EducationPolitics

संसद में विवादित बयान : संविधान ने सब कुछ करने की छूट दी… गृहमंत्री

-ओम प्रकाश मेहता-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारत की मौजूदा सरकार की यह सोच कि संविधान ने बहुमत वाली सरकार को सब कुछ करने की छूट दी है हमारे संविधान के परिपेक्ष में कितनी सही या गलत है? यह तो राजनीतिक पंडितों के विचार विमर्श की विषय वस्तु है, किंतु भारत के हर जागरूक बुद्धिजीवी नागरिक की दृष्टि में मौजूदा सरकार की संसद में की गई यह गर्वोक्ति संवैधानिक दृष्टि से बिल्कुल भी उचित नहीं है, क्योंकि अतीत में ऐसी ही सोच रखने वाली पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसका खामियाजा भुगत चुकी है।
गृह मंत्री अमित भाई शाह ने पिछले दिनों संसद में दिल्ली सेवा अध्यादेश प्रस्तुत करते हुए कहा था कि हमारी सरकार बहुमत में है और बहुमत वाली सरकार को हमारे संविधान के तहत हर कदम उठाने और फैसला लेने की छूट है, हमें इस कार्य से कोई नहीं रोक सकता। गृह मंत्री के इस बयान से देश के राजनीतिक क्षेत्रों में हलचल सी मच गई है और विभिन्न विचारक गृहमंत्री के इस कथन के विभिन्न अर्थ निकाल रहे हैं। गृह मंत्री के इस बयान व दिल्ली सेवा अध्यादेश की वास्तविक तथा कथा यह है कि दिल्ली में मोदी जी की नाक के नीचे भाजपा विरोधी आप की सरकार है गृह मंत्री व प्रधानमंत्री ने कई तरीकों से दिल्ली की इस सरकार को कसने या इसे अपने नियंत्रण में लेने की कोशिश की, किंतु उन्हें सफलता नहीं मिली, तब सरकार संसद में दिल्ली सेवा अध्यादेश लेकर आई जिस पर संसद में इन दिनों हंगामा पूर्ण चर्चा जारी है, किंतु देश की राजनीति के पंडितों का कहना है कि देश के गृहमंत्री को ऐसा बयान देने से पहले देश का अतीत जानने के लिए इंदिरा जी के शासन का इतिहास पढ़ लेना चाहिए था और उनके 19 महीनों के आपातकाल का हश्र जान लेना चाहिए था, इसके बाद संविधान की दुहाई देकर संसद में बयान देना चाहिए था, क्योंकि हमारे संविधान ने बहुमत वाली सरकार को हर तरह की मनमानी करने की छूट नहीं दी है, संविधान व संसद के नियमों के अनुसार सरकार चलाने की संविधान ने मनसा जाहिर की है, इसलिए एक जिम्मेदार गृहमंत्री को प्रजातंत्र के सबसे महान मंदिर में ऐसी बयानबाजी नहीं करनी चाहिए।
यही नहीं… यदि हम आज के संसदीय परिप्रेक्ष्य में मौजूदा सरकार को देखें तो सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि प्रधानमंत्री और सत्ता पक्ष के नेता प्रधानमंत्री लगातार संसद की उपेक्षा कर रहे हैं, जिस संसद में राज्यसभा के सभापति को यह कहना पड़े कि वह प्रधानमंत्री जी को संसद में हाजिर रहने का निर्देश नहीं दे सकते उस देश की संसद अपने आप में कितनी असहाय है? देश का पूर्वोत्तर भाग सांप्रदायिकता की आग में जल रहा है मणिपुर मिजोरम की आग दिन दूनी रात चौगुनी फैल रही है और हमारी केंद्र सरकार व उसके प्रधानमंत्री चैन की बंसी बजा रहे हैं? आखिर यह परिदृश्य क्या संदेश दे रहा है? जिस लोकतंत्री देश के प्रति पक्ष को संसद में प्रधानमंत्री की वाणी सुनने के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़े उस देश में लोकतंत्र की उम्र कितनी रह गई है, यह कोई नहीं जानता क्या? किंतु किया क्या जाए सरकार बहुमत वाली है कुछ भी कर सकती है यह संदेश तो गृह मंत्री जी दे ही चुके हैं?
मेरी दृष्टि में इसे प्रजातंत्रिय दोष ही कहा जा सकता है? क्योंकि यहां की सर्वोच्च शासक राष्ट्रपति है, जो प्रधानमंत्री की मनमर्जी से आज इस कुर्सी पर है ऐसे में कितने ही विपक्षी दल सरकार की शिकायतें उन तक पहुंचाए उससे क्या होना जाना है? अब आज की तारीख में सबसे मौजू और ज्वलंत सवाल यही है कि देश की सत्ता व उस पर काबिज देश के कर्णधारो के खिलाफ वाजिब शिकायतें भी किसके सामने प्रस्तुत की जाए? और कौन उन पर लगाम लगा सकता है? क्या इसके लिए प्रजातंत्रिय देश में अगले चुनावों तक इंतजार करना पड़ेगा? हमारे संविधान निर्माताओं ने क्या कभी ऐसी स्थिति की कल्पना नही की थी? आज सरकार मनमानी पर है और देश उनकी नादानी पर।

 

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker