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कहीं ‘उड़ता हिमाचल’ न बन जाए प्रदेश

-शरद गुप्ता-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

आज हर एक आंख नम थी, मन व्यथित था और दिल डर के मारे पसीज रहा था, क्योंकि आज मैंने फिर एक नौजवान की अर्थी उठते हुए देखी, जिसे नशे ने अपना ग्रास बना लिया था। क्या बीती होगी उन मां-बाप पर, जिन्होंने 25 साल तक अपने जिगर के इस टुकड़े को बड़े अरमानों से पाला था। जी हां, यह कहानी यहीं खत्म होने वाली नहीं, अपितु आने वाली कल की भयावह तस्वीर है।

युवाओं में नशे की बढ़ती लत गंभीर चिंता का विषय है। दिन-प्रतिदिन इसका बढ़ता सेवन देश को खोखला करता जा रहा है। भारत सरकार द्वारा करवाए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में 16 करोड़ लोग शराब, 3.1 करोड़ भांग, 2.3 करोड़ अफीम व चिट्टा और 77 लाख लोग सूंघने वाले नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। कुछ दिनों पहले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे की रिपोर्ट की मानें तो हिमाचल में 31.9 फीसदी, यानी हर तीसरा व्यक्ति शराब का सेवन करता है। प्रदेश में चिट्टे का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। एक आकलन के अनुसार हिमाचल के 27 फीसदी युवा नशे की चपेट में आ चुके हैं। कहीं न कहीं यह आंकड़ा खतरे की घंटी है। देवी-देवताओं में अटूट श्रद्धा और विश्वास रखने वाले हिमाचली भला कैसे इस नशे की चपेट में फंसते चले जा रहे हैं, विश्वास करना मुश्किल हो जाता है। देवभूमि में पैर पसार रहे नशे रूपी इस असुर द्वारा मचाई जा रही विध्वंसता को लेकर मात्र युवा वर्ग को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। कहीं न कहीं समाज का बदलता दृष्टिकोण भी इसके लिए उतना ही उत्तरदायी है।

पाश्चात्य संस्कृति की देखादेखी में हम भारतीय संस्कृति के मूल स्वरूप को भूलते जा रहे हैं। आलम यह है कि हमारे समाज ने नशे के सेवन को अपने खानपान का हिस्सा समझ लिया है। कुछ लोग तो बच्चों के सामने भी नशा करने में नहीं हिचकिचाते और कटु सत्य तो यह है कि बच्चे इसे नियमित जीवन का एक भाग समझ लेते हैं। इसे एक सामाजिक बुराई के रूप में नहीं देखा जा रहा। यही कारण है कि भारत में शराब पीने वालों में 1.3 प्रतिशत लोग 10 से 17 वर्ष की उम्र के बच्चे हैं। जबकि हिमाचल में नशीले पदार्थ सूंघने वाले बच्चों की संख्या देश की औसत से कहीं अधिक है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, नशा करना शुरू कर देते हैं। फिर चाहे वह लड़का हो या लड़की, हर कोई इसका स्वाद चखने की जिज्ञासा रखता है। यह जिज्ञासा कब लत बन जाती है, पता ही नहीं चलता और जब पता चलता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। युवा अक्सर एक-दूसरे की देखादेखी में भी मादक पदार्थों का सेवन करते हैं। इसे एक फैशन समझा जाने लगा है। हिमाचल में चिट्टे का सेवन दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। नशे के कारोबारी शुरू में इसे युवाओं में मुफ्त तक बांट देते हैं, लेकिन जब व्यक्ति इसका आदी हो जाता है तो इसे खरीदने के लिए वह आपराधिक घटनाओं तक में संलिप्त हो जाता है। देखा यह भी जा रहा है कि जो बच्चे इस चंगुल में फंस गए हैं, उनके माता-पिता बचाव में लगे रहते हैं। अभिभावकों द्वारा ऐसे बच्चों को अक्सर पुलिस की नजरों से बचाने के प्रयास किए जाते हैं।

उस समय तो वे इस बात से अनभिज्ञ होते हैं कि उनके ऐसा करने से बच्चा नशे के दलदल में फंसता चला जा रहा है। एक समय ऐसा आता है जब माता-पिता खुद को असहज महसूस करते हैं और फिर नशा निवारण केंद्रों का रुख किया जाता है। कुछ भाग्यशाली तो इस दलदल से बाहर निकल जाते हैं, लेकिन कुछ को मौत अपनी चपेट में ले लेती है। नशे के दुष्प्रभाव से व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर बुरा असर पड़ता है। नशेड़ी आदमी अपनी धन-संपत्ति के साथ-साथ अपना इज्जत-मान भी खो बैठता है। नशे के चलते आदमी सही और गलत में फर्क भूल जाता है और जो पारिवारिक और सामाजिक कलह का कारण बनता है। हालांकि सरकारी और समाजसेवी संस्थाओं द्वारा विभिन्न स्तरों पर नशे पर शिकंजा कसने हेतु प्रयास किए जा रहे हैं।

हाल ही में हिमाचल सरकार द्वारा नशा निवारण बोर्ड का गठन किया गया है और ड्रग फ्री हिमाचल नाम से एक मोबाइल ऐप भी बनाया गया है। प्रदेश सरकार ने नशा विरोधी कानून में बदलाव किए हैं, जिसके अनुसार मादक पदार्थों की पकड़ पर गैर जमानती वारंट जारी किए जाते हैं। प्रदेश में सरकारी और गैर सरकारी नशा निवारण केंद्र बनाए गए हैं और वर्ष 2019 में नशीले पदार्थों के आदी व्यक्तियों के पुनः उद्धार हेतु एक राज्य नीति बनाई गई है। लेकिन सरकार द्वारा चलाए जा रहे प्रयास तब तक सफल नहीं हो पाएंगे जब तक उन्हें आम जनता का सहयोग नहीं मिलता। इस कार्य के लिए समाज के हर व्यक्ति को सक्रिय रूप से आगे आना होगा। युवाओं को नशे के दुष्परिणामों के प्रति समय रहते सजग करना होगा। स्कूलों, कालेजों और विभिन्न शिक्षण संस्थानों में निरंतर जागरूता अभियान चलाने होंगे। कहीं ऐसा न हो हमारा प्रदेश भी ‘उड़ता हिमाचल’ बन जाए। नशाखोरी रोकने के लिए जहां सरकारी स्तर पर प्रयास होने चाहिएं, वहीं सामाजिक स्तर पर भी प्रयास जरूरी हैं। नशे को रोकना केवल सरकार का काम नहीं है, समाज के हर व्यक्ति को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। तभी हम इस व्याधि से बच सकते हैं व स्वस्थ समाज का निर्माण कर सकते हैं।

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