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किसके लिए सत्याग्रह

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

जो लोग मान चुके थे कि कांग्रेस सड़कों पर बिछ कर विरोध-प्रदर्शन नहीं कर सकती, सोमवार को वे हैरान हुए होंगे, क्योंकि देश के करीब 25 राज्यों में कांग्रेस के बड़े-छोटे नेता वातानुकूलित माहौल को छोड़ कर, चिलचिलाती गर्मी में, सड़कों पर उतर आए। लगभग बिछने वाली मुद्रा में विरोध-प्रदर्शन किए। हिरासत में गए और अंततः ‘सत्याग्रह’ का आह्वान किया गया। यह सत्याग्रह किसी राष्ट्रीय समस्या अथवा मुद्दे पर नहीं था, बल्कि कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को मानसिक समर्थन देने और उनका मनोबल बढ़ाने के लिए था। यह साबित हो गया कि कांग्रेस गांधी परिवार की है और उसके लिए ही सत्याग्रह कर सकती है। संभव है कि जिस दिन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) में जवाबतलबी के लिए जाएंगी, उस दिन भी ऐसा ही उग्र और उत्तेजित सत्याग्रह देखने को मिले! आखिर वह तो पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, जबकि राहुल लोकसभा सांसद ही हैं। क्या कांग्रेस और गांधी परिवार में ऐसा आत्मबल है कि सत्याग्रह को किसी निष्कर्ष तक पहुंचाया जा सके? आपको यह भी स्पष्ट कर दें कि यह महात्मा गांधी वाला सत्याग्रह नहीं था। उसकी विरासत और मकसद भी नहीं था।

कांग्रेस भी आज वह कांग्रेस नहीं है, जिसने आज़ादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण और अग्रणी भूमिका निभाई थी। 1969 के बाद जो इंदिरा कांग्रेस सामने आई थी, आज उसका अवशेष ही बची है मौजूदा कांग्रेस। आज की कांग्रेस सिर्फ गांधी परिवार तक ही सीमित है, वही आलाकमान है और सड़कों पर तला-मेली प्रदर्शन करने वाले और चोटिल होने की पीड़ा सहने वाले उस परिवार के ‘प्रजाजन’ हैं। सवाल है कि ईडी ने राहुल गांधी से पूछताछ करने के लिए समन भेजा था, तो कांग्रेस किसके लिए और क्यों सत्याग्रह करने सड़कों पर उतर आई? कांग्रेस ने मुद्रास्फीति, बेरोज़गारी, नूपुर शर्मा प्रकरण, बुलडोजरी विध्वंस, रुपए का अवमूल्यन आदि महत्वपूर्ण मुद्दों पर राष्ट्रीय सत्याग्रह का आह्वान नहीं किया, लेकिन गांधी परिवार की पेशी के मद्देनजर दोनों मुख्यमंत्रियों-अशोक गहलोत और भूपेश बघेल-समेत राज्यसभा में प्रतिपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व मुख्यमंत्रियों, विधायकों, 26 सांसदों और कुल 459 नेताओं ने गिरफ्तारी दी। यही नहीं, सत्याग्रह के नाम पर कांग्रेस ने स्वतंत्रता संघर्ष, त्याग, बलिदान और देश की विरासत तक की दलीलें दीं। सावरकर और गोडसे भी याद किए गए, बेशक नकारात्मक संदर्भों में। क्या सत्याग्रह था-गांधी परिवार को समर्पित? बहरहाल नेशनल हेराल्ड अख़बार चलाने वाली कंपनी, यंग इंडियन कंपनी, करीब 9 करोड़ शेयरों का स्थानांतरण, अख़बार पर 90 करोड़ का कर्ज़, कांग्रेस पार्टी द्वारा ऋण देना और कांग्रेस द्वारा ही कर्ज़ को माफ कर देना, सोनिया-राहुल गांधी के नाम 76 फीसदी शेयर और कुल मिलाकर 2000 करोड़ रुपए की संपत्तियों पर गांधी परिवार का परोक्ष स्वामित्व आदि पर ईडी को जो जांच करनी है, उसे ऐसे सड़कछाप सत्याग्रह के जरिए दबाया अथवा खारिज नहीं किया जा सकता।

इसी केस में दिल्ली उच्च न्यायालय और सर्वोच्च अदालत ने प्रथमद्रष्ट्या ‘आपराधिकता’ पाई थी, गंभीर केस माना था, लिहाजा गांधी परिवार को वहां से राहत नहीं मिल पाई थी। आज कांग्रेस इन मामलों को ‘झूठ’ करार दे रही है। उसका बुनियादी आरोप है कि केंद्र की मोदी सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। राजनीतिक खुन्नस निकाली जा रही है, क्योंकि राहुल गांधी सरकार को बेनकाब करते हैं। सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बुलंद आवाज़ हैं। कांग्रेस ने भी 55 साल इस देश पर राज किया है। यही जांच एजेंसियां उसके मातहत काम करती थीं। क्या पुराने चिट्ठे खोले जाएं कि कांग्रेस सरकारों ने ईडी, सीबीआई, आयकर आदि का कितना दुरुपयोग किया था? ईडी और अन्य जांच एजेंसियों ने 2019 में नेशनल हेराल्ड की 64 संपत्तियों को जब्त किया था। उन पर तो आज तक कोई अदालती सवाल नहीं हैं और न ही कांग्रेस ने कोई सत्याग्रह छेड़ा है। सवाल है कि गांधी परिवार जांच से भयभीत क्यों है? वह क्या छिपाना चाहता है, लिहाजा जांच का सार्वजनिक विरोध किया जा रहा है? क्या गांधी परिवार कानून और संविधान से ऊपर है? क्या यह सत्याग्रह कांग्रेस में नई जान फूंक सकेगा और आम कार्यकर्ता सक्रिय होगा? गांधी परिवार को कई अप्रत्याशित सवालों के जवाब भी देने होंगे।

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