3,000 आदिवासी महिलाएं, जो बीएड धारक और योग्य शिक्षिका हैं, अपनी नौकरी बचाने के लिए सड़कों पर आंदोलन कर रही हैं।
छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ की सड़कों पर जो तस्वीरें दिख रही हैं, वे हर संवेदनशील इंसान को झकझोरने के लिए काफी हैं। राज्य की लगभग 3,000 आदिवासी महिलाएं, जो बीएड धारक और योग्य शिक्षिका हैं, अपनी नौकरी बचाने के लिए सड़कों पर आंदोलन कर रही हैं। इन्हें बिना किसी ठोस कारण के रोजगार से वंचित कर दिया गया है।
ये वही महिलाएं हैं, जिनसे बीजेपी सरकार ने वादा किया था कि शिक्षा से उनका जीवन बदलेगा। लेकिन आज वे सड़क पर हैं—हाथ जोड़कर, आंसुओं के साथ, न्याय की गुहार लगा रही हैं। ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ जैसे नारे अब खोखले लगते हैं, क्योंकि जब ये पढ़ी-लिखी बेटियां अपने अधिकारों के लिए खड़ी होती हैं, तो उनकी आवाज़ को अनसुना कर दिया जाता है।
यह सिर्फ नौकरी का सवाल नहीं है, बल्कि यह उनके आत्मसम्मान, उनके परिवारों की आजीविका, और उनके अस्तित्व का सवाल है। आदिवासी समाज की ये महिलाएं, जो समाज के सबसे वंचित वर्ग से आती हैं, आज खुद को असहाय महसूस कर रही हैं। क्या सरकार और विपक्ष उनके संघर्ष को समझेंगे? क्या उन वादों का कोई मूल्य नहीं, जो उनके साथ किए गए थे?