नवंबर 2021 सोमवार के दिन ‘नहाय खाय’ से शुरू हो रहा है और यह कार्तिक शुक्ल सप्तमी यानी 11 नवंबर गुरुवार के दिन उगते सूर्य को अर्ध्य देने के बाद पूर्ण होगा।

सूर्योपासना का यह ‘छठ पूजा’ का महापर्व भगवान सूर्य, उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा, प्रकृति, जल, वायु और भगवान सूर्य की बहन छठी मैया को विशेष रूप से समर्पित है। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ‘छठी माता’ को भगवान सूर्य की बहन माना जाता है। हमारी पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठी मैया संतानों की रक्षा करती हैं और उनको दीर्घायु प्रदान करती हैं, इसलिए ही ‘छठ मैया’ को प्रसन्न करने के लिए ‘छठ पूजा’ का उपवास पूर्ण विधि-विधान, सात्विकता व स्वच्छता के साथ रखा जाता है। ‘छठ पूजा’ के इस चार दिवसीय पावन उत्सव की शुरुआत कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन ‘नहाय खाय’ से होती है,इस दिन उपवास रखने वालें लोग केवल लौकी और चावल का आहार ग्रहण करते हैं। दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन ‘खरना’ होता है, इस दिन लोग उपवास रखकर शाम को गन्ने के रस की खीर का सेवन करते हैं, इसके पश्चात उपवास की बेहद कठिन परीक्षा शुरू होती है सप्तमी को उपवास खोलने तक कुछ भी खाना व पीना वर्जित होता है। वहीं तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी होने के चलते ‘छठ पूजा’ की विशेष विधान के साथ पूजा अर्चना की जाती है, इस दिन ‘छठ पर्व’ के विशेष प्रसाद में ‘ठेकुवा’ पकवान को तैयार किया जाता है और उपवास रखने वालें लोग स्नान करके जल में खड़ें होकर संध्याकाल में अस्त होते भगवान सूर्य की आराधना करके उनको अर्घ्य देते हैं, साथ में विशेष प्रकार का पकवान ‘ठेकुवा’ और मौसमी फल चढ़ाते हैं, इस दिन ‘छठ पूजा’ घाटों पर या जहां जल में खड़े होकर पूजा करने की स्थिति हो वहां पर की जाती है, इन सभी जगहों पर भीड़भाड़ के चलते मेला लगा रहता है। चैथे दिन यानि कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी के अंतिम दिन उपवास करने वालें लोग सूर्योदय से पहले स्नान करके अरुणोदय तक जल में खड़े होकर सूर्योपासना करते हैं और उगते हुए भगवान सूर्य को अर्ध्य देकर उनकी पूजा-आराधना करते हैं, इसके बाद उपवास करने वालें लोग कच्चे दूध और ‘छठी माता’ के प्रसाद को खाकर अपने व्रत का समापन करते हैं। इसके साथ ही कार्तिक शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन ‘छठ पूजा’ के महापर्व का पूर्ण उत्साह हर्षोल्लास के माहौल में समापन हो जाता है, आजकल कुछ जगह तो इस अवसर पर जमकर आतिशबाजी तक की जाने लगी है।

आदिकाल से चली आ रही पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ‘छठ पर्व’ की शुरुआत महाभारत काल में सबसे पहले सूर्य पुत्र कर्ण ने भगवान सूर्य की पूजा करके की थी। कर्ण भगवान सूर्य के अनन्य भक्त थे और वह रोजना कमर तक जल में खड़े होकर घंटों भगवान सूर्य की आराधना करके उनको अर्घ्य देते थे, ऐसा माना जाता है कि वह भगवान सूर्य की कृपा से ही महान योद्धा बने थे। आज भी ‘छठ पूजा’ में अर्घ्य की यही प्राचीन परंपरा प्रचलित है। छठ पर्व के बारे में एक कथा और प्रचलित है, इसके अनुसार जब पांडुपुत्र पांडव अपना सारा राजपाठ दुर्योधन के साथ जुए में हार गए थे, उस समय पांडवों के लिए उनकी पत्नी दौपदी ने छठ का व्रत रखा था और इस व्रत से उनकी मनोकामनाएं पूर्ण हो गयी थी, पांडवों को अपना राजपाठ वापस मिल गया था। इन प्राचीन पौराणिक मान्यताओं के चलते ही ‘छठ पूजा’ को बेहद प्राचीन माना जाता है।

वैसे भी ज्योतिषी गणना के अनुसार कार्तिक मास में सूर्य अपनी नीच राशि में होता है, इसलिए सूर्य देव की विशेष उपासना की जाती है ताकि लोगों को स्वास्थ्य की समस्याएं परेशान ना करें, वहीं षष्ठी तिथि का सम्बन्ध संतान की आयु से होता है, इसलिए सूर्य देव और षष्ठी की पूजा से संतान प्राप्ति और उसकी आयु रक्षा दोनों हो जाती है। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिन लोगों को संतान न हो रही हो या संतान की पैदा होकर बार-बार मृत्यु हो जाती हो, ऐसे लोगों को ‘छठ पूजा’ के इस व्रत से आश्चर्यजनक अदभुत लाभ होता है, अगर संतान पक्ष से कष्ट हो तो भी यह व्रत लाभदायक होता है, अगर कुष्ठ रोग या पाचन तंत्र की कोई गंभीर समस्या हो तो भी इस व्रत को रखना शुभ होता है, जिन लोगों की कुंडली में सूर्य की स्थिति ख़राब होती है और राज्य पक्ष से समस्या होती है ऐसे लोगों को भी इस व्रत को करने से लाभ होता है। वैसे वैज्ञानिक आधार की बात करें तो इस माह में सूर्य उपासना से हम भविष्य में अपनी ऊर्जा और स्वास्थ्य का बेहतर स्तर बनाए रख सकते हैं। यहां आपको बता दें कि ‘छठ पूजा’ का व्रत लिंग-विशिष्ट त्यौहार नहीं है और इस व्रत को स्त्री, पुरुष, बुजुर्ग व जवान सभी लोग रख सकते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker