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अपनी ही सरकार को असहज करते भाजपा प्रदेश अध्यक्ष!

-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने राज्य में नेता प्रतिपक्ष रहे प्रीतम सिंह द्वारा मंहगाई, भ्र्ष्टाचार, बेरोजगारी, अपराध बढ़ोतरी आदि मुद्दों पर सरकार को घेरने के लिए सचिवालय कूच कार्यक्रम को लेकर उन्होंने बधाई दी है, हालांकि उन्होंने कहा कि प्रीतम सिंह यह कार्यक्रम कांग्रेस में स्वयं का अस्तित्व बचाने के लिए कर रहे है, न कि भाजपा के खिलाफ। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष की इस नासमझी पर भाजपा के लोग ही असहज है। भला बेरोजगारी, भ्र्ष्टाचार, अपराध बढ़ोतरी, महंगाई मुद्दे पर हो रहा कार्यक्रम सरकार के खिलाफ कैसे नही होगा, ओर इसे कांग्रेस नेता के अस्तित्व से कैसे जोड़ा जा सकता है। वही इन्ही भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने भाजपा सरकार के पूर्व मुख्यमंत्रियों तीरथ सिंह रावत व त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा राज्य में कमीशन करप्शन को लेकर उठाई गई आवाज का समर्थन करके भी अपनी ही पार्टी व सरकार को असहज किया है।

भाजपा के कद्दावर नेता एवं हरिद्वार विधायक मदन कौशिक से प्रदेश भाजपा की कमान लेकर महेंद्र भट्ट को सौंपना भाजपा के कार्यकर्ताओं को भी रास नही आ रहा है। महेंद्र भट्ट ऐसा कुछ नया नही कर पाए, जो मदन कौशिक न कर पा रहे हो। पहाड़ व मैदान वाद की भेंट चढ़े मदन कौशिक जहां इन दिनों भाजपा में उपेक्षित है, वही भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में उनके उत्तराधिकारी महेंद्र भट्ट संगठन में न तो गुटबाजी को दूर कर पाए है और न ही स्वयं की सर्व स्वीकार्यता को सिद्ध कर पाए है। सच पूछिए तो पूर्व मुख्यमंत्री एवं हरिद्वार सांसद डॉ रमेश पोखरियाल निशंक के इर्द गिर्द ही भाजपा का संगठन समाहित है। चाहे किसी नेता या फिर कार्यकर्ता की भाजपा में ज्वाइनिंग हो या फिर उसे दायित्व से नवाजना हर मामले में संगठन से कही आगे निशंक खड़े नज़र आते है। डॉ. निशंक की विश्वास पात्र डॉ कल्पना सैनी का राज्यसभा तक पहुंचना, भाजपा में प्रदेश व जनपद स्तर पर हुई नियुक्तियों में भी सबसे ज़्यादा संख्या निशंक समर्थकों की है। डॉ निशंक ही एक तरह से उत्तराखंड भाजपा को थामे हुए है। ऐसे में महेंद्र भट्ट उनके सामने स्वतः ही कमजोर नज़र आ रहे है। जिसे संगठन हित मे उचित नही कहा जा सकता।

उत्तराखंड भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट वह नेता हैं जब भाजपा को उत्तराखंड में 47 सीटों के साथ बंपर मैंडेट मिला तब भी वह चमोली जिले की बदरीनाथ विधानसभा सीट गंवा बैठे थे। इसके बावजूद भाजपा ने महेंद्र भट्ट को उत्तराखंड भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाकर यह संदेश दिया कि भाजपा जिसे चाहे नेता बना सकती है और उसके लिए हार जीत कोई मायने नही रखती। यही स्तिथि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की भी रही वे मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए चुनाव हार गए थे। तब भी बीजेपी हाईकमान ने हार के बावजूद पुष्कर सिंह धामी को फिर से मुख्यमंत्री बना दिया था। इसी कारण पार्टी के वे लोग जो बंपर वोटो से जीत कर आए, लेकिन उन्हें कोई महत्वपूर्ण दायित्व नही मिल पाया, अंदर ही अंदर भाजपा हाई कमान से नाराज़ है और धामी सरकार को अस्थिर करने में अपनी अपत्यक्ष भूमिका निभा रहे है। भाजपा की चौकाने वाली कार्यशैली पर गौर करे तो जुलाई 2021 में जब तीरथ सिंह रावत मुख्यमंत्री पद से हटाए गए थे तो चाणक्य राजनीति के पंडित रमेश पोखरियाल निशंक, धन सिंह रावत, सतपाल महाराज, अजय भट्ट के नाम की चर्चा मुख्यमंत्री पद के लिए हो रही थी, धन सिंह रावत तो खुद भी इतने उत्साहित हो गए थे कि अघोषित रूप से लोग उन्हें ही मुख्यमंत्री मानने लगे थे। इन सारे कयासों को धता बताते हुए बीजेपी हाईकमान ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाकर सबको चौंका दिया था। खुद पुष्कर सिंह धामी ने कहा था कि उन्हें कतई भी अनुमान नहीं था कि वह सीएम बनने जा रहे हैं। अब फिर वही हालत बदहाल हुई राज्य व्यवस्था के बीच देखने को मिल रही है। कभी मंत्रिमंडल विस्तार की खबरें सामने आती है, तो कभी प्रेमचंद अग्रवाल व चंदन दास की मंत्री मंडल से छुट्टी होने के संकेत मिलते है तो कभी नेतृत्व परिवर्तन की ही हवा बहने लगती है। लेकिन होता कुछ नही। ऐसे में सच क्या है, यह तो कहना मुश्किल है। लेकिन अगर राजनीति में मुद्दा उठता है तो हलचल भी जरूर होगी। इस सच को स्वीकार ही किया जाना चाहिए।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने अपनी कुल संपत्ति 1.3 करोड़ रुपये घोषित की हुई है, इसमें 42 लाख रुपये की चल संपत्ति और 85.7 लाख रुपये की अचल संपत्ति शामिल है। महेंद्र भट्ट पर कोई आपराधिक मामला दर्ज नहीं हैं। बद्रीनाथ विधानसभा क्षेत्र के पूर्व विधायक महेंद्र भट्ट उत्तराखंड भारतीय युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं। उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2022 के में महेंद्र भट्ट को बद्रीनाथ विधानसभा सभा सीट से हार का सामना करना पड़ा था। उन्हें कांग्रेस के राजेंद्र सिंह भंडारी ने करारी शिकस्त दी थी। इस चुनाव में राजेंद्र सिंह भंडारी ने 32 हजार 661 वोट हासिल किया था। वहीं महेंद्र भट्ट को 30, 595 वोट मिले थे। इस चुनाव में उन्हें 2, 066 वोटों से हार का मुंह देखना पड़ा था। हालांकि राजेंद्र सिंह भंडारी को सन 2017 के विधानसभा चुनाव में महेंद्र भट्ट ने हरा दिया था। इस चुनाव में भट्ट को 29 हजार 676 वोट मिले थे, जबकि राजेंद्र को 24 हजार 42 वोट मिले थे। उन्हें 5634 वोटों से हार मिली थी। बहरहाल हारजीत के इस गणित को भी छोड़ दे तो महेंद्र भट्ट प्रदेश स्तर पर अभी अपनी वह पकड़ नही बना पाए जो एक प्रदेश अध्यक्ष के लिए जरूरी है। उनसे संगठन को अलग कर दे तो वे आमजन पर कोई ज्यादा प्रभाव नही डाल पाएंगे। हालांकि भाजपा अधिकांश ऐसे ही लोगो को आगे लाती है, जो जनसामान्य में ज्यादा चर्चित न हो। इससे भाजपा को नकारात्मकता का नुकसान कम होता है और वह अपनी साख के बलबूते कमजोर नेता को भी मुख्य धारा में लाकर खड़ा कर देती है। इस वास्तविकता के अनेक उदाहरण है, उत्तर प्रदेश में एक अनजान पुराने कार्यकर्ता राम प्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बना देना, हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर, उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी ऐसे ही उदाहरण है, जो अचानक बगैर प्रभाव के मुख्यमंत्री बनाए गए। भाजपा संगठन में भी इस तरह के प्रयोग करती रही है। अनेक ऐसे कार्यकर्ता प्रदेश अध्यक्ष तक रह चुके है जिनकी आमजन में पकड़ न के बराबर रही है।

तभी तो हम कह सकते है कि महेंद्र भट्ट की पकड़ भले ही सिर्फ एक विधानसभा क्षेत्र तक हो और उसमें भी कभी हार कभी जीत का स्वाद उन्होंने चखा हो, लेकिन भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के रूप में वे समूचे उत्तराखंड में अपनी पकड़ बनाने में कम से कम अभी तक तो कामयाब नही हुए है। इनसे बेहतर तो मदन कौशिक ही थे जिनकी पकड़ कल भी थी, आज भी है और शायद कल तक भी रहे।

 

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