GlobelNational

राज्यसभा चुनाव में भाजपा-कांग्रेस को ओबीसी हितैषी बताने की चुनौती

भोपाल, 13 मई (वेब/वार्ता)। मध्य प्रदेश में जून माह में राज्यसभा की रिक्त हो रही तीन सीटों के लिए चुनाव होने वाले हैं। इनमें से दो स्थान भाजपा और एक कांग्रेस के खाते में जाना तय है। इन चुनावों के लिए उम्मीदवारों के नामों का चयन कर भाजपा और कांग्रेस अपने को ओबीसी हितैषी बताने की कोशिश कर सकती हैं और यह चुनौती भी है उनके लिए। मध्य प्रदेश के तीन राज्य सभा सांसद — कांग्रेस के विवेक तन्खा और भाजपा के एमजे अकबर और संपतिया उइके का कार्यकाल जून माह में खत्म हो रहा है। इन तीन सीटों के लिए चुनाव होना है। चुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो चुकी है और 31 मई तक नामांकन भरे जाएंगे। कुल मिलाकर 31 से पहले उम्मीदवार का नाम तय करना हेागा।

राज्य में वर्तमान समय में अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण का मामला गरमाया हुआ है। नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में ओबीसी को आरक्षण देने को लेकर कांग्रेस और भाजपा में लंबे अरसे से आरोप-प्रत्यारोप चल रहे हैं। दोनों ही दल ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिए जाने की अरसे से पैरवी करते आ रहे हैं। भाजपा के शासन काल में पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की रिपोर्ट ने ओबीसी को 35 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही। पंचायत और नगरीय निकाय में ओबीसी को आरक्षण देने का मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट सरकार के तर्को से सहमत नहीं हुआ और उसने राज्य में चुनाव बगैर ओबीसी आरक्षण के कराने का फैसला दे दिया। शिवराज सरकार पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने का वादा कर रही है।

अब राज्य में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए चुनाव होना है। दोनों ही दल अपने को ओबीसी वर्ग का बड़ा हितैषी बताते चले आ रहे हैं। ऐसे में सबसे पहले सामने आ रहे राज्यसभा चुनाव में उम्मीदवारी के जरिए राजनीतिक दलों को अपने आप को ओबीसी हितैषी बताने की बड़ी चुनौती है। राज्य में भाजपा के पास पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती पिछड़े वर्ग का बड़ा चेहरा हैं तो कांग्रेस के पास पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव। अब देखना होगा कि क्या भाजपा पिछड़े वर्ग को लुभाने के लिए इस वर्ग से जुड़े व्यक्ति को राज्यसभा का उम्मीदवार बनाती है या फिर अन्य राजनीतिक गणित के आधार पर उम्मीदवार का चयन करती है। यही स्थिति कांग्रेस की है। कांग्रेस यादव को मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेल सकती है। दोनों ही राजनीतिक दल ओबीसी उम्मीदवार बनाकर नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में मतदाता को लुभाने का का दांव चल सकती हैं। इसे नकारा नहीं जा सकता।

 

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker