
-डॉ. भरत मिश्र प्राची-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
देश में जैसे-जैसे चुनाव की तिथियां नजदीक आती जा रही है राजनीतिक सरगर्मिया तेज होती जा रही है। राजनीतिक के इस खेल में एक दूसरे को मात देने की राजनीतिक चालें तेज हो गई है। लोकसभा चुनाव में सत्ता पक्ष को मात देने के लिये बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई में जैसे ही विपक्ष एक साथ खड़े होने की कोशिश करने लगा, अभी विपक्ष सही तरीके से सत्ता पक्ष के खिलाफ साझा मंच बना ही नहीं पाया, कि इसमें तोड़-फोड़ की राजनीतिक प्रक्रिया शुरू हो गई जिससे गरमायी राजनीतिक चाल से सियासत में भूचाल आ गया। इस भूचाल में एकता भवन का कौन सा खंभा कब गिर जायेगा, कुछ कहा नहीं जा सकता। विपक्षी खेमें में शामिल महाराष्ट राज्य के एनसीपी ग्रुप के अजित पवार एवं कुछ सदस्यों द्वारा सत्ता पक्ष से हाथ मिला लेने के बाद विपक्षी खेमें में हलचल मच गई है। सत्ता पक्ष की ऐसी कौन सी राजनीतिक चाल रही जिसने विपक्षी एकता भवन के एक मजबूत स्तंभ में दरार पैदा कर दी। इस हालात ने समस्त विपक्ष के कान क्षड़े कर दिये है। बिहार राज्य के मुख्य मंत्री विपक्षी एकता के सूत्रधार जदयू प्रमुख नीतीश कुमार भी सकते में आ गये है, कहीं उनके घर में भी महाराष्ट वाली स्थिति न बन जाये। जहां विपक्ष को एक करते-करते अपना घर हीं न बिखर जाय। विपक्षी खेमें में शामिल तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पं. बंगाल राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी एलर्ट हो गई है, जब कि वहां कोई खास इस तरह का खतरा नहीं होने के आसार है। विपक्षी खेमें में शामिल कांग्रेस को भी शक है कि उसके सत्ताधारी राज्य राजस्थान एवं छत्तीसगढ़ में जहां अभी विधान सभा चुनाव होने वाले है चुनाव पूर्व तोड़-फोड़ की राजनीतिक प्रक्रिया हो सकती है जिसके लिये वह हर कदम पर एलर्ट नजर आ रही है। छत्तीसढ़ में तो उसे किसी तरह का खतरा नजर नहीं आ रहा है पर राजस्थान में सचिन पायलट प्रकरण को लेकर चिुता बनी हुई है जिसका हल निकालने में सक्रियता जारी है। विपक्षी खेमें में शामिल सपा एवं आप को फिलहाल इस तरह का डर तो नहीं सता रहा है पर इनको भी अलग थलग करने के लिये सत्ता पक्ष की कोई न कोई राजनीतिक चालें जरूर हो सकती है। किस चाल में कौन कब फंस जाय, कुछ कहा नहीं जा सकता। साम, दाम दंड भेद राजनीतिक चाल के वे मोहरे है जिसके सहारे सत्ता पक्ष विपक्ष को मात देता रहा है। जिसके हाथ सत्ता की चाबी आ जाती वह सत्ता की सैर से कभी अलग नहीं होना चाहता। विपक्ष एक साथ खड़ा न हो पाये, इसके लिये हर तरह के राजनीतिक हथकंडा अपनाने के लिये सत्ता पक्ष सदैव तैयार रहता है। वह जानता है कि यदि विपक्ष एक साथ खड़ा हो जाय, तो उसे मात देना आसान नहीं। इतिहास गवाह है कि जब-जब विपक्ष एक साथ खडा होकर चुनाव लड़ा है, उसे सफलता मिली है,। सत्ता परिवर्तन का दो हीं कारण होता है जनाक्रोश एवं विपक्षी एकता। फिलहाल देश में जनाक्रोश तो नजर आता नहीं, विपक्षी एकता में भी दरार नजर आ रही है। जहां विपक्षी खेमें में आपसी मतभेद साफ-साफ दिखई देने लगे है। विपक्षी ही विपक्षी को सत्ता पक्ष का हितैषी बता रहा तो सत्ता पक्ष के लिये विपक्ष से लडना और आसान हो गया है। कांग्रेस के बिना विपक्षी एकता संभव नहीं और कांग्रेस से कई विपक्षियों को मेल नहीं। इस तरह के हालत में विपक्षी एकता बन पाना कतई संभव नहीं। अपने अपने कुलबे को बचाने में ही विपक्ष व्यस्त नजर आ रहा है जो विपक्षी एकता के मार्ग में सबसे बड़ रोडा है। एक समय था जब सत्ता पक्ष के खिलाफ समस्त विपक्ष एक साथ खड़ा नजर आता, आज वह स्थिति नहीं है। विपक्षी खेमे का ही एक धड़ा आज सत्ता पर विराजमान है। जिसे मात देना आसान नहीं। सत्ता परिवर्तन देश की अवाम हीं कर सकती है, जब जनाक्रोश हो। आज जनाक्रोश कहीं नजर नहीं आ रहा है जो सत्ता परिवर्तन का कारण बने।