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14 अगस्त विभाजन विभीषिका दिवस पर विशेष : आजादी के साथ विभाजन की विभिषिका का दर्द नहीं भूल सकते देशवासी

-सुरेश सिंह बैस “शाश्वत”-

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

भारत विभाजन का दौर देश और देश के लोगों के लिए सबसे कष्ट वाला दौर था। अनगिनत लोगों को अपना घर, जमीन सब कुछ छोड़ना पड़ा। और अपने ही देश में शरणार्थी बन कर रहना पड़ा। लूट-पाट और कत्लेआम की भयानक स्थिति ने देश को घेर लिया था। कुछ सत्ता के भूखे लालची लोगों के चलते देश की आजादी के लिए बलिदान हुए शहीदों का सपना अधुरा रह गया। इतने सालों के बाद भी विभाजन में अपने लोगों को खोने वालों का दर्द के किस्से सुनाई दे जाते हैं। ऐसे ही अनगिनत लोगों की याद में प्रत्येक वर्ष 14 अगस्त को यह दिन मनाया जा रहा है।

देश के बंटवारे के दर्ज को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। नफरत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहन और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। मानव विस्थापन और पलायन की दर्दनाक कहानी है। उन्हीं लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में 14 अगस्त को विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है। भारत का विभाजन अभूतपूर्व मानव विस्थापन और पलायन की दर्दनाक कहानी है। यह एक ऐसी कहानी है, जिसमें लाखों लोग एकदम विपरीत वातावरण में नया आशियाना तलाश रहे थे।

अंग्रेजी सरकार ने जाते जाते गहरी टीस दिया था। ज्ञातव्य हो कि 20 फरवरी, 1947 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली ने एलान किया कि ब्रिटिश हुकूमत ने 30 जून, 1948 से पहले सत्ता का हस्तांतरण कर भारत छोड़ने का फैसला किया है। हालांकि अंग्रेजों ने जाते जाते भारत और पाकिस्तान के बंटवारे की वह टीस भी दी जिसे आज तक नहीं भुलाया जा सका है। सरकारी आंकड़े कहते हैं कि 2 जून, 1947 को विभाजन की योजना के आसार नजर आ रहे थे तो वही कुछ नेताओं को इसमें उज्जवल भविष्य नजर आ रहा था। इस इतिहास की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि विभाजन के लिए वे ही नेता मानसिक रूप से तैयार थे, जिन्हें इसमें अपना हित और उज्ज्वल भविष्य नजर आ रहा था।

4 जून, 1947 को वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने एक ऐतिहासिक पत्रकार सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इसमें कोई दिक्कत नहीं है। लोग खुद को स्थानांतरित कर लेंगे। लेकिन विभाजन के चलते लगभग 1.3 करोड़ लोगों को अपनी जड़ों से उखड़ कर विस्थापन का शिकार होना पड़ा था। तार-तार हो गया था सामाजिक तानाबाना। यह विश्वास और धार्मिक आधार पर एक हिंसक विभाजन की कहानी होने के अतिरिक्त उस दर्द की भी कहानी है कि कैसे लोगों का वर्षों पुराने सह-अस्तित्व का युग अचानक समाप्त हो गया था। लगभग 60 लाख गैर- मुसलमान उस क्षेत्र से पलायन कर गए जो बाद में पश्चिमी पाकिस्तान बन गया। 65 लाख मुसलमान पंजाब, दिल्ली, आदि के भारतीय हिस्सों से पश्चिमी पाकिस्तान चले गए थे।

इस विभाजन का सबसे दर्दनाक हश्र यह हुआ था कि इस विभाजन के कारण मारे गए थे लगभग पांच से 10 लाख लोग। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के चलते लगभग 20 लाख गैर मुसलमान पूर्वी बंगाल से निकल कर पश्चिम बंगाल आए। पूर्वी बंगाल बाद में पूर्वी पाकिस्तान बन गया। 1950 में लगभग 20 लाख और गैर मुस्लमान पश्चिम बंगाल आए। लगभग दस लाख मुसलमान पश्चिम बंगाल से पूर्वी पाकिस्तान चले गए। इस विभीषिका में मारे गए लोगों का आंकड़ा पांच लाख बताया जाता है। लेकिन अनुमान है कि इस विभीषिका में लगभग पांच से 10 लाख लोगों की मौत हुई थी।

भारत विभाजन और पाकिस्तान की मांग मोहम्मद अली जिन्ना ने की थी। भारत विभाजन का वर्णन भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम 1947 में किया गया। विभाजन तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन की देख-रेख में हुआ अतः इसे माउंटबेटन योजना भी कहते हैं। भारत-पाकिस्तान की विभाजन रेखा सर सिरिल रेडक्लिफ द्वारा बनाई गयी। 14 अगस्त को भारत को विभाजित कर एक नया मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान बनाया गया। सांप्रदायिक बटवारे में लोगों के विस्थापन से पूर्व ही नए राष्ट्र निर्माण ने दंगे भड़का दिए। 15 अगस्त को भारत और 14 अगस्त को पाकिस्तान अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। भारत की यह विनाशकारी स्थिति अंग्रेजों की ‘फूट डालो राज करो’ नीति का नतीजा था।

 

 

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