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भारत जोड़ो यात्रा में से उभरा थीसिस

-कुलदीप चंद अग्निहोत्री-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

सोनिया गांधी जी के सुपुत्र राहुल गांधी पिछले कुछ समय से भारत को जोडऩे की तरकीबें जानने के लिए पैदल यात्रा पर निकले हुए हैं। उनका कहना है कि वे आम आदमी से मिल रहे हैं और उनसे उन्हें भारत जोडऩे के सूत्र मिल रहे हैं। शास्त्रों में लिखा है कि पर्यटन से ज्ञान बढ़ता है, बुद्धि विकसित होती है। महात्मा गांधी जी भी जब दक्षिणी अफ्रीका से वापिस आए थे तो उनके मन में भी देश के लिए कुछ करने की छटपटाहट थी। तब गोपाल कृष्ण गोखले जी ने उनकी इस छटपटाहट की सराहना करते हुए कहा था कि देश के लिए कुछ करने से पहले देश को समझ लो। बात हैरान करने वाली जरूर थी। गांधी जी तो काठियावाड़ के ही रहने वाले थे। वे देश को जानते बूझते ही थे। तब गोखले ने ऐसा क्यों कहा? गोखले का कहना था कि यह देश बहुत बड़ा है और आंतरिक रूप से एक होते हुए भी बाहरी विभिन्नताओं से भरा पड़ा है। उन विभिन्नताओं को एक बार समझ लोगे तो उनके नीचे बह रही समग्र एकात्म अंतरधारा को भी अनुभव कर सकोगे। इसका तरीका क्या होगा? गोखले का कहना था देश भर में घूमने के लिए निकल पड़ो। बस, काम हो जाएगा। लेकिन यात्रा प्रायोजित नहीं होना चाहिए। अपने मन से घूमो। मोहनदास कर्मचंद गांधी साल भर से भी ज्यादा देश में घूमते रहे और इस घुमक्कड़ी से वे महात्मा हो गए। ताज्जुब है उन्होंने अपनी इस यात्रा में उन अंग्रेज़ों को भी भला बुरा नहीं कहा जिन्होंने उन्हें दक्षिणी अफ्रीका में बहुत अपमानित किया था। गांधी जी का कोई राजनीतिक एजेंडा नहीं था। वे केवल उन लोगों को जान व समझ लेना चाहते थे जिनके लिए वे अपना जीवन खपाने वाले थे। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी इस देश को समझने का उपक्रम किया था।

जवाहर लाल के लिए यह समझना बूझना और भी जरूरी था क्योंकि उनका परिवार शताब्दियों पहले से उस अभिजात्य समुदाय में शामिल हो चुका था जो वक्त के शासकों के ज्यादा समीप होते हैं और सामान्य जनमानस से कट चुके होते हैं। लेकिन नेहरू ने देश को समझने बूझने के लिए गांधी जी का तरीका नहीं अपनाया। वह कष्टकारी तो था ही, लम्बा भी था। नेहरू ने इसको समझने के लिए किताबों का सहारा लिया। ये किताबें या तो तुर्कों व मुगलों की लिखी हुई थीं या फिर ब्रिटिश नौकरशाही की। कुछ पुरानी हिंदुस्तानी किताबों का भी उपयोग किया। लेकिन उसमें नेहरू जी की एक दिक्कत थी। वे मूल ग्रंथ नहीं पढ़ सकते थे क्योंकि उन्हें वह भारतीय भाषा नहीं आती थी। इसलिए इस काम के लिए भी वे उन्हीं यूरोपीय विद्वानों पर निर्भर रहे जो उन दिनों स्वयं भी अपने साम्राज्यवादी हितों के लिए भारत को समझने की कोशिश कर रहे थे। अपने इसी उपक्रम में उन्होंने ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ लिख कर भारत को खोज लेने की घोषणा कर दी। मुझे लगता है उनका अभिप्राय भारत को समझने से ही रहा होगा, खोजने का दंभ तो शायद वे भी नहीं पाल सकते थे। मान लेना चाहिए कि राहुल गांधी ने अपनी यात्रा शरू करने से पहले नेहरू की यह किताब जरूर पढ़ी होगी। यह इस किताब में तो दर्ज नहीं है लेकिन अब तक राहुल गांधी को यह भी पता चल ही गया होगा कि भारत देश के ताज़ा इतिहास में दर्ज है कि कांग्रेस पार्टी ने आजादी की अपनी सांविधानिक लड़ाई में अंतिम प्रस्ताव भारत को दो हिस्सों में तोडऩे का किया था।

