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मरीजों का आर्थिक शोषण क्यों?

-डा. वरिंदर भाटिया-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

इस बार गणतंत्र दिवस के मौके पर भारत सरकार की तरफ से पद्म पुरस्कार प्राप्त करने वालों में जालंधर से स्कूल शिक्षा प्राप्त करने वाले जबलपुर के डाक्टर मुनिश्वर चंद्र डावर भी शामिल हैं। डा. डावर आज भी 20 रुपए की मामूली फीस पर मरीजों का इलाज करते हैं। डाक्टर डावर सेना में भी अपनी सेवाएं दे चुके हैं। 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान उनकी पोस्टिंग बांग्लादेश में थी। डा. डावर ने न जाने कितने घायल जवानों का इलाज किया। हालांकि युद्ध समाप्त होने के बाद उन्हें अपनी स्वास्थ्य समस्याओं के चलते सेना में समय से पहले रिटायरमेंट लेना पड़ा। इसके बाद 1972 से उन्होंने जबलपुर में अपनी प्रैक्टिस शुरू की। फिर यहां पर वह गरीबों का इलाज करने लगे। डॉ. डावर का जन्म आज के पाकिस्तान में 1946 में हुआ था। कहते हैं कि डेढ़ साल की उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था। उन्होंने स्कूल की पढ़ाई पंजाब के जालंधर से की। इसके बाद जबलपुर, मध्यप्रदेश से उन्होंने डॉक्टरी की डिग्री हासिल की। महंगाई के ज़माने में मरीजों का आर्थिक शोषण न करने वाले डॉक्टर डावर सेवा भाव के अद्भुत प्रतीक बने हैं। डॉक्टर डावर की बात करने के साथ-साथ चिकित्सा पेशे का दूसरा डार्क पहलू भी विचारणीय होना चाहिए। कहना न होगा कि डॉक्टरों यानी चिकित्सकों को हमारे समाज में एक बेहतर दर्जा दिया गया है। चिकित्सा पेशे को सबसे अच्छे कामों में से एक माना जाता है। चिकित्सा व्यवसाय सदियों से विकसित हुआ है और अभी भी विकसित हो रहा है। विभिन्न बीमारियों की दवाएं तथा उपचार जो पहले उपलब्ध नहीं थे, अब विकसित हुए हैं। चिकित्सा प्रौद्योगिकी ने भी समय गुजरने के साथ प्रगति की है। अगर हमारे पास अच्छे डॉक्टर हैं और हमारे आसपास के क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाएं हैं तो यह राहत की भावना देता है।

इसके बावजूद इस पेशे से जुड़े कुछेक लोगों द्वारा सेवा की बजाय व्यापारिक आर्थिक शोषण की सोच को आगे रखना इस पेशे की गरिमा के अनुरूप नहीं रखा जा सकता है। आज जहां लोग अपने जीवन को लेकर डॉक्टरों पर भरोसा करते हैं, वहीं अतीत में कुछ मरीजों के आर्थिक शोषण के मामलों ने समाज के विश्वास को हिला कर रख दिया है। डॉक्टरों को अपने पेशे के प्रति वफादार रहना आवश्यक है। भारत में डॉक्टरों को ऊंचा दर्जा दिया जाता है। हालांकि भारत में स्वास्थ्य सेवा उद्योग विश्व के विकसित देशों के समान नहीं है, परंतु हमारे पास चिकित्सा का अध्ययन करने के लिए अच्छी सुविधा है और इसके लिए प्रतिभाशाली डॉक्टरों का एक समूह भी है। फिर भी भारत को स्वास्थ्य सेवा में लंबा रास्ता तय करना है। जहां तक सरकारी अस्पतालों का सवाल है, इनमें से कई में एक अच्छा बुनियादी ढांचा है, पर अधिकांश को अच्छी तरह प्रबंधित नहीं किया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवा उद्योग में विभिन्न स्तरों पर बहुत भ्रष्टाचार है। हर कोई पैसा कमाना चाहता है, भले ही इसके लिए किसी के स्वास्थ्य की कीमत चुकानी पड़े। सरकारी अस्पतालों में कार्यरत कुछ कर्मचारी भी रोगियों को ठीक से सेवा देने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं। ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जहां रिपोर्ट गलत साबित हो जाती है और रोगियों को समय पर दवा नहीं मिल पाती। इसके अलावा जब अस्पताल में दवाएं और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति की बात आती है तो कुप्रबंधन देखने को मिलता है।

आज भी देश में अनेक लोग डॉक्टरों से इलाज करवाने में संकोच करते हैं। बहुत से लोग आम सर्दी, फ्लू और बुखार के लिए घर पर ही दवाओं को लेना पसंद करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि चिकित्सक इस मुद्दे को अनावश्यक रूप से बढ़ा सकते हैं। हम देखते हैं कि आज गैर सरकारी क्षेत्र हमारे देश के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर हावी हो रहा है। यह कोई बुरी बात नहीं है। हालांकि व्यवस्था ने कई सरकारी अस्पतालों और नर्सिंग होम की स्थापना की है, पर इनमें से अनेक की संरचना और समूची स्थिति संतोषजनक नहीं है। इसलिए ज्यादातर लोग वहां जाना पसंद नहीं करते हैं। इस पर व्यवस्था द्वारा ही संज्ञान लिया जाना ठीक होगा। चिकित्सा जगत का एक और कड़वा सच है कि कमीशन के चक्कर में अनेक मरीजों को कई तरह के गैर जरूरी परीक्षण कराने का सुझाव दिया जाता है, भले ही वे साधारण बुखार या खांसी के लिए उनसे संपर्क करते हों। कुछ चिकित्सक स्वास्थ्य ठीक करने और विभिन्न चिकित्सा स्थितियों के बारे में ज्ञान की कमी के कारण लोगों की जरूरतों का फायदा उठाते हैं। यहां तक कि अगर लोग इन परीक्षणों का खर्चा वहन नहीं कर सकते, तब भी वे इन परीक्षणों को कराते हैं। क्या यह सिर्फ पैसे कमाने का एक तरीका तो नहीं है? इस पर सच तलाशना होगा। कई बार तो ऐसे मामले देखने को मिलते हैं जिनमें लोगों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और आवश्यक अवधि से अधिक समय तक रहने को कहा जाता है ताकि अस्पताल उनसे लाभ कमा सके। लोगों को उनकी बीमारियों के बारे में गलत तरीके से बताया जाता है ताकि उनसे पैसे निकाले जाएं। क्या लोगों की सेवा करने के बजाय आजकल मेडिकल व्यवसाय पैसे कमाने का जरिया बन गया है? ऐसा क्यों हो रहा है? हमें सोचना होगा। भारत में जो स्थिति है वो बहुत गम्भीर है। यहां हेल्थ सिस्टम न तो उतना विकसित है जितना ज़रूरी है, न ही व्यवस्थित है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1000 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर होना चाहिए, परंतु हमारे यहां करीब 10-20 हजार पर एक डॉक्टर है। इस कारण प्रत्येक डॉक्टर पर काम का अनावश्यक लोड है और वो मरीज़ को पूरा समय नहीं दे पाता है। यह बात सत्य है कि 10-15 मिनट मिलने चाहिए एक मरीज को देखने के लिए, परंतु बाहर बहुत भीड़ लगी होती है जिस कारण जल्दी-जल्दी मरीज देखने पड़ते हैं। सरकारों को पहल करनी होगी। क्यों न हर मरीज को आधार कार्ड की तरह एक यूनिवर्सल नंबर जारी कर दिया जाए जिसमें हर मरीज की जन्म से लेकर मृत्यु तक की सारी चिकित्सकीय जानकारी हो, जैसे कि वह कब-कब बीमार हुआ, किस चिकित्सक को दिखाया गया, क्या-क्या दवाइयां चलीं, क्या-क्या जांच हुई, और अब जो जांच कराई जाएगी, उसकी वास्तविक जरूरत है भी या नहीं, आदि। अक्सर हर डाक्टर, हर अस्पताल दूसरे डॉक्टर द्वारा कराई गई जांच को मानने से मना कर देते हैं और जिनसे कमीशन बंधा होता है उनसे मरीज की आवश्यक व अनावश्यक सभी जांच करवाई जाती है। यह इस कारण भी है कि डॉक्टर बनने की पढ़ाई-लिखाई में नैतिकता का वांछित समावेश नहीं है। कहना न होगा कि किसी भी डॉक्टर के लिए मेडिकल महज एक पेशा भर नहीं है। यह संवेदना से जुड़ा क्षेत्र है, जहां डॉक्टर और मरीज के बीच आत्मीयता वाले संबंध होते हैं, क्योंकि एक डॉक्टर के लिए उसके मरीज के ठीक होने से बड़ी कोई खुशी नहीं होती है। साथ ही मरीजों की दुआएं भी मिलती हैं। मेडिकल प्रोफेशन के एक अच्छी फील्ड होने के साथ-साथ इसमें सेवा भाव भी होता है। इसमें काम करके डॉक्टर बेहद खुश होते हैं। हर डॉक्टर अपनी तरफ से सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश करता है। पर अब डॉक्टर और मरीज के बीच बदलाव देखने को मिल रहा है। मरीजों में डॉक्टर के प्रति विश्वास क्यों कम हुआ है, यह समस्या हल करने की जरूरत है। कुछ चिकित्सकों द्वारा आर्थिक शोषण उनके पेशे की गरिमा के अनुरूप नहीं है। याद रहे सम्मान और आत्म सम्मान आर्थिक हवस से ज्यादा महत्वपूर्ण है। डॉक्टर डावर जैसे लोग अंधेरे में दीये की तरह इसका अपवाद बनकर आए हैं और राष्ट्रीय सम्मान के जायज हकदार हैं। ऐसे व्यक्ति ही वर्तमान में चिकित्सा पेशे से जुड़े हुए हैं और जुडऩे वाले नौजवानों के लिए प्रेरणा का जरिया बनेंगे।

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