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राम के भरोसे आम चुनाव

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

वर्ष 2024 के आम चुनाव के मद्देनजर, अयोध्या के राम मंदिर पर, भाजपा ही नहीं, बल्कि आरएसएस और विहिप ने भी एक ‘मास्टर प्लान’ तैयार किया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा का लक्ष्य 51 फीसदी वोट हासिल करने का है, ताकि लगातार तीसरी बार सत्ता मिल सके। इस संदर्भ में अयोध्या का निर्माणाधीन राम मंदिर एक बड़ा चुनावी मुद्दा साबित हो सकता है। इस ‘मास्टर प्लान’ पर प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और भाजपा अध्यक्ष ने पार्टी पदाधिकारियों के साथ अलग से विमर्श किया है। प्रधानमंत्री मोदी 22 जनवरी को रामलला की मूर्ति के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का उद्घाटन करेंगे और भाजपा कार्यकर्ता गांव-गांव, घर-घर जाकर उस पावन कार्यक्रम का सीधा प्रसारण जन-जन के लिए जीवंत करेंगे। यह अभियान 1 जनवरी, 2024 से आरंभ किया जाएगा।

भाजपा और संघ परिवार 15 जनवरी तक करीब 12 करोड़ परिवारों के 60 करोड़ लोगों से संपर्क करेंगे। उन्हें भगवान राम का चित्र और जन्मभूमि पर पूजित अक्षत (चावल) देंगे। उन्हें 22 जनवरी के समारोह को सामूहिक रूप से देखने, भजन और भोग का न्योता दिया जाएगा। विहिप ने 22 जनवरी को देश के 5 लाख गांवों के मंदिरों, धार्मिक या सार्वजनिक स्थलों में भी आयोजन का लक्ष्य तय किया है। दरअसल भाजपा और संघ परिवार की यह पूरी कवायद ‘हिंदूवादी’ है। उनका मानना है कि जिस तरह पालमपुर राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में सबसे पहले राम मंदिर का प्रस्ताव पारित किया गया था और उसके बाद कमोबेश उत्तरी, हिंदी पट्टी का भारत ‘राममय’ हो उठा था, उससे भी अधिक धु्रवीकरण अब होगा, क्योंकि राम मंदिर में प्राण-प्रतिष्ठा हो चुकी होगी। यानी साक्षात प्रभु राम का भव्य मंदिर आकार ले रहा है।

एक सांस्कृतिक, आध्यात्मिक लक्ष्य संपूर्ण हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी 30 दिसंबर को अयोध्या जाएंगे और 3000 करोड़ रुपए की परियोजनाओं की आधारशिला रखेंगे। उसी के साथ पूरी हो चुकी 23 परियोजनाएं अयोध्या की प्रजा को सौंपेंगे। भाजपा और संघ परिवार कुछ भी दलीलें दें, लेकिन 2024 का आम चुनाव प्रभु राम के भरोसे ही लड़ा जाएगा। भाजपा के लिए 50 फीसदी वोट हासिल करना टेढ़ी खीर है, लेकिन 350 या 400 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया गया है, तो भाजपा को एनडीए के साथ, 340-50 सीटें जीतना मुश्किल नहीं होना चाहिए। भाजपा उप्र, मप्र, छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान आदि राज्यों में 50-62 फीसदी वोट हासिल कर चुकी है, लेकिन बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल, पंजाब, दिल्ली सरीखे राज्यों में भाजपा कितनी सीटें जीत पाएगी, यह अब भी अहम सवाल है।

इन राज्यों में राम मंदिर का अपेक्षाकृत कम असर होता है, लिहाजा हिंदूवादी धु्रवीकरण भी उतना नहीं होता। फिर भी भाजपा नेतृत्व ने 324 सीटें जीतना तो गारंटी माना है। वह किस आधार पर संभव है? भाजपा के मुकाबले एक-एक सीट पर, एक साझा उम्मीदवार उतारने की ‘इंडिया’ की रणनीति अभी तक कारगर नहीं हो सकी है। उससे पहले ही भाजपा और संघ परिवार ने अपना ‘मास्टर प्लान’ पेश कर दिया है कि राम मंदिर के जरिए 2024 के जनादेश तक पहुंचना आसान होगा, लिहाजा उसे ‘श्रीरामोत्सव’ के तौर पर मनाना तय किया गया है। देश में बेरोजगारी, महंगाई, प्रति व्यक्ति आय, देश पर बढ़ता कर्ज आदि ऐसी राष्ट्रीय समस्याएं हैं, जिनसे आम आदमी संतप्त और प्रभावित हो रहा है। क्या इन मुद्दों पर आम चुनाव की दशा और दिशा जरा-सी भी तय नहीं होगी? राम मंदिर ने 1990 के दशक की शुरुआत में दो चुनाव जरूर जीते थे, लेकिन उसके बाद उप्र में ही वह पराजित होने लगी थी। 2019 के आम चुनाव में 224 सीटों पर भाजपा को 50 फीसदी या उससे अधिक वोट मिले थे। चुनाव उसी तर्ज पर होगा, यह निश्चित नहीं है, लेकिन भाजपा राम मंदिर को एक भावुक, हिंदू अस्मिता का मुद्दा बना देना चाहती है।

 

 

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