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बढ़ता नशा चिंता का विषय, समाज के लिए भी खतरनाक

-राजेश कुमार चैहान-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

नशा इंसान को किस तरह दानव बना देता है, किस तरह यह दानव इंसान के होश खो लेता है, इसका पता हमें नशे के शिकार किसी व्यक्ति द्वारा किए जघन्य और दिल दहलाने वाली खबरों से अक्सर मिलता है। दो दिन पहले हिमाचल प्रदेश में एक नशेड़ी ने नशा करके अपनी मासूम बेटी, जिसकी उम्र अभी दो वर्ष की ही थी, हत्या कर दी और अपनी पत्नी को भी लहुलुहान कर दिया।

नशा नासूर बन गया है। देश के विकास में युवा वर्ग का सबसे बड़ा योगदान होता है। स्वस्थ और तंदरुस्त युवा देश के विकास को रफ्तार दे सकते है। लेकिन बहुत अफसोस की बात है कि आज भारत के कुछ युवा नशे के आदी होकर अपनी जिंदगी को नरक बना रहे हैं। नशा, नाश का दूसरा नाम है। जिसने भी नशे का दामन एक बार पकड़ लिया उसे नशा मौत के मुँह तक तो ले ही जाता है साथ ही उसके घर परिवार का भी कई बार नाश कर देता है। नशा इंसान को हैवान भी बना देता है, हैवानियता के कारण नशेड़ी इंसान अपने घर-परिवार के सदस्यों के साथ यहाँ तक की अपने बच्चों के साथ भी क्रूरता भरा व्यवहार करने से गुरेज नहीं करता है। नशा जानलेवा, घर-परिवार बर्वाद करने वाला भी है, फिर भी न जाने क्यों कुछ लोग नशे के दानव को गले लगाने से बाज नहीं आ रहे? खासतौर पर न जाने कुछ युवा नशे को गले लगा अपनी तो जिंदगी बर्बाद करने के साथ अपने माँ-बाप के अरमानों को चकनाचूर कर रहे हैं। युवाओं को यह भी याद रखना चाहिए कि नशा न तो कोई फैशन है और न ही किसी दुख की दवा। आज हमारे देश में जो अपराध और अनैतिक काम बढ़ रहे हैं, उनका मुख्य कारण नशा भी है, नशा, नशा करने वाले इंसान की बुद्धिभ्रष्ट कर देता है, इंसान हैवान बन जाता है। नशा समाज के लिए भी अभिशाप है।

नशा किसी भी राज्य के विकास और युवा पीढी को कमजोर करने में अहम भूमिका निभाता है। आज भारत के कुछ राज्यों में नशा नासूर बनता जा रहा है। देश में इस नासूर ने न जाने अब तक कितनी ही जवानियाँ निगल ली और न ही कितने परिवार बर्बाद कर दिए, अगर नशे पर अभी भी नकेल नहीं कसी गई और युवा वर्ग को इस नशे के नासूर से नहीं बचाया गया तो भविष्य में इसके दुष्परिणाम और भयंकर सामने आ सकते है। सरकार को इस मुद्दे पर चिंता नहीं, बल्कि चिंतन करना चाहिए और इसके साथ युवा वर्ग को अपनी और अपने माँ-बाप की जिंदगी नरक नशे के आदी होकर नही बनानी चाहिए। नशा और नाश एक ही सिक्के के दो पहलु है। हमारे देश में नशे को लेकर खूब घटिया राजनीति भी होती है। सत्ता और विपक्ष एक दूसरे पर नशे को लेकर खूब आरोप प्रतिरोप लगाते है, लेकिन नशे के दलदल मे फँस कर अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी मारना कहाँ की समझदारी है ? दूसरों के कहने से स्वयँ अपने घर मे आग लगाने मे बेबकूफी नहीं है तो और क्या है?

माना कि सरकार का नशे के प्रति ढुलमुल रवैया नशे पर नकेल कसने पर फेल है, लेकिन लोग खुद तो समझदारी से काम लेकर इसके मकडजाल मे न फँसे और अपने बच्चों पर भी कड़ी नजर रखे। अगर बच्चों को बचपन से ही नशे से दुर रहने और इसके दुष्परिणामों के प्रति अवगत करवाया जाए तो जिदगी के किसी भी मोड़ पर वो नशे के आदी नही होंगे। नशा समाज के लिए भी अभिशाप है।

बहुत ही दुर्भाग्य और चिंताजनक है कि हिमाचल प्रदेश में भी नशे का नासूर अपने पैर पसार चुका है। प्रदेश में पिछले कुछ समय से ड्रग तस्करों का पकड़ा जाना और विभिन्न नशे की रुपों का खेप पकडा जाना बहुत बड़ी चिंता का विषय है। प्रदेश सरकार को इस मुद्दे पर चिंता नहीं, बल्कि चिंतन करना चाहिए। नशे पर लगाम कसने के लिए समाज को एकजुट होना पड़ेगा, समाजसेवी संस्थाओं को आगे आना पड़ेगा और मीडिया को भी इसके लिए विशेष अभियान चलाने चाहिए। केंद्र और राज्य सरकारों ने देश-राज्य में नशा मुक्त अभियान बेशक चलाएँ हैं, लेकिन यह तभी कामयाब होंगे, जब इसमें समाज भी अपना योगदान देगा। नशा मुक्त अभियानों में हर किसी को शामिल होना चाहिए, ताकि देश नशा मुक्त हो जाए और किसी की आँख का तारा कभी कोई नशा अस्त न कर पाए।

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