EducationPolitics

कोरोना का संकट, सांसों का आपातकाल

-प्रो. मनोज डोगरा-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

कोरोना, कोरोना, कोरोना। वर्तमान समय में यही एक ऐसा शब्द है जो हर किसी की जुबां से सुनने को मिल रहा है और आखिर मिले भी क्यों नहीं! कोरोना इस कदर अपना वर्चस्व बनाने की फिराक में है मानो इससे बड़ी ताकत विश्व में कोई है ही नहीं। कोरोना लोगों के अरमानों से इस कदर खेल रहा है कि मानो प्राण बलिदान ही अंत होगा। होने को तो आज कोरोना महामारी को फैले लगभग डेढ़-दो वर्ष हो रहे हैं, लेकिन इसने पूरे विश्व को कई दशक पीछे धकेल दिया है। पूरा विश्व, खासकर अपना देश सभी कार्य छोडकर प्राण रक्षा में लगा हुआ है। इस वर्ष के आरंभ में रंग थोड़ा भले ही फीका पड़ा था, लोगों ने सोचा भी कि अब तो कोरोना महामारी चली गई, अब तो हम बच गए और लापरवाही शुरू हो गई, लेकिन कोरोना ने जब पुनः प्रहार किया तो कोई भी इससे संभल नहीं पाया क्योंकि प्रहार इतना भयंकर था कि संभलने को वक्त ही नहीं लगा। अपनी इस दूसरी लहर के सैलाब में कोरोना ने कइयों के परिवार तबाह कर दिए। एक बार फिर मजदूरों को रोजी-रोटी न मिलने के डर से घरों की ओर मुश्किल परिस्थितियों में पलायन का रास्ता अपनाना पड़ा क्योंकि कोरोना से तो बच जाते, मगर भुखमरी काल बनकर सामने खड़ी दिखने लग जाती है। मजदूर आखिरकार मजबूर था।

आज कहीं रात्रि कफ्र्यू लगाया जा रहा है तो कहीं वीकेंड लॉकडाउन, तो कहीं संपूर्ण लॉकडाउन। आखिर सख्ती से ही, मगर जान तो बचानी है। आज पूरा देश कोरोना से किसी न किसी तरह बच कर जीवन जीने की उम्मीद देख रहा है। शासन-प्रशासन, सरकार, जनता, सबके हाथ-पांव फूल चुके हैं। मानो देश में सांसों का आपातकाल सा आ गया हो। यह पहले से ही स्पष्ट था क्योंकि जब सावधानी हटेगी तो हादसा व दुर्घटना तो घटेगी ही। यहां भी ऐसा ही हुआ। जब कोरोना धीरे-धीरे समाप्ति की ओर जा रहा था तो लोगों ने सुरक्षा मानकों व मास्क को इस कदर खुद से दूर कर लिया मानो अमृत प्राप्ति हो गई हो। आयोजन ऐसे होने लगे मानो कई दशकों से कुछ हुआ ही न हो। बाजारों में भीड़ ऐसी उमड़ी कि न जाने बाजार में जिंदगी से कीमती क्या चीज बिक रही होगी? और तो और, राजनीतिक दलों ने दनादन ऐसी रैलियां व विशाल कार्यक्रम करने शुरू किए, मानो इसके बाद मौका ही नही मिलेगा। इस आग में घी का काम शादियों व चुनावों के मुहूर्तों ने किया।

और यहीं से जा रही कोरोना महामारी ने अपने पांव एक बार फिर पसारे और इस कदर फैला कि स्थिति सभी के सामने है। कोई भी इस भयावह स्थिति से अनजान नहीं है। अब तो मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे भारत में मौत व जीवन के बीच का ‘जीत सको तो जीतो’ का खेल सिलसिला लग गया हो। लेकिन दुख होता है कि इस खेल में कइयों ने अपनों को खो दिया है और कइयों के साथियों का जीवन दांव पर लगा है। भारत के लोगों को अभी भी वक्त है, उन्हें संभल जाना चाहिए अन्यथा स्थिति इससे भी भयंकर व भयावह होते समय नहीं लगेगा। फिर न मास्क काम आएगा और न ही ‘दो गज की दूरी, है जरूरी’ जैसी बातें। भारत देश व यहां के लोगों ने विभिन्न कालखंडों में अनेक महामारियों का मुकाबला किया है। कोरोना का भी अंत भारत से ही होगा, ऐसा प्रतीत होता है। लेकिन इसके लिए आवश्यकता है तो मात्र यह कि देशवासी ऐसा संयुक्त दृढ़ संकल्प करें कि कोरोना हार जाए। साथ ही मजबूत इच्छा शक्ति व संयम के साथ धैर्य रखकर विवेक से काम करते हुए स्वयं व अपनों के लिए सुरक्षा मानकों को अपनाने की भी जरूरत है। राज्य व केंद्र सरकारें मुसीबत पडने पर तो व्यवस्था कर रही हैं, मगर यही व्यवस्थाएं अगर पिछले एक वर्ष से सुचारू हो जाती तो आज स्थिति ऐसी नहीं होती। हिमाचल में हाल ही में चार जिलों में रात्रि कफ्र्यू भले ही लगा दिया हो, लेकिन ये केवल आदेश ही नहीं होने चाहिए, बल्कि जनता-शासन-प्रसाशन में एकरूपता होनी आवश्यक है, तभी इनकी पालना निश्चित हो सकती है।

हिमाचल प्रदेश आने वालों के लिए आरटी-पीसीआर रिपोर्ट लाने के आदेश जारी हुए हैं, लेकिन ये आदेश ही न रहें, बल्कि व्यावहारिकता में भी क्रियान्वयन हो, तभी कुछ होगा। राजनेता खुद रैलियां व कार्यक्रम करते रहें और जनता सख्ती का पालन करे, यह भी ठीक नहीं है। आदेश सभी के लिए एकरूप होने चाहिएं। इसमें आम व खास का फॉर्मूला नहीं लगना चाहिए। और रही लोगों में कोरोना के प्रति मानसिक संक्रमण की बात, तो लोगों को समझना होगा कि बुरे से बुरा वक्त आता है तथा चला जाता है क्योंकि यह वक्त है, यह न कभी रुका है, न ही किसी के लिए कभी झुका है। सब्र रखकर थोड़ी सख्ती झेलकर इस कोरोना नामक विपदा से भी पार पाया जा सकता है। मौतों के आंकड़े देख व सुनकर कोरोना का लोगों में खौफ फैल चुका है, लेकिन डरने की बात नहीं है। भारत में एक दिन में लगभग दो लाख से अधिक लोग कोरोना पर विजय भी पा रहे हैं। कोरोना के भय को अपने मन से निकालकर एक बार पुनः नई शुरुआत के लिए, राष्ट्र व समाज के विकास के लिए रचनात्मक कार्य करते हुए देश को एक आदर्श शीर्ष स्थान पर पहुंचाना है, यह तभी संभव हो सकता है जब कोरोना पर विजय मिलेगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker