EducationPolitics

क्या फिर धधक रही है किसान आंदोलन की चिंगारी?

-निर्मल रानी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

सरकार इन दिनों अपने बेलगाम पार्टी प्रवक्ताओं के ज़हरीले बयानों के चलते अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफ़ी शर्मिन्दिगी का सामना कर रही है। साथ ही साथ भारतीय जनता पार्टी शासित विभिन्न राज्यों में सरकार की नयी ‘बुलडोज़र नीति’ के चलते देश के तमाम जाने माने क़ानूनविद यहाँ तक कि कई पूर्व मुख्य न्यायाधीश सरकार द्वारा अब तक सैकड़ों आरोपियों के मकानों को ज़मीं दोज़ करने जैसे ग़ैर क़ानूनी व अमानवीय कृत्य लिये भारी आलोचना कर रहे हैं। वहीं इसी बीच किसान आंदोलन की सुगबुगाहट भी पुनः सुनाई देने लगी है। और इस सुबुगाहट की भनक संयुक्त किसान मोर्चे के कई किसान नेताओं की तरफ़ से तो मिल ही रही है साथ साथ किसानों के अधिकारों के लिये मुखरित होकर बोलने वाले भाजपा नेता व मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयानों से और भी स्पष्ट हो रही है। गत 12 जून (रविवार) को राज्यपाल मलिक ने जयपुर में आयोजित ‘अंतरराष्ट्रीय जाट संसद’ के दौरान हज़ारों जाट नेताओं की मौजूदगी में किसानों के पक्ष में तथा केंद्र सरकार व सरकार हितैषी उद्योगपतियों के विरुद्ध जिन शब्दों का प्रयोग किया उससे तो यहाँ तक स्पष्ट हो गया कि यदि किसान आंदोलन शुरू हुआ तो सतपाल मालिक सरकार के विरुद्ध व किसानों के हक़ में प्रथम पंक्ति में खड़े दिखाई दे सकते हैं। मलिक के अनुसार ‘सरकार पर भरोसा नहीं है और किसानों को दूसरी लड़ाई के लिए तैयार रहना होगा।’ और यह भी कि ‘अगर समय रहते न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क़ानून नहीं बनाया तो किसानों और सरकार के बीच भयंकर लड़ाई होगी।’

राज्यपाल मलिक ने साफ़ कहा कि एमएसपी पर शीघ्र क़ानून नहीं बनने से देश में किसान और सरकार के बीच फिर आरपार होगी। मलिक ने कहा है कि -‘मुझे राज्यपाल के पद की चिंता नहीं है, मैं तो अपना इस्तीफ़ा जेब में साथ लेकर घूमता हूं। मैं हमेशा अन्नदाताओं के साथ हूं। आगामी दिनों में भी पूरी तरह से हर लड़ाई में किसानों के लिए समर्पित रहूंगा। मलिक ने यह भी कहा कि किसानों की फ़सल सस्ते दामों पर ख़रीद कर महंगे दामों में बेचने के लिए पानीपत में बड़ा गोदाम बनाया गया है। डरने की ज़रूरत नहीं है,अडानी समूह के ऐसे गोदाम उखाड़ फेंको। किसानों के साथ मैं भी जेल चलूंगा।’ उन्होंने कहा कि ‘जब तक अडानी-अंबानी पर हमला नहीं होगा तब तक ये नहीं रुकेंगे।’ उन्होंने कहा कि ‘देश के एयरपोर्ट, रेलवे, शिपयार्ड सरकार के दोस्त अडानी को बेचे जा रहे हैं। हमें देश को बिकने से रोकना होगा।’ मलिक ने सवाल किया कि ‘आख़िर जब सब बर्बाद हो रहे हैं तो पीएम मोदी बताएं कि ये लोग कैसे मालदार हो रहे हैं? मलिक ने कहा कि -‘मैं हमेशा दो कमरे के मकान में रहा हूं, यही मेरी ताक़त है। इसलिए मैं पीएम समेत सबसे पंगा ले सकता हूं। ईडी के डर से ध्यान भटकाने की कोशिश की जा रही है।’

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत भी कह चुके हैं कि केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की हितैषी नहीं हैं। इसलिये उन्होंने दिल्ली की जगह लखनऊ में जल्द आंदोलन का ऐलान भी किया है। पिछले दिनों भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चौधरी नरेश टिकैत ने बिजनौर में कहा कि ‘केंद्र और राज्य सरकार ने किसानों को उनकी फ़सलों के वाजिब दाम न देकर अपनी ऐसी छवि बनाई है गोया वह किसानों की हितैषी नहीं बल्कि किसान विरोधी है। उन्होंने कहा कि इस बार आंदोलन दिल्ली की जगह लखनऊ में किया जाएगा। और हरिद्वार में 16 से 18 जून तक चलने वाले राष्ट्रीय चिंतन शिविर में इस आंदोलन की तिथि तय की जाएगी। नरेश टिकैत ने कहा कि किसानों को अपना आंदोलन व संघर्ष और बढ़ाना होगा। किसान जल्दी से अपनी खेती के काम निपटा लें। इस बार आंदोलन दिल्ली की जगह लखनऊ में किया जाएगा।’

उधर एक ताज़ातरीन रहस्योद्घाटन में श्री लंका के एक उच्चाधिकारी सिलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड चेयरमैन एम एम सी फ़र्डिनैंडो ने पब्लिक इंटरप्राइज़ेज़ की संसदीय कमेटी की एक सुनवाई में कहा कि-‘ श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने उन्हें कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी 500 मेगावाट वाले विंड पावर प्रोजेक्ट को अडानी ग्रुप को देने के लिए दवाब बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्री लंका में पावर प्लांट लगाने हेतु अडाणी को ठेका दिये जाने के लिये लंका सरकार से सिफ़ारिश की थी। इस ख़ुलासे के कुछ घंटों बाद ही उस अधिकारी को अपना बयान वापस लेना पड़ा और दो दिन बाद फ़र्डिनैंडो को त्याग पत्र भी देना पड़ा। इसी प्रकार 2018 में राफ़ेल लड़ाकू विमान की फ़्रांस से की गयी विवादित ख़रीद के समय भी यह सवाल उठा था कि राफ़ेल विमानों के रखरखाव आदि का ठेका भारत के सरकारी नवरत्न उपक्रम एच ए एल को देने के बजाय अनिल अम्बानी की नव निर्मित डेसॉल्ट रिलायंस एरोस्पेस लिमिटेड को क्यों दिया गया है। रिलायंस डिफ़ेन्स लिमिटेड और डेसॉल्ट एविएशन अनिल अम्बानी का संयुक्त उपक्रम है। रिलायंस को लड़ाकू विमान बनाने का लाइसेंस भी सरकार द्वारा कथित तौर पर रातों रात दिया गया था। उस समय भी आरोप लगा था कि यह एचएएल जैसी बड़ी और सरकारी नवरत्न कम्पनी के देश में होने के बावजूद एक निजी उद्यमी को लाभ देने का यह सरकार का खुला प्रयास है। ग़ौरतलब है कि एचएएल ही भारत की एकमात्र कम्पनी है जो सैन्य विमान बनाती है।

इसी तरह की ख़बरें ख़ासकर नोट बंदी व जी एस टी से लेकर कोरोना काल तक में जिस तरह भारत में हज़ारों छोटे बड़े कारोबार बंद हुये,करोड़ों लोग बेरोज़गार हुये,नये रोज़गार के अवसर समाप्त हुए ऑटोमोबाइल सहित तमाम विदेशी कंपनियां अपना बोरिया बिस्तर समेट वापस चली गयीं, ऐसे में आख़िर क्या वजह है कि चंद गुजराती उद्योगपतियों विशेषकर अडाणी -अंबानी की ही संपत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती गयी? दूसरी तरफ़ इसी कृषि प्रधान देश का ‘अन्नदाता’ कहा जाने वाला किसान अपने फ़सल की वाजिब क़ीमत की मांग को लेकर दिल्ली द्वार पर एक वर्ष तक ताप्ती धूप,मूसलाधार बारिश और हांड कंपाने वाली सर्दियों में धरने पर बैठा रहा,अपने 600 से अधिक प्रदर्शनकारियों की जानें क़ुर्बान कर दीं, परन्तु उसकी मांगें आजतक पूरी नहीं हो सकीं? निश्चित रूप से इसी तरह की बातें किसानों को इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये बाध्य करती हैं कि यह सरकार किसान विरोधी और विशेषकर गुजराती उद्योगपतियों की हिमायती सरकार है। ऐसे में यह संदेह स्वाभाविक है कि क्या फिर धधक रही है किसान आंदोलन की चिंगारी?

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker