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चर्चाओं के ध्रुवीकरण में आप

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

अपने लिए चुनावी पिच तैयार कर रही आम आदमी पार्टी की मंडी रैली, प्रदेश के राजनीतिक खेल के नियम बदल सकती है। अभी तो लहरें उस झील में उठी हैं, जहां पानी खामोश है। वक्त को मौसम ने सुन लिया तो फिजां भी बदल सकती है। कम से कम आप पहले से रेखांकित और विभाजित मानस को एक नई लय में बांधने की कोशिश कर रही है तथा इसी संदर्भ में मंडी की रैली एक जमावड़ा नहीं, तस्वीर होगी। बेशक इसी दिन भाजपा के स्थापना दिवस के कई शिविर, कई मंच और कई कार्यक्रम शिरकत करेंगे, लेकिन चर्चाओं के धु्रवीकरण में ‘आप’ ने अपनी हस्ती का केंद्र बनाना जरूर शुरू किया है। रैली में अरविंद केजरीवाल का करिश्मा हो सकता है सिर चढ़ कर बोले, लेकिन आम आदमी की पैठ को अभी सबूत नहीं माना जा सकता है। यह दीगर है कि आरंभिक सफर पर निकली पार्टी ने एक वर्ग को मोहित करना शुरू कर लिया है। यह वर्ग छिटके हुए समूहों की ऐसी गोलबंदी है, जो कभी कांग्रेस या कभी भाजपा के पाले में आती-जाती रही है। यह वर्ग खुन्नस की पोटली या निराशा के संदर्भों में कितना घातक होगा, अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन आप जो भी समेटेगी, उससे भाजपा-कांग्रेस को हानि होगी। यहां आप की रैली के समक्ष भाजपा तो सुरक्षा दीवार खड़ी करती हुई दिखाई दे रही है, लेकिन कांग्रेस का एक पांव दिल्ली दरबार और एक हिमाचल के दलदल में फंसा हुआ प्रतीत हो रहा है।

दिल्ली के बाद पंजाब में आम आदमी पार्टी ने जिस कांग्रेस को पीछे धकेला है, उसके सामने पार्टी की तैयारी के ठोस लक्षण फिलहाल रसीद नहीं होते हैं। यहां देखा यह भी गया कि आगामी चुनाव की दीवारों पर जब ‘आप’ अपने इरादे पोत रही है, तो कांग्रेस के नेता एवं पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी शिमला विश्राम के पल गुजार कर लौट गए। किसी को यह मालूम नहीं कि कांग्रेस की प्रदेश इकाई के अध्यक्ष या कार्यकारी अध्यक्ष की चयन प्रक्रिया कब पूरी करेगी। बदलाव की राजनीति के दो खिलाडि़यों यानी ‘भाजपा’ और ‘आप’ के सामने कांग्रेस का वर्तमान कहां कुंद है, यह सवाल अगर जनता भी पूछने या महसूस करने लगी, तो पंजाब, उत्तराखंड व गोवा की परिपाटी एक बार फिर यहां चुनौती दे सकती है। बहरहाल आम आदमी पार्टी के पास ऐसी तख्तियां और ताल्लुक हैं, जो जनता की उम्मीदों में ताजगी भर देते हैं। हिमाचल में एक जमीनी नारा ‘आ गया केजरीवाल’ पैदा हो रहा है और इसके खिलाफ, भाजपा और कांग्रेस को अपने-अपने पक्ष की बड़ी तस्वीर उकेरनी है। सत्तारूढ़ भाजपा इस मामले में माहिर है और उसके पक्ष में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा व मणिपुर का विजय रथ खड़ा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विरासत में पल रही हिमाचल सरकार के लिए केंद्र का बिगुल सहयोगी भूमिका में अपना राग सुनाएगा। ऐसे में कांग्रेस को न केवल दो सरकारों के मॉडल यानी भाजपा और आप की शैली को विफल घोषित करना है, बल्कि इसके सामने अपनी पैरवी का आदर्श भी बताना है। क्या कांग्रेस राजस्थान व छत्तीसगढ़ की अपनी सत्ता के उवाच को हिमाचल की बिसात बना पाएगी या ऐसे मुद्दे खड़े कर देगी, जिनके आगे कंेद्र व दिल्ली सरकारों के हौसले पस्त हो जाएंगे। ‘आप’ की कई राजनीतिक कमजोरियां हैं और उनमें संगठनात्मक ढांचे के अलावा हिमाचल की विशिष्ट शैली को ठीक से पढ़ने की कमी भी हो सकती है।

पंजाब में ‘आप’ की जीत के बाद केजरीवाल के समक्ष हिमाचल के सवाल बदल गए हैं। पंजाब व हरियाणा के बीच चंडीगढ़ राजधानी का प्रश्न जहां तक माहौल को ले जाएगा, वहां हिमाचल के 7.19 फीसदी हिस्से की तलब भी बढ़ेगी। जोगिंद्रनगर की शानन बिजली परियोजना का हिमाचल को हस्तांतरण आने वाले दिनों में चुनावी जंग लड़ेगा। बीबीएन से हिमाचल की प्राप्तियां और इससे जुड़े वित्तीय अधिकारों का सत्य फिर से उजागर हो सकता है। हमारा मानना है कि दिल्ली सहित पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और चंडीगढ़ को लेकर अतीत के संयुक्त पंजाब की एक भावना आज भी तिरोहित है। क्या इस भौगोलिक खंड की क्षेत्रीय संवेदना और समीकरणों को ‘आप’ मांज, भांज या बांध पाएगी। भले ही केजरीवाल की मंडी रैली का उफान पूरे प्रदेश में डंका बजा दे, लेकिन असली इम्तिहान शिमला नगर निगम का चुनाव होगा। क्या ‘आप’ शिमला नगर निगम चुनाव में उतरकर अपने लिए पहली सीढ़ी तैयार करेगी या कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा जोड़कर भानुमती के पिटारे की तरह जादू दिखाने की कोशिश करेगी, यह अभी स्पष्ट होना बाकी है।

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