
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
रूस और यूक्रेन के बीच छिड़ी जंग को अब दो हफ्ते हो चुके हैं। पिछले 15 दिनों में मानवता को तार-तार करने वाली कई दारुण तस्वीरें दुनिया के सामने आई हैं, फिर भी युद्ध खत्म हो सके, ऐसी सूरत अब तक नहीं बन पाई है। यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लादिमीर जेलेंस्की को शायद यह उम्मीद थी कि रूस के खिलाफ अमेरिका और नाटो देश यूक्रेन के साथ खड़े होंगे। पश्चिमी ताकतों के डर से रूस हमला नहीं करेगा और अगर करता भी है, तब भी उसका मुकाबला करने के लिए नाटो देश खड़े हो जाएंगे। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, अमेरिका और रूस विरोधी यूरोपीय देशों ने रूस की आलोचना करने में जुबानी जमा-खर्च तो बहुत किया, मगर यूक्रेन को किसी तरह की ढाल उपलब्ध नहीं कराई। नतीजा ये हुआ कि यूक्रेन को जान-माल का भारी नुकसान हुआ है।
रूसी हमले से शहर के शहर उजड़ गए, उद्योग-धंधे व्यापार चौपट हो गए हैं और हर ओर अब बर्बादी का मंजर है। युद्ध की तबाही से यूक्रेन अब कब तक उबर पाएगा, किस तरह फिर अपने पैरों पर खड़ा होगा, उसे फिर से जनजीवन सामान्य करने में कौन मदद करेगा और किन शर्तों पर मदद मिलेगी, इन सवालों के जवाब भविष्य के गर्भ में हैं। फिलहाल यूक्रेन की अपील के बाद अमेरिका ने रूस से तेल और गैस आयात पर मंगलवार को प्रतिबंध लगा दिया है। सुरक्षा विशेषज्ञ इस कदम को महत्वपूर्ण बताते हुए मान रहे हैं कि इससे रूस को झुकने पर मजबूर किया जा सकता है। हालांकि अमेरिका की इस सख्ती का रूस पर कोई खास असर तब तक नहीं होगा, जब तक यूरोपीय देश भी रूस पर ऐसा ही प्रतिबंध न लगा दें। अमेरिका के मुकाबले रूस पर यूरोप की ऊर्जा निर्भरता कहीं ज्यादा है।
सऊदी अरब के बाद रूस दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा तेल निर्यातक है। लेकिन अमेरिका उससे थोड़ी मात्रा में ही तेल आयात करता है और वह दूसरा विकल्प आसानी से खोज सकता है। ईरान या वेनेजुएला जैसे देशों से अमेरिका तेल खरीद सकता है। पिछले हफ्ते ही एक अमेरिकी दल वेनेजुएला पहुंचा था, जिससे यह पता चलता है कि अमेरिका ने विकल्पों की संभावनाएं टटोलना शुरु कर दिया है। लेकिन यूरोप के लिए निकट भविष्य में तो ऐसा करना आसान नहीं दिखता। युद्ध शुरू होने के बाद से ही दुनियाभर में तेल की कीमतें आसमान छू रही हैं। अगर रूस से आयात बंद कर दिया जाता है तो उपभोक्ताओं, उद्योगों और वित्तीय बाजारों के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं, जिसका असर अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
रूस पर विरोध या दबाव बनाने के लिए व्यापारिक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं, लेकिन इससे रूस झुकेगा, इसके आसार बहुत नहीं दिखते। मंगलवार को ही अमेरिकी शीतलपेय कंपनी कोका कोला ने भी रूस में अपना व्यापार रोक दिया है। सोवियत संघ के टूटने के बाद बहुराष्ट्रीय कंपनियों को एक बड़े बाजार के रूप में रूस मिला था, लेकिन अभी युद्ध के कारण बहुत सी कंपनियों ने विरोध स्वरूप व्यापार बंद तो कर दिया है, मगर उनके आर्थिक हित कब तक उन्हें ऐसा करने की अनुमति देते हैं, ये देखना होगा। और सबसे बड़ी बात ये है कि क्या इससे यूक्रेन को कोई राहत मिलेगी। फिलहाल ऐसा नहीं दिखता। शायद इसलिए अब राष्ट्रपति जेलेंस्की का रुख बदलता दिख रहा है। अमेरिकी टीवी चैनल एबीसी को दिए एक ख़ास इंटरव्यू में ज़ेलेंस्की ने दोनेत्स्क, लुहांस्क और नाटो पर खुलकर अपनी राय जाहिर की है। गौरतलब है कि नाटो के विस्तार से ही राष्ट्रपति पुतिन नाराज थे और वो नहीं चाहते हैं कि यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बने। यूक्रेन पर हमले की यह एक बड़ी वजह है।
अब तक जेलेंस्की को उम्मीद थी कि रोमानिया, बुल्गारिया, स्लोवाकिया, स्लोवेनिया, लातविया, इस्टोनिया और लिथुआनिया की तरह यूक्रेन भी नाटो का सदस्य बन जाएगा। मगर नाटो के मौजूदा रुख से निराश जेलेंस्की ने अब कहा है कि नाटो हमें स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है, इसके बाद मैं का$फी पहले ही इस सवाल को पीछे छोड़ चुका था। ज़ेलेंस्की ने कहा कि वो ऐसे देश के राष्ट्रपति नहीं बनना चाहते हैं जो घुटनों के बल गिरकर किसी चीज़ की भीख मांग रहा हो। वहीं युद्ध के दो अन्य कारणों क्रीमिया को रूसी क्षेत्र मानना और दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र घोषित करने के मुद्दे पर ज़ेलेंस्की ने कहा कि उनके दरवाज़े बातचीत के लिए पूरी तरह खुले हुए हैं। वहीं राष्ट्रपति पुतिन को भी वास्तविकता भांपने की सलाह देते हुए जेलेंस्की ने कहा कि राष्ट्रपति पुतिन बातचीत शुरू करें। बिना ऑक्सीजन के इन्फ़ॉर्मेशन बबल में रहने की जगह वो बातचीत शुरू करें। वो उस बबल में रह रहे हैं, जहां पर उन्हें हकीकत का पता नहीं चल रहा है।
वहीं रूस ने क्रीमिया को रूसी क्षेत्र और दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित करने के अलावा कहा है कि यूक्रेन अपनी सैन्य कार्रवाई को बंद करे और अपने संविधान में बदलाव करते हुए तटस्थता स्थापित करे। रूसी सरकार के प्रवक्ता दिमित्री पेस्को फने सोमवार को कहा था कि अगर उसकी शर्तों को मान लिया जाता है तो वो यूक्रेन के खिलाफ ‘बिना देरी किए तुरंत’ सैन्य अभियान रोकने के लिए तैयार हैं। यूक्रेन और रूस दोनों का रुख यह संकेत दे रहा है कि युद्ध के नुकसान दोनों पक्षों को समझ आ रहे हैं। कुछ जेलेंस्की झुकने तैयार हैं, कुछ पुतिन को पहल करनी होगी और दोनों देश इस युद्ध को खत्म करें, इसी में दुनिया का भला होगा।