
-सनत जैन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिकाकर्ता केके मिश्रा ने, विभोर खंडेलवाल अधिवक्ता के माध्यम से एक जनहित की याचिका दायर की है। इस याचिका में उज्जैन के महाकाल लोक में हवा से 6 सप्तऋषियों की प्रतिमा गिरने, महाकाल लोक में अरबों रुपए के भ्रष्टाचार के खिलाफ याचिका दायर की गई है। याचिकाकर्ता ने मांग की है, कि भ्रष्टाचार की जांच हाईकोर्ट की निगरानी में हो। इस मामले में राज्य सरकार की ओर से आपत्ति जताते हुए सरकार की ओर से कहा गया है, कि याचिकाकर्ता एक राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार ने यह भी कहा, कि इस मामले की लोकायुक्त जांच शुरू हो गई है। सरकार की ओर से कहा गया, कि याचिकाकर्ता हाईकोर्ट आने से पहले लोकायुक्त या ईओडब्ल्यू में जा सकते थे। लेकिन वह सीधे हाईकोर्ट आ गए हैं। सरकार की ओर से याचिका निरस्त करने की बात कही गई है। इसमें सबसे बड़ी आश्चर्य करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता को एक राजनीतिक दल से जुड़ा बताया गया है। अतः उसकी याचिका पर विचार नहीं किया जाना चाहिए। इससे तो यही स्पष्ट होता है, कि राजनीतिक दल के नेता जो आरोप लगाते हैं। वह सही नहीं होते हैं। सरकार के इस पक्ष को जानने के बाद विशेष रूप से भाजपा नेताओं द्वारा समय-समय पर इसी तरह की जो याचिकाएं न्यायालयों में लगाई जाती हैं। हाल ही में राहुल गांधी को सूरत की कोर्ट से मानहानि के एक मामले में 2 साल की सजा हुई है। और उनकी संसद से सदस्यता भी समाप्त हो गई। इसके अलावा सैकड़ों और भी मामले हैं। जिसमें भाजपा नेताओं द्वारा हाई कोर्ट और सुप्रीमकोर्ट में समय-समय पर याचिका दायर की हैं। इस मामले में राज्य सरकार द्वारा जो पक्ष रखा गया है। यदि उसे सही मान लिया जाए, तो भविष्य में राजनेताओं तथा राजनीतिक दलों द्वारा जो याचिका दायर की जाती है, उसमें इसी तरह से याचिका को खारिज करने की मांग की जा सकती है। लोकायुक्त मैं पहले भी महाकाल लोक में हुए भ्रष्टाचार की शिकायत की गई थी। जिस पर लोकायुक्त संगठन द्वारा कोई त्वरित कार्यवाही नहीं की गई थी। मामूली आंधी में जब सप्तऋषियों में से 6 सप्त ऋषि की प्रतिमाएं गिरने से खंडित हुई। उसके बाद इस मामले ने तूल पकड़ा, और लोकायुक्त संगठन ने आनन-फानन में जांच शुरू कर दी। लोकायुक्त संगठन और ईओडब्लू की जांच किस तरह से होती है। और कितना समय लगाता हैं। इसका अंदाजा सभी को है। यदि याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट की शरण ली है, तो सरकार को अपना पक्ष इस तरीके से रखना चाहिए था, जिसमें शासन की बात सामने आती। लेकिन शासन का यह कहना कि एक राजनीतिक दल से जुड़े हुए, व्यक्ति द्वारा याचिका दायर की गई है। अतः इस मामले की याचिका हाईकोर्ट खारिज कर दे। मध्य प्रदेश शासन की ओर से जो पक्ष रखा गया है, उसका तो एक ही मतलब निकलता है। राजनीतिक दल अथवा राजनेता जो भी आरोप लगाते हैं। वह राजनीति से प्रेरित होते हैं, उनमें कोई सत्यता नहीं होती है। ऐसी स्थिति में राजनीतिक दलों अथवा उनसे जुड़े हुए लोगों की याचिका पर हाईकोर्ट को सुनवाई नहीं करनी चाहिए? शासन व्यवस्था असंवेदनशील हो गई है। शिकायतों का निपटारा नहीं होता है। उन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। लोगों को मजबूरन न्यायालयों की शरण में जाना पड़ता है। शासन भी यह कहने लगे है, कि यदि आपको शासन की कार्यवाही पर विश्वास नहीं है, तो न्यायायल चले जाये। यह एक तरह से शासन-व्यवस्था की निष्फलता है। शासन के उपर सभी पक्षों को विश्वास हो। उनका भी पक्ष सुना जाता, तो न्यायालय में जाने की जरुरत ही नहीं होती। शासन को इस पर भी विचार करना होगा।