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भारी स्कूल बैग से अब मुक्ति

-डा. वरिंदर भाटिया-

(ऐजेंसी/सक्षम भारत)

स्कूल बैग के बोझ से दबे छात्र-छात्राओं के लिए एक राहत भरी खबर है। देश के शिक्षा मंत्रालय ने छात्रों के स्कूल वजन को 10 फीसदी तक कर दिया है। शिक्षा मंत्रालय ने नई स्कूल बैग पॉलिसी के मुताबिक, अब क्लास 2 तक के छात्रों के लिए कोई होमवर्क नहीं होगा। वहीं छोटी क्लास के बच्चों को केवल स्कूल में ही पढ़ाई कराई जाएगी। इसके अलावा कक्षा 1 से 10वीं तक के छात्रों के लिए स्कूल बैग का वजन भी, छात्र के वजन के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होना चाहिए। शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी नई स्कूल बैग नीति 2020 के अनुसार पहली से 12वीं क्लास तक के लिए होमवर्क और स्कूली बस्तों को लेकर ताजातरीन दिशा-निर्देश दिए गए हैं। इसे 24 नवंबर को तमाम राज्य सरकारों के साथ साझा किया गया और साथ ही एक सर्कुलर जारी करके उन्हें इसे लागू करने को कहा गया। इस विषय पर जारी सर्कुलर में कहा गया है कि, ‘अनुरोध किया जाता है कि कृपया स्कूल बैग पॉलिसी और एनईपी 2020 के प्रासंगिक सुझावों को अपनाएं और अपने क्षेत्र में उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करें। इस बारे में अनुपालन रिपोर्ट इस विभाग (मंत्रालय) के साथ साझा की जा सकती है।

‘ छात्रों के लिए भारी स्कूल बैग एक बड़ी दिक्कत के रूप में विदित हुआ है। हाल ही में एक राष्ट्रीय संगठन द्वारा दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई, बेंगलुरु, मुंबई और हैदराबाद सहित 10 बड़े शहरों में 2000 से ज्यादा बच्चों और उनके पैरेंट्स पर मार्च-अप्रैल के दौरान एक सर्वे किया गया था। इसमें देखा गया कि 12 साल से कम उम्र के करीब 1500 बच्चे ठीक तरीके से नहीं बैठ सकते और उनमें ऑर्थोपेडिक समस्याएं होती हैं। अधिकतर पैरेंट्स ने शिकायत की कि एक दिन में 7 से 8 क्लास होती हैं और हर सब्जेक्ट में कम से कम तीन किताबें (टेक्सट बुक, नोटबुक, वर्कबुक) होती हैं। इसके अलावा बच्चे स्पोर्ट्स किट, स्विमबैग, क्रिकेट किट वगैरह भी कैरी करते हैं। 5 से 12 साल की उम्र के बीच स्कूली बच्चे अपने बैग में काफी ज्यादा वजन उठाते हैं, जिसके कारण बच्चों में पीठ दर्द और तनाव का खतरा ज्यादा होता है। सर्वे में कहा गया है, ‘करीब 82 फीसदी बच्चे अपनी पीठ पर अपने वजन का करीब 35 फीसदी भार ढोते हैं। भारी स्कूल बैग के कारण बच्चों में पीठ की समस्या बढ़ जाती है जो अकसर उम्र के साथ और बढ़ती चली जाती है।’ ऐसी समस्याओं पर संज्ञान लेते हुए पॉलिसी डॉक्यूमेंट में स्कूल बैग और शरीर के वजन के बीच 10 प्रतिशत के अनुपात की एक कक्षावार रेंज सुझाई गई है।

मसलन, पहली और दूसरी क्लास के बच्चे के बस्ते का वजन 1.6 से 2.2 किलोग्राम के बीच होना चाहिए, चूंकि उस उम्र में बच्चे के शरीर का औसत वजन 16.22 किलोग्राम होता है। इसी तरह 11वीं और 12वीं क्लास के छात्र 3.5 से 5 किलो तक का बैग कैरी कर सकते हैं, चूंकि उस उम्र में बच्चों का वजन 35 से 50 किलोग्राम के बीच होता है। पॉलिसी डॉक्यूमेंट में कहा गया, ‘शिक्षा सत्र की शुरुआत में एक बार किसी क्लास का सब्जेक्ट टाइम टेबल तय हो जाए तो फिर स्कूल प्रमुख को सुनिश्चित करना होगा कि पहली से 12वीं क्लास के छात्रों के लिए हर रोज पाठ्यपुस्तकों का वजन उचित तरीके से वितरित किया जाए।’ नीति में अलग-अलग स्तर पर छात्रों के लिए होमवर्क के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है और कहा गया है कि शुरू में दूसरी क्लास तक कोई होमवर्क नहीं होगा और नौवीं से 12वीं क्लास के बीच छात्रों का होमवर्क 2 घंटे का होना चाहिए। डॉक्यूमेंट में सुझाया गया है, ‘पहली और दूसरी क्लास के बच्चे होमवर्क के लिए ज्यादा घंटों तक नहीं बैठ सकते, इसलिए उन्हें किसी तरह का होमवर्क देने की जरूरत नहीं है। इसकी बजाय उन्हें क्लास में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, कि उन्होंने घर पर अपनी शाम कैसे बिताई, क्या खेल खेला, क्या खाना खाया, वगैरह-वगैरह।’ तीसरी, चैथी और पांचवीं क्लास के बच्चों को प्रति सप्ताह ज्यादा से ज्यादा दो घंटे का होमवर्क दिया जाना चाहिए।

इसमें सुझाया गया है कि होमवर्क के तौर पर टीचर को, ‘बच्चों से शाम का रूटीन पूछना चाहिए, पिछली रात उन्होंने क्या डिनर किया, खाने के आइटम क्या थे, उनमें क्या डाला गया है, अलग-अलग तरह के खानों की उनकी पसंद-नापसंद, उनके घर में कौन क्या करता है?’ छठी से आठवीं क्लास तक के लिए एक दिन में ज्यादा से ज्यादा एक घंटे का होमवर्क होना चाहिए। डॉक्यूमेंट में सुझाया गया, ‘इस स्टेज पर बच्चों में थोड़ा ज्यादा देर तक ध्यान लगाकर बैठने की आदत पैदा हो जाती है, इसलिए उन्हें ऐसे होमवर्क दिए जा सकते हैं, जैसे किसी समकालीन मुद्दे पर कोई कहानी, निबंध या लेख लिखना, अपने इलाके की समस्याओं पर लेख लिखना और अन्य चीजों के अलावा बिजली और पेट्रोल बचाने के उपाय वगैरह।’ डॉक्यूमेंट में यह भी सुझाया गया है कि जूनियर कक्षाओं के लिए टीचर्स को छात्रों की व्यक्तिगत रुचि को ध्यान में रखते हुए ‘दिलचस्प होमवर्क’ तैयार करना चाहिए। सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्टेज पर, दिन भर के लिए अधिकतम दो घंटे के होमवर्क की सिफारिश की गई है। डॉक्यूमेंट में कहा गया, ‘छात्र इस समय का उपयोग प्रोजेक्ट वर्क में कर सकते हैं। टीचर्स इनमें लगने वाले समय का हिसाब लगाकर अंतःविषय प्रोजेक्ट्स तैयार कर सकते हैं, जो छात्रों को दिए जा सकते हैं।’ उसमें आगे कहा गया, ‘एक जरूरत ये भी है कि बच्चों को दिए गए होमवर्क के समय और प्रकार पर नजर रखी जाए और ये भी देखा जाए, ख़ासकर छठी क्लास से आगे, कि क्या वो अलग-अलग विषयों के पाठ्यक्रम तथा पाठ्यपुस्तकों में दी गई अवधारणाओं को समझ पा रहे हैं?’ सर्कुलर में स्कूलों से कहा गया है कि बच्चों को मिट्टी के बर्तन बनाने और बागवानी जैसी व्यावसायिक गतिविधियों में लगाना चाहिए।

स्कूलों से कहा गया है कि वे स्कूल परिसर में डिजिटल वेटिंग मशीन रखें और स्कूल बैग के वजन को नियमित रूप से चेक करें। इसके अलावा स्कूलों में लॉकर और डिजिटल वेटिंग मशीन उपलब्ध कराना, परिसर में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराना और ट्रॉली स्कूल बैग को प्रतिबंधित करना भी स्कूल बैग पर अपनी नई नीति में शिक्षा मंत्रालय द्वारा की गई सिफारिशों में से हैं। नई राष्ट्रीय शैक्षिक नीति की सिफारिशों के अनुसार इस क्षेत्र में किए गए शोध अध्ययनों के आधार पर स्कूल बैग के मानक वजन के बारे में अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की सिफारिशों के तहत यह फैसला लिया गया है। इसी के चलते स्कूलों में ट्रॉली बैग के इस्तेमाल पर भी प्रतिबंध रहेगा। पॉलिसी डॉक्यूमेंट में कहा गया, ‘स्कूल बैग में अलग-अलग कम्पार्टमेंट होने चाहिए तथा उसका वजन भी बेहद कम होना चाहिए। स्कूल बैग में दो गद्देदार और एक बराबर पट्टियां हों जो दोनों कंधों पर चैकोर फिट हो सकें। पहिए वाले स्कूल बैग को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि यह सीढि़यों पर चढ़ते समय बच्चों को चोट पहुंचा सकता है। बच्चों के लिए किसी किताब का चयन करने के लिए किताब का वजन भी जांचा जाना चाहिए। प्रत्येक किताब का वजन प्रकाशकों द्वारा प्रति वर्ग मीटर के साथ किताब पर ही छपा होना चाहिए।’ भारी स्कूल बैगों से मुक्ति भारतीय स्कूल शिक्षा में सुधार हेतु एक अच्छा प्रयास है, बशर्ते इसे लागू करने में स्कूल चलाने वालों के इरादे साफ रहें।

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