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सरकारी दफ्तर दिल्ली की आधिकारिक भाषाओं की अनदेखी नहीं कर सकते: जीके

नई दिल्ली, 25 जुलाई (सक्षम भारत)।

-पंजाबी व उर्दू को दिल्ली के सरकारी दफ्तरों में राजभाषा के तौर पर लागू करवाने के लिए भाषा प्रेमियों ने कानूनी राह चुनी

दिल्ली के 9 जिलों में स्थित केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों, सरकारी क्षेत्र के 19 बैंकों की शाखाओं, 545 पोस्ट आफिस तथा दिल्ली मेट्रो के सभी स्टेशनों को हिंदी व अंग्रेजी के साथ पंजाबी तथा उर्दू भाषा में भी जनसंपर्क करना पड़ सकता हैं। क्योंकि पंजाबी तथा उर्दू दिल्ली की राजभाषा है। इस संबंधी दिल्ली हाईकोर्ट में भाषा प्रेमियों की तरफ से जनहित याचिका भी दायर की गई है। जिस पर बुधवार को सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने 12 प्रतिवादियों को नोटिस जारी कर दिया है। इस बात की जानकारी दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके ने मीडिया को दी।

जीके ने बताया कि दिल्ली विधानसभा ने 2000 में पंजाबी तथा उर्दू को दिल्ली की दूसरी आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव पास किया था। जिसें हम दिल्ली राजभाषा एक्ट 2000 के नाम से जानते हैं। 2003 से यह एक्ट दिल्ली में लागू हैं। परंतु 16 साल बीतने के बाद भी अभी तक पंजाबी व उर्दू को सरकारी दफ्तरों में अनिवार्य नहीं किया गया हैं। जबकि बाकी प्रदेशों में प्रदेश की स्थानीय भाषा में सारा राजकीय कार्य करने का चलन हैं। लेकिन दिल्ली के सरकारी कार्यलयों में स्थानीय भाषा में पत्र व्यवहार की व्यवस्था तक नहीं हैं। जिस वजह से स्थानीय भाषाओं को संरक्षण देने वाला 27 अप्रैल 1960 को राष्ट्रपति द्वारा जारी आदेश की अनदेखी हो रहीं है।

जीके ने बताया कि पिछले 1 साल से हम इस मसले पर भाषा प्रेमी सरदार किशन सिंह के परिवार के संपर्क में थे तथा कानूनी नुक्तों को समझ रहें थे। किशन सिंह की मृत्यु के बाद अब उनकी पत्नी सुरजीत कौर तथा पुत्रवधू रुपिंदर कौर की तरफ से जनहित याचिका तथ्यों के साथ दायर की गई है। जिसमें हमने भाषा संरक्षण के नियम व कानूनों की अनदेखी को मुद्दा बनाया है। सीनियर वकील अमरजीत सिंह चंड़ोक ने हाईकोर्ट में कल इस केस में जिरह की थी।

जीके ने बताया कि भाषाई नियमों के तहत दिल्ली के सरकारी कार्यालयों में काम करने वाले सभी कर्मचारीयों को पंजाबी व उर्दू का ज्ञान जरूरी हैं। साथ ही सरकारी कार्यालयों में इस्तेमाल होने वाले सभी फार्म, विभागीय साहित्य, बोर्ड, नोटिस बोर्ड, साईन बोर्ड, नाम-पट्टों, दिशा संकेतों व होर्डिंग पर पंजाबी व उर्दू का इस्तेमाल जरूरी हैं। इसलिए राष्ट्रपति के 27 अप्रैल 1960 के आदेश, राजभाषा एक्ट 1963, संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित आधिकारिक भाषा प्रस्ताव 1968, दिल्ली आधिकारिक भाषा एक्ट 2000 तथा संविधान के अनुच्छेद 345 के तहत क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के मिले अधिकारों की रक्षा के लिए हाईकोर्ट का रुख किया गया है। इसके इलावा संविधान की 8वीं सूची में शामिल सभी भारतीय भाषाओं के विकास का वायदा निभाना भी सरकार की जिम्मेदारी में आता है।

जीके ने कहा कि दिल्ली शहर के साथ पंजाबी (गुरमुखी लिपि) तथा उर्दू (फारसी लिपि) का कई शताब्दी पुराना इतिहास है। इसलिए भाषाओं के सहारे रोजगार सृजन के साथ संस्कृति विस्तार के लिए यह कदम जरूरी है। जीके ने बताया कि इसी कारण केंद्र सरकार के कैबिनेट सचिव के साथ ही राजभाषा विभाग, प्रशासनिक सुधार विभाग, कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, डाक विभाग, दिल्ली सरकार तथा उपराज्यपाल दिल्ली को प्रतिवादी बनाया गया है। हमारी मुख्य मांग दिल्ली स्थित केंद्र सरकार के दफ्तरों में होने वाली भर्ती के विकेंद्रीकरण की हैं, जो कि राष्ट्रपति आदेश का ही एक भाग है। क्योंकि दिल्ली में नियुक्ति पाने वाले अधिकारियों को दोनों क्षेत्रिय भाषाओं के अनिवार्य ज्ञान संबंधी नियमों को बनाने या संशोधित करने की तत्काल जरूरत है। जिस प्रकार केंद्र सरकार अपने स्टाफ को हिंदी की टाईपिंग की सिखलाई देता हैं, उसी प्रकार पंजाबी व उर्दू की सिखलाई उक्त विभागों को देनी पड़ेगी।

जीके ने खुलासा किया कि नागरिकों को नियमों के अल्प ज्ञान का फायदा अभी तक सरकारें उठाती रहीं है। यही कारण हैं कि भारतीय डाक सेवा ने अभी अपने भर्ती नियमों में चुपचाप संशोधन कर लिया। 8 मार्च 2019 को डाक विभाग ने दिल्ली में भर्ती के लिए हिंदी,पंजाबी व उर्दू के ज्ञान को जरूरी शर्त के तौर पर रखा था। परंतु 4 जून 2019 को भर्ती नियमों में संशोधन करके सिर्फ हिंदी की जानकारी को जरूरी कर दिया है। जीके ने दावा किया कि भाषाओं को उनका हक मिलने से भाषा के सहारे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।

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