कांग्रेस ने इस प्रस्ताव में यह पारित किया था कि भारत को तोड़ कर उसके एक हिस्से को, जिसे पुरानी किताबों में सप्त सिन्धु भी कहा जाता है, तोड़ कर पाकिस्तान नाम से नया देश बना दिया जाए। जब राहुल गांधी जी की भारत जोड़ो यात्रा के बारे में मैंने सबसे पहले सुना तो मैं इसी भ्रम का शिकार हो गया था कि शायद वे जवाहर लाल नेहरू की इस ऐतिहासिक भूल का प्रायश्चित करने के लिए भारत को एक बार पुन: जोडऩे के अभियान में निकले हैं। लेकिन यात्रा देख कर मुझे अपने इस भ्रम से निकलने में सहायता मिली। वे बीच बीच में चुनावों की बातें भी कर रहे हैं। उन्होंने इस यात्रा में अनेक पक्ष और अनेक विपक्ष निर्माण कर लिए हैं। दुर्भाग्य से उन्हें इस देश की आंतरिक एकता के सूत्र दिखाई नहीं दे रहे हैं। उन्हें ब्रिटिश साम्राज्यवादियों द्वारा निर्मित कृत्रिम भेद ज्यादा दिखाई दे रहे हैं। लेकिन इसमें उनका दोष नहीं है। आंतरिक एकता यानी भारत की आत्मा के दर्शन करने और उसे अनुभव करने के लिए भारतीय मानस का होना बहुत जरूरी है। भारतीय मानस राजनीति में से निर्मित नहीं होता बल्कि वह यहां की आध्यात्मिक चेतना में से विकसित होता है। दुर्भाग्य से मोतीलाल से लेकर राहुल गांधी तक, ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के सिखाने पर, भारत की इसी आध्यात्मिक चेतना को साम्प्रदायिकता कह कर, उससे लडऩे का संकल्प दोहराते रहे। जो भारत की आंतरिक एकता के सूत्रों से लडऩे के लिए जूझ रहा हो, वह भारत को जोडऩे के नाम पर तोडऩे का काम करता है। राहुल गांधी इसको शायद न समझ पाएं क्योंकि इसे समझने के लिए देश की मिट्टी में खपना पड़ता है। लेकिन कांग्रेस के बुढ़ा रहे नेताओं की चिंता जरूर समझ में आती है।

अब तक गांधी-नेहरू परिवार की पीठ पर सवार होकर वे सत्ता के गलियारे में पहुंच जाते थे। लेकिन सात दशकों में गांधी-नेहरू परिवार के ऊपर से मुलम्मा उतर गया है। अब यह परिवार दूसरों को तो क्या, स्वयं ही अपने ज़ोर पर सत्ता को छू लेने में कठिनाई अनुभव कर रहा है। लेकिन सलमान खुर्शीदों को तो अपनी चिंता है। शायद लोग कंपकंपाती ठंड के इस मौसम में आधी बांह की कमीज पहन कर घूम रहे राहुल गांधी को साधक समझ लें और धोखा खा जाएं। इसीलिए वे चिल्ला कर गला हलकान किए हैं, मैं उनकी खड़ाऊँ लेकर आ गया हूँ, राम भी पीछे आ रहे हैं। इन्हीं लोगों ने अरसा पहले राहुल गांधी के गले में कमीज से ऊपर जनेऊ पहना देने का कांड भी किया था। इनका दरद समझ में आता है, लेकिन राहुल गांधी को सत्ता छिन जाने से छटपटा रहे इन कांग्रेसियों के ये सारे तांत्रिक प्रयोग अपने शरीर पर करने पड़ रहे हैं । शायद उन्हें भी भ्रम हो गया है कि इन प्रयोगों से वे महात्मा मान लिए जाएँगे। एके एंटनी ज्यादा गहरे हैं। वे जानते हैं कि कांग्रेस हिन्दु-मुसलमान के सन्तुलन में गड़बड़ा गई है। इसलिए उन्होंने यात्रा में ही राहुल जी को संकेत दे दिया है। संतुलन ठीक रखिए। हिन्दुओं को इतना ज्यादा गरियाइए नहीं। अल्पसंख्यक यानि मुसलमान-ईसाई ठीक हैं, लेकिन क्या उससे यात्रा पूरी हो सकती है क्या? थोड़ा संतुलन बनाइए। संतुलन बिगडऩे से ही तो जहाज़ डूबा है। अब यदि उसे निकालते समय भी संतुलन ठीक न किया तो बंटाधार नहीं हो जाएगा क्या? लेकिन शायद सुलेमान खुर्शीद एंटोनी की गहरी बात को ठीक से समझ नहीं पाए।

केरल वालों की नब्ज पकड़ पाना क्या इतना आसान है? संतुलन बिठाने के चक्कर में सुलेमान ख़ुर्शीद ने राहुल को ही राम बना दिया। लेकिन एंटोनी एक बात भूल गए। हिन्दुस्तान में हिन्दु-मुसलमान का यह खेल ब्रिटिश सरकार ने अपने हितों के लिए शुरू किया था। उन्होंने इस खेल में कांग्रेस को भी शामिल कर लिया। खेल ठीक से जम सके, इसके लिए उन्होंने मुस्लिम लीग को रोबोट तैयार कर लिया। ये तीनों खिलाड़ी हिन्दु-मुस्लिम खेलते खेलते देश को ही तोड़ गए। अब एंटोनी फिर नए सिरे से हिन्दु-मुस्लिम खेलना चाहते हैं। उनका तो मानना है कि कांग्रेस पिछले कुछ समय से यह खेल ठीक तरीके से खेल नहीं पाई, इसी कारण कांग्रेस डूब रही है। खुदा के लिए, कांग्रेस दोबारा इस खेल को शुरू न करे। राहुल गांधी अभी भारत जोड़ो यात्रा में हैं। बीच यात्रा हिन्दु-मुस्लिम खेला देश का नुक़सान कर सकता है। सबका साथ सबका विकास, देश को लम्बे समय तक यही यात्रा करनी है। यही भारत के लिए हितकर होगा।

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