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‘आप’ के भगत सिंह

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

अद्र्धराज्य दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार करके जेल नहीं भेजा गया। सीबीआई की जांच टीम ने करीब 9 घंटे उनसे पूछताछ की और घर जाने दिया। गिरफ्तारी का कोई एजेंडा भी नहीं था। मुख्यमंत्री केजरीवाल और पार्टी के अन्य नेता फिजूल में ही चिल्ला रहे थे। दिल्ली के कथित शराब घोटाले के संदर्भ में जांच अभी जारी है। सिसोदिया को फिर तलब किया जा सकता है, क्योंकि प्राथमिकी के मुताबिक, वह आरोपित नंबर वन हैं। सिसोदिया को घोटाले से जुड़े सवालों, साक्ष्यों और जांच के सटीक जवाब देने ही होंगे। अलबत्ता अदालत भी उन्हें जेल भेजने का आदेश दे सकती है। जांच से हटकर सिसोदिया ने सीबीआई पर सनसनीखेज और बेहद गंभीर आरोप चस्पा किए हैं। सीबीआई का ‘भाजपाकरण’ करने की नाकाम कोशिश की है। पूछताछ के बाद सिसोदिया ने बाहर आते ही केस और जांच को ‘फर्जी’ करार दिया और आरोप लगाए कि जांच एजेंसी के अफसर उन पर आम आदमी पार्टी (आप) छोडऩे और भाजपा में शामिल होने का दबाव डालते रहे।

उन्होंने आश्वासन दिया कि केस भी खत्म हो जाएंगे और मुख्यमंत्री भी बना दिया जाएगा। सिसोदिया ने इसे जांच नहीं, ‘ऑपरेशन लोटस’ करार दिया। उन्होंने ऐसे लालचों और सियासत से लडऩे की हुंकार भी भरी। अगले दिन वह गुजरात गए और वहां चुनावी जनसभाओं में सीबीआई को कलंकित करते रहे। सिसोदिया एक और चक्रव्यूह में फंस सकते हैं, क्योंकि सीबीआई की जांच और पूछताछ की प्रक्रिया की वीडियोग्राफी की जाती है। यदि वह अदालत में सिसोदिया के अनर्गल बयानों को चुनौती देती है, तो सिसोदिया निरुत्तर हो सकते हैं। ‘आप’ नेताओं की आदतन वह माफी भी मांग सकते हैं। केजरीवाल एंड कंपनी देश के कई बड़े नेताओं पर आरोप लगाकर अदालत के सामने माफी मांग चुकी है। यही ‘आप’ की परंपरा है। बहरहाल देश में 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू होने के बाद हम पूरी तरह गणतंत्र हो गए थे। जब सीबीआई का प्रमुख जांच एजेंसी के तौर पर गठन किया गया, तब से एक भी आरोपित और अपराधी व्यक्ति ने कमोबेश राजनीतिकरण के गंभीर लांछन नहीं लगाए हैं।

सीबीआई ने कांग्रेस, भाजपा और अन्य दलों के नेताओं की संलिप्तता वाले तमाम बड़े घोटालों की जांच की है। बेशक कोई भी सीबीआई के निष्कर्षों और औसतन सजा-दर पर सवाल उठा सकता है, लेकिन सियासी प्रवक्ता या पैरोकार बनना सीबीआई का संवैधानिक जनादेश नहीं है। यह संवैधानिक व्यवस्था है कि किसी भी पार्टी की सत्ता हो और कोई भी देश का प्रधानमंत्री चुना जाए, सीबीआई को उसके अधीन ही काम करना है, लेकिन सीबीआई की जांच और कार्य-प्रणाली बहुत हद तक स्वायत्त होती है, क्योंकि एजेंसी, अंतत:, अदालत के प्रति जवाबदेह होती है। सिसोदिया की यह सियासत ही खोखली और बेमानी नहीं है, बल्कि खुद को ‘शहीद भगत सिंह’ का अवतार मानना भी क्रांतिकारियों का अपमान है। भारत न तो गुलाम देश है और न ही साम्राज्यवादी शासक हैं। सिसोदिया को फांसी की सजा भी नहीं होगी। वह देश पर कुर्बान भी नहीं हो रहे हैं। वह एक घोटाले के आरोपित हैं और जांच एजेंसी के सामने तलब किए गए थे।

दरअसल मुख्यमंत्री केजरीवाल ने ही अपने मंत्री सत्येंद्र जैन, विधायक अमानतुल्ला खां और उप मुख्यमंत्री सिसोदिया को मौजूदा दौर के ‘भगत सिंह’ घोषित किया था। केजरीवाल भावुकता, पीडि़त दिखने और सहानुभूति बटोरने की राजनीति करते रहे हैं। सत्येंद्र जैन तो मई माह से जेल में हैं और अदालत उन्हें जमानत देने को तैयार नहीं है। बहरहाल सिसोदिया तो खुद को महाराणा प्रताप का वंशज भी बता चुके हैं। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से भी खुद को जोड़ चुके हैं, बेशक गांधी जयंती, 2 अक्तूबर को ‘आप’ के नेता ‘राजघाट’ जाना भूल सकते हैं। दिलचस्प यह है कि ‘आप’ के नेता और प्रवक्ता शराब घोटाले की मौजूदा लड़ाई को ‘आज़ादी की दूसरी लड़ाई’ आंक रहे हैं। खुद केजरीवाल बीते दो महीने से चिल्ला रहे हैं कि अब सिसोदिया को जेल भेजने की तैयारी है, लेकिन घोटाले से जुड़े सवालों के सटीक जवाब देने से कन्नी काटते रहे हैं। दरअसल हम केजरीवाल को ही ‘मुख्य आरोपित’ मानते हैं, क्योंकि मुख्यमंत्री की अनुमति के बिना शराब नीति नहीं बन सकती थी।

 

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