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क्या हो चुकी है ‘खदेड़ा होबे’ की शुरुआत?

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

समाजवादी पार्टी नेता व उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के समीप संडीला कस्बे के सागरगढ़ी झावर में गत 28 नवम्बर को एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुये कहा था कि जिस तरह पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने ‘खेला होबे’ का नारा दिया था उसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश में सन् 2022 के चुनावों में भाजपा के लिए ‘खदेड़ा होबे’ का नारा दिया गया है। उधर उत्तर प्रदेश सहित विभिन्न राज्यों से अनेक बड़े नेताओं का भाजपा से मोह भंग होना, मंत्री पद त्यागना और इनमें से अनेक नेताओं का समाजवादी पार्टी की शरण में जाना और इन सबसे भी महत्वपूर्ण विभिन्न क्षेत्रों में भाजपा नेताओं के विरुद्ध उमड़ता जनाक्रोश व इनका निरंतर होने वाला विरोध आखिर किस ओर इशारा कर रहा है?
वैसे तो भाजपा नेताओं के विभिन्न क्षेत्रों से ‘खदेड़े’ जाने की शुरुआत किसान आंदोलन के दौरान उसी समय हो चुकी थी जब भारतीय जनता पार्टी आला कमान की ओर से अपने मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों, सांसदों व विधायकों को यह निर्देश दिये गये थे कि वे किसान आंदोलन से प्रभावित राज्यों व क्षेत्रों में जनता के बीच जाकर तीनों कृषि कानूनों के सकारात्मक पहलुओं को समझायें। इसके बाद पंजाब, हरियाणा, राजस्थान व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अनेक भाजपा नेताओं ने यहां तक कि मुख्यमंत्री, उप मुख्य मंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसदों व विधायकों ने जैसे ही पार्टी आलाकमान के इस निर्देश पर अमल करना शुरू किया उसी समय अधिकांश क्षेत्रों से इन नेताओं के खदेड़े जाने की खबरें आनी शुरू हो चुकी थीं। कई जगह तो कई ‘हाई प्रोफाइल’ नेताओं को किसानों के गुस्से का ऐसा सामना करना पड़ा कि किसी को लुक छुप कर भागना पड़ा, किसी को दीवार कूद कर भागना पड़ा तो किसी को उनके अंगरक्षकों ने अपनी जान पर खेल कर बचाया।
इसी सिलसिले के अंतर्गत केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान, राज्य मंत्री भूपेंद्र सिंह तथा बुढाना के विधायक उमेश मलिक सहित भाजपा के अनेक नेता खाप चैधरियों से मिलने शामली इलाके में पहुंचे थे। शामली के भैंसवाल गांव में स्थानीय लोगों द्वारा इन नेताओं व भाजपा के विरुद्ध नारेबाजी करते हुये इन्हें गांव में घुसने से रोका गया था। ग्रामीणों ने रास्तों में ट्रैक्टर अड़ाकर कई जगह इन नेताओं का काफिला रोक दिया और भाजपा व इनके मंत्रियों के विरुद्ध मुर्दाबाद के नारे लगाए थे। भैंसवाल गांव में खाप चैधरियों ने तो भाजपा प्रतिनिधिमंडल में शामिल नेताओं से मिलने तक से मना कर दिया था। इस तरह का चैतरफा विरोध और ‘खदेड़ा होबे ‘ की वीडीओ वायरल होते देख भाजपा ने पूरी समझदारी का परिचय देते हुए अपना ‘ किसान समझाओ अभियान ‘ उसी समय तत्काल रूप से बंद कर दिया था बल्कि बाद में सरकार ने किसानों को समझाने के बजाये स्वयं में ही ‘समझ पैदा ‘कर इन विवादित कानूनों को ही वापस ले लिया था।
अब कृषि कानून तो सरकार ने जरूर वापस ले लिये परन्तु सरकार व भाजपा किसानों का विश्वास जीत पाने असफल रही है। किसान समझ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने वाले चुनावों के मद्देनजर ही सरकार ने यह कानून वापस लिये हैं। लिहाजा अभी भी किसान जगह जगह भाजपा नेताओं का ‘खदेड़ा ‘ करने में लगे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 58 सीटों पर पहले चरण में 10 फरवरी को मतदान होना है। प्रत्येक पार्टी प्रत्याशी चुनाव प्रचार में जुट गये हैं। चुनाव आयोग ने चूँकि कोरोना महामारी के दृष्टगत बड़ी चुनावी रैलियों, सभाओं व रोड शो पर रोक लगा दी है इसलिये सभी प्रत्याशी मतदाताओं के द्वार द्वार जाकर अपने पक्ष में मतदान करने की अपील कर रहे हैं। मतदाताओं के दरवाजों पर जाकर वोट माँगना भी भाजपा प्रत्याशियों को भारी पड़ रहा है। पिछले दिनों खतौली के भाजपा विधायक विक्रम सैनी अपने चुनाव प्रचार हेतु जब मुनव्वरपुर गांव पहुंचे तो स्थानीय लोगों की भारी भीड़ ने उन्हें घेर लिया। उनके विरोध जमकर नारेबाजी की। विधायक व उनके सहयोगियों द्वारा आक्रोषित ग्रामीणों को समझाने की भी कोशिश की गयी परन्तु ग्रामीण लोग शांत नहीं हुये। कुछ गुस्साये लोगों ने तो गाली गलौच तक की। सुरक्षाकर्मियों ने बमुश्किल उन्हें ग्रामीणों के क्रोध से बचाते हुये गाड़ी में बिठाया। आखिरकार सैनी को अपना प्रचार बीच में ही छोड़कर वापस जाना पड़ा।
इसी प्रकार पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जब प्रत्याशी घोषित होने के बाद शनिवार को पहली बार अपने चुनाव क्षेत्र सिराथू विधानसभा क्षेत्र के गुलामीपुर गांव पहुंचे तो वहां उन्हें महिलाओं के भारी विरोध का सामना करना पड़ा। गांव की महिलाओं ने मौर्य को देखते ही अपने अपने घरों के दरवाजे बंद कर लिए। आक्रोशित महिलाओं ने उनके विरुद्ध जमकर नारेबाजी की और उन्हें घर में प्रवेश तक नहीं करने दिया। इसी प्रकार के समाचार विभिन्न क्षेत्रों से प्राप्त हो रहे हैं। निश्चित रूप से जनता के इस तरह के ‘खदेड़ा अभियान ‘ ने सत्तारूढ़ दल को बेचैन कर दिया है। जनाक्रोश का आलम तो यह है कि यदि इन ‘माननीयों ‘ के साथ सुरक्षा कर्मी न हों और इनमें ‘दुम दबाकर भागने ‘ जैसे ‘गुण ‘ न हों तो किसी तरह की अनहोनी भी घट सकती है। क्या यह हालात इस बात की ओर इशारा नहीं करते कि ‘खदेड़ा होबे ‘ की शुरुआत हो चुकी है?

 

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