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मोदी बनाम विपक्षी नीतीश

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

नीतीश कुमार ने 8वीं बार बिहार के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के तुरंत बाद हुंकार भरी कि 2014 में जो आए थे, वे 2024 में नहीं रहेंगे।’ सीधा संकेत प्रधानमंत्री मोदी की ओर है। नीतीश ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुनौती तो नहीं उछाली है, लेकिन जनादेश का अनुमान जताया है। लोकतंत्र में यह स्वतंत्रता भी है, लेकिन कई मायनों में यह अतिशयोक्ति है। हालांकि 2024 में प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी से नीतीश ने फिलहाल ना-नुकर की है। यदि नीतीश के बयान की व्याख्या की जाए, तो यह सूरज को दीपक दिखाने की उच्छृंखल कोशिश है। इसके कई कारण भी हैं, क्योंकि पूरे बिहार ने ही नीतीश को कभी जनादेश नहीं दिया है। तो सवाल है कि बिहार के बाहर, शेष भारत, के राज्य उन्हें जनादेशी समर्थन किस आधार पर देंगे? नीतीश ने विपक्षी दलों और नेताओं के एकजुट होने का आह्वान भी किया है। क्या इसी से विपक्षी एकता और महागठबंधन संभव है? सवाल यह भी है कि विपक्ष ने नीतीश को अपना नेता मानने का बयान तक नहीं दिया है, तो प्रधानमंत्री प्रत्याशी बनाना फिलहाल बहुत दूर की कौड़ी है। भाजपा 15 करोड़ से ज्यादा काडर वाली पार्टी है, उसके आर्थिक संसाधन अद्वितीय हैं, उसे अपरिमित आरएसएस का भी समर्थन हासिल है, लेकिन जनता दल-यू का संगठन भाजपा की तुलना में बेहद बौना है। सब कुछ जनता नहीं करती, चुनाव के बूथों का प्रबंधन भी अनिवार्य है।

फिर भी हम यह नहीं मानते कि प्रधानमंत्री मोदी को कोई भी चुनावी चुनौती नहीं दे सकता, लेकिन उसके लिए दोनों पक्षों की ताकत का आकलन करना भी जरूरी है। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने इसी साल उप्र, उत्तराखंड, गोवा, मणिपुर राज्यों में अपनी सत्ता की पुनरावृत्ति की है। यह कोई सामान्य राजनीतिक उपलब्धि नहीं है। महाराष्ट्र में अघाड़ी सरकार के पतन और उद्धव ठाकरे की शिवसेना को दोफाड़ करने में अहम भूमिका निभाई है। आज वहां शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के साथ भाजपा की सरकार है। यही राजनीति की नैतिकता है! हालांकि पंजाब में आम आदमी पार्टी (आप) को ऐतिहासिक, प्रचंड जनादेश मिला है, लेकिन उसकी राज्य सरकार के खिलाफ अभी से असंतोष पनपने लगा है। ‘आप’ और उसके नेता केजरीवाल को अभी लंबा रास्ता तय करना है। यह भी विपक्ष का एक पराजित पक्ष है। विपक्षी खेमे में बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मई, 2021 में भाजपा पर जो ऐतिहासिक चुनावी जीत हासिल की थी, अब उसकी चमक मद्धिम पडऩे लगी है। उनके मंत्री मोटे घोटालों में गिरफ्त पाए जा रहे हैं। आंच की तपन ममता तक भी पहुंचेगी, इतना तय है। विपक्ष में शरद पवार और चंद्रशेखर राव की अपनी सियासी महत्त्वाकांक्षाएं हैं। वे भी भाजपा के साथ राजनीतिक लड़ाई में फंसे हैं। वे भी अपने राज्यों के बाहर अप्रासंगिक हैं। रही बात कांग्रेस की, तो वह फिलहाल पराजित भाव में है। सभी राज्यों के चुनावों में उसे करारी हार मिलती रही है।

अब उसे देशभर में ‘पदयात्रा’ से ही उम्मीदें हैं। नीतीश किसी भी तरह विपक्ष के सर्वमान्य नेता नहीं आंके गए, क्योंकि वह पहले भी विपक्ष में रहे हैं। चूंकि वह हिंदी पट्टी के प्रमुख विपक्षी नेता हैं और भाजपा की रणनीति को धता बताकर उन्होंने राजद के साथ सत्ता स्थापित की है, सिर्फ यही घटनाक्रम उनकी ताकत है, लेकिन इतने भर से कोई नेता देश का प्रधानमंत्री नहीं चुना जा सकता। यदि लोकसभा में आज भाजपा के अपने 303 सांसद हैं और राज्यसभा में 91 सांसद हैं, तो वे प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति के ही फलितार्थ हैं। जद-यू के 16 लोकसभा सांसद हैं, क्योंकि 2019 का आम चुनाव मोदी के ही नेतृत्व में लड़ा गया था। उससे पहले 2014 के आम चुनाव में जद-यू के हिस्से मात्र 2 सांसद ही आए थे। देश में प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार के खिलाफ मुद्दे और समस्याएं तो हैं, लेकिन प्रधानमंत्री के लिए आज भी सबसे स्वीकार्य नेता मोदी ही हैं, यह कई सर्वेक्षणों से भी सत्यापित हो चुका है। फिलहाल मोदी सरकार की जन-कल्याणकारी योजनाओं का तोड़ न तो नीतीश के पास है और न ही शेष विपक्ष पैदा कर पाया है। बहरहाल 2024 के आम चुनाव अभी 20 माह दूर हैं। विपक्ष पहले तो लामबंद होकर दिखाए, फिर अपने कार्यक्रम देश के सामने रखे, प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ मोहभंग के हालात पैदा करे, तब हम विश्लेषण करेंगे कि देश का अगला प्रधानमंत्री कौन हो सकता है।

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