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रेप और हत्या के 3 आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट से बरी होने की तीव्र प्रतिक्रिया

-सनत जैन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ, जिसमें मुख्य न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एस रविंद्र भट्ट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने मृत्युदंड प्राप्त रेप के आरोपियों को बरी कर दिया है। 19 वर्षीय युवती से रेप और हत्या के दोषियों को सबूतों के आधार पर सेशन कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा 2012 में सुनाई थी। 26 अगस्त 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के पश्चात मृत्युदंड की सजा की पुष्टि की थी। इसके बाद सजायाफ्ता आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट में मृत्युदंड के खिलाफ याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड की सजा पाए तीनों आरोपियों को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय के बाद देश में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हो रही है।
मुख्य न्यायमूर्ति यूयू ललित फैसला देने के बाद सेवानिवृत्त हो गए हैं। इस मामले में 7 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर तीनों दोषियों की मौत का फैसला सुरक्षित रखा था। तीन जजों की खंडपीठ को यह तय करना था कि मौत की सजा को बरकरार रखा जाए या नहीं।
सुनवाई के लगभग 7 महीने बाद सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में आरोपियों को बरी कर दिया। दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में भी मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखने की दलील दी थी। दिल्ली पुलिस ने इस मामले की बड़े विस्तृत ढंग से जांच की थी। ट्रायल कोर्ट में भी लगभग 2 वर्षों तक मामला चलता रहा। सेशन कोर्ट ने सबूतों के आधार पर तीनों अभियुक्तों को मृत्युदंड की सजा सुनाई थी। दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा उसकी सुनवाई के पश्चात मृत्युदंड की सजा की पुष्टि कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट में यह मामला मृत्युदंड की सजा को चुनौती देने के लिए दायर किया गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मृत्युदंड के स्थान पर तीनों आरोपियों को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला लंबे समय तक सुनवाई के पश्चात फैसले के लिए लगभग 7 माह तक लंबित रखा गया।
रेप और हत्या जैसे मामले में वह भी जब अपराध की प्रकृति बेहद बर्बर तरीके की थी। जिस युवती का अपहरण किया गया। उसके साथ तीनों आरोपियों ने बलात्कार किया। बलात्कार के बाद तरह-तरह की यातनाएं दी गई। उसकी हत्या कर शव को क्षत-विक्षत किया। उसके शव को रेवाड़ी जिले के रोधई गांव में जाकर फेंक दिया गया। इस घटना के बाद सारे देश में बड़ी तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। हत्यारों ने बड़े अमानुषिक ढंग से रेप के बाद लड़की को बुरी तरह से शारीरिक रूप से प्रताड़ित करते हुए हत्या की थी।
विधि विशेषज्ञों का भी मानना है कि सुप्रीम कोर्ट से कहीं ना कहीं फैसला देते समय गलती हुई है। सुप्रीम कोर्ट को ऐसा लगता था कि यदि मामले की सुनवाई ठीक तरीके से नहीं हुई है। सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट ने भावात्मक तरीके से फैसला किया है। तो एक बार फिर से प्रकरण सेशन कोर्ट में जाना चाहिए था। ऐसा ना करके अपराधियों को पूरी तरह से बरी करके, सुप्रीम कोर्ट से न्यायिक प्रक्रिया में बहुत बड़ी चूक हुई है। रेप और हत्या जैसे बर्बर अपराध में जब आरोपियों द्वारा पीड़ित परिवार को डराया जा रहा हो, धमकी दी जा रही हो। बलात्कार की बढ़ती घटनाओं और महिला पक्ष को न्याय के प्रति आस्था जगाने के स्थान पर, सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय विवादों में घिर गया है।
पिछले कुछ महीनों से लगातार न्यायपालिका के निर्णयों को लेकर आम आदमी में न्यायपालिका के प्रति अविश्वास बढ़ रहा है। लोगों को लग रहा है कि अब सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट भी सरकार के फैसलों पर मुहर लगाने का काम कर रही हैं। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहीं ना कहीं राजनीतिक धमक देखने को मिलने लगी है। केंद्रीय विधि मंत्री और सत्ता पक्ष द्वारा समय-समय पर न्यायपालिका को लक्ष्मण रेखा की याद दिलाकर, न्यायपालिका को हतोत्साहित करने तथा सेवानिवृत्ति के बाद जजों को पुनः नियुक्ति देने से आम आदमी का विश्वास न्यायपालिका से कम हो रहा है। रेप और हत्या जैसे मामलों में जिस तरह का से सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आया है। उससे आम जनमानस तथा विधि वेता भी सहमत नही हैं। हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से संवेदनशील मामलों में तो न्याय की अपेक्षा की ही जा सकती है।अब तो न्याय गरीब और अमीर के लिए अलग-अलग होने की चर्चा बड़ी आम हो गई है।

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