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दिल्ली हाईकोर्ट का संद‍िग्धर आतंकी को जमानत देने से इनकार

नई दिल्ली, 19 सितंबर (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। दिल्ली उच्च न्यायालय (एचसी) ने संदिग्धं आतंकी मोहम्मद आमिर जावेद को जमानत देने से इनकार कर दिया है। उस पर भारत में आतंकवादी गतिविधियों की योजना बनाने में कथित संलिप्तता के लिए गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम, 1967 के तहत आरोप लगाया गया है।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनीश दयाल की खंडपीठ ने इस संभावना का हवाला देते हुए जमानत देने से इनकार कर दिया कि जावेद ने विस्फोटकों और संभावित जानमाल के नुकसान से जुड़ी आतंकवादी गतिविधियों को शुरू करने की साजिश की जानकारी रखने वाले व्यक्तियों के नेटवर्क में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई होगी।

अदालत ने कहा कि जावेद इस नेटवर्क की सबसे कमजोर कड़ी है या बड़ा हिस्सा, इसका निर्धारण मुकदमे के दौरान स्थापित किया जाएगा। इसलिए, इस स्तर पर, अदालत का मानना था कि उसे जमानत पर रिहा करना उचित नहीं होगा।

जावेद को इस मामले के सिलसिले में 14 सितंबर, 2021 को गिरफ्तार किया गया था और जब इस साल की शुरुआत में जमानत के लिए उसकी अपील दायर की गई थी, तब उसने लगभग 20 महीने हिरासत में बिताए थे। उसका तर्क था कि इस अवधि में उसे रिहा नहीं किया गया है।

अदालत ने 18 मई के ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा, जिसने जावेद को नियमित जमानत देने से इनकार कर दिया था और उस फैसले को चुनौती देने वाली उसकी अपील खारिज कर दी।

यह मामला 2021 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल द्वारा दर्ज की गई एक एफआईआर से उपजा है, जिसमें भारत में सक्रिय एक आतंकी मॉड्यूल के भीतर विस्फोटक हमलों को अंजाम देने की गहरी साजिश का आरोप लगाया गया है।

अभियोजन पक्ष ने दलील दी कि जावेद बड़ी आतंकी गतिविधियों के हिस्से के रूप में आईईडी बम विस्फोट करने की साजिश में शामिल था।

अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों के प्रारंभिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि जावेद पर कथित आतंकी गतिविधियों के लिए साजिश रचने और आईईडी के साथ-साथ ग्रेनेड और पिस्तौल सहित अन्य हथियार और गोला-बारूद रखने से संबंधित गंभीर आरोप हैं।

बेंच ने कहा कि जांच में भारत में बम विस्फोटों को अंजाम देने के इरादे से आतंकी मॉड्यूल के लिए काम करने वाले कई व्यक्तियों की एक बड़ी साजिश का खुलासा हुआ।

जावेद को हथियारों और विस्फोटकों की बरामदगी का एक अभिन्न अंग माना गया था। जो प्रथम दृष्टया, इस स्तर पर उसकी जमानत पर रिहाई की गारंटी नहीं देता है।

 

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