
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
चांद के दक्षिणी ध्रुव की सतह पर उतरने से पहले ही रूस का ‘लूना-25’ क्रैश हो गया। रूस का एक ऐतिहासिक और महत्वाकांक्षी मिशन नाकाम हो गया। विनष्ट होने से पहले अंतरिक्ष यान ने ‘असामान्य परिस्थिति’ के संकेत दिए थे। वैज्ञानिकों ने उसे दुरुस्त करने की कोशिशें भी कीं। यान को ‘इंपल्स’ (एक किस्म का धक्का) दिया गया, लेकिन ‘लूना-25’ बेकाबू हो गया। प्री लैंडिंग कक्षा में पहुंचने से पहले ही ‘लूना-25’ से संपर्क टूट गया। अंतत: रविवार 20 अगस्त, 2023 को चंद्रमा की सतह से टकरा कर यह ‘रूसी मिशन’ ध्वस्त हो गया। टुकड़े-टुकड़े होकर नष्ट हो गया। इस तरह एक और वैज्ञानिक, अंतरिक्ष इंजीनियरिंग का प्रयास नाकाम साबित हो गया। यह भी स्थापित हो गया कि चांद पर लैंड करना बेहद जटिल और ‘ट्रिकी’ प्रक्रिया है। यह इसरो के वैज्ञानिकों ने भी माना है। चांद पर जाने और अनुसंधान करने के रूसी अभियान तब शुरू किए गए थे, जब यह देश ‘सोवियत संघ’ होता था। ‘लूना’ ऐतिहासिक अभियानों का नामकरण है, जिसके तहत लूना-9, लूना-16, लूना-13, लूना-11, लूना-5, लूना-7, लूना-6 और लूना-24 अभियानों को चांद पर भेजा गया। यह आगाज 2 सितंबर, 1958 को किया गया और यह सिलसिला 22 अगस्त, 1976 तक जारी रहा। ‘लूना’ नामधारी कई अभियान सफल रहे, लेकिन रूस के अस्तित्व में आने के बाद उसका यह प्रथम और प्रतिष्ठित ‘चंद्रमा मिशन’ था, जिस पर करीब 1700 करोड़ रुपए खर्च किए गए। रूस ने यूक्रेन के साथ युद्ध के दौरान ही यह ‘मून मिशन’ भेजा था। चांद के दक्षिणी धु्रव की सतह पर ‘लैंड’ करने का लक्ष्य तय किया गया था, क्योंकि वहां अभी तक अमरीका और चीन भी उतर नहीं पाए हैं।
भारत के ‘चंद्रयान-3’ का लक्ष्य भी दक्षिणी ध्रुव की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का है, लिहाजा अब ‘अग्नि-परीक्षा’ हमारे मिशन की है। ‘लूना-25’ के विनष्ट होने के बाद भारतीय ‘विक्रम लैंडर’ का लैंडिंग समय बदल कर सायं 6.04 बजे तय किया गया है। पहले इसे 23 अगस्त को सायं 5.47 बजे उतरना था। इस तारीख का भी अपना महत्व है, क्योंकि चंद्रमा पर जहां ‘विक्रम लैंडर’ को उतरना है, वहां सूर्य की रोशनी होगी और यह प्रकाश पर्याप्त समय तक रहेगा। अलबत्ता दक्षिणी ध्रुव पूरी तरह ‘अंधकारमय’ रहता है और वहां का तापमान -230 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा रहता है। चांद का एक दिन हमारे एक वर्ष के समान होता है, लिहाजा इसरो के वैज्ञानिकों ने उचित गणना की कि कब वहां सूर्य का प्रकाश रहेगा। इस तरह हमारा अभियान ऊर्जा के फालतू संसाधन खर्च करने से बच गया। चूंकि हम भी ‘चंद्रयान-2’ की अंतिम क्षणों में नाकामी झेल चुके हैं, लिहाजा इस बार अतिरिक्त बंदोबस्त किए गए हैं और सावधानियां भी बरती गई हैं। हमारा एकमात्र लक्ष्य है कि ‘चंद्रयान-3’ एक मील-पत्थर साबित हो और हम चांद पर इतिहास लिख सकें। हालांकि ‘लूना-25’ और ‘चंद्रयान-3’ में कई बुनियादी अंतर हैं, लेकिन चांद पर जाने वाले अंतरिक्ष मिशनों का एक ही साझा लक्ष्य है कि चांद पर पानी, मिट्टी, खनिज, जलवायु, गुरुत्वाकर्षण और इनसानी जिंदगी की संभावनाओं का अध्ययन करना। बेशक हमारे मिशन नाकाम रहे, लेकिन हमारे जो भी यान अंतरिक्ष में घूम रहे हैं, वे हमें लगातार फोटो भेजते रहे हैं। अर्थात अनुसंधान और सूचनाएं जारी हैं। अब हमारा ‘विक्रम लैंडर’ चांद की सतह से मात्र 25 किलोमीटर दूर रह गया है।
उसकी तमाम कमांड व्यवस्थित रूप से कार्य कर रही हैं। जिस प्रपल्शन मॉड्यूल से लैंडर अलग हुआ था, उसमें अब भी 150 किलोग्राम से ज्यादा ईंधन शेष है, लिहाजा वह 3-6 माह के स्थान पर कई वर्षों तक चांद की कक्षा में सक्रिय रह सकता है। लैंडर के उतरने के अंतिम 15-20 मिनट बेहद नाजुक माने जाते हैं, क्योंकि उसकी स्थिति ‘चक्रव्यूह’ जैसी होती है। हम 23 अगस्त की शाम का इंतजार कर रहे हैं। ‘लूना-25’ जिन कारणों से नष्ट हुआ, वे तकनीकी भी हो सकते हैं, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी संभव है अथवा कुछ अन्य कारण भी हो सकते हैं। रूस की अंतरिक्ष एजेंसी उन कारणों की जांच करेगी, लेकिन हमारी टकटकी ‘चंद्रयान-3’ पर है। ईश्वर सब भला करेंगे। इस बार वैज्ञानिकों की कोशिशें हैं कि पिछली वाली गलतियां न दोहराई जाएं, इसलिए इस बार सफलता की उम्मीद ज्यादा है।