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कोरोना काल में नर्सों की भूमिका

-किशन बुशैहरी-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

प्रत्येक वर्ष विश्व भर में 6 मई से 12 मई तक नर्सेंस सप्ताह के रूप में मनाया जाता है व 12 मई को विश्व नर्सेंस दिवस के रूप में मनाया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा वर्ष 2021 को सम्पूर्ण विश्व में कोरोना काल खंड की इन विकट परिस्थितियों में मानव सेवा व मानवता के लिए संघर्षरत नर्सेस व मिडवाइफ को समर्पित किया गया है, जिसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा इस वर्ष विश्व की समस्त नर्सेंस के लिए ‘नेतृत्व करने के लिए एक आवाज’ सार्वजनिक जीवन में नर्सेंस के इस महत्त्वपूर्ण वर्ग के बारे में समाज में जागरूकता बढ़ाने के उद्देश्य से यह नारा उद्घोषित किया गया है। प्रत्येक वर्ष 12 मई को विश्व में नर्सेस दिवस के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह दिवस विश्व में आधुनिक नर्सिंग की जन्मदात्री, त्याग व करुणा की मूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्मदिवस है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार समस्त विश्व में 2 करोड़ 80 लाख के लगभग नर्सेस व मिडवाइफ मानव सेवा में कार्यरत हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित मापदंडों के अनुसार प्रति 1000 व्यक्तियों के लिए तीन नर्सेस का अनुपात होना चाहिए।

विश्व के 50 प्रतिशत से अधिक देशों में तो इस अनुपात की अनुपालना हो रही है, परंतु 25 प्रतिशत देशों में यह अनुपात 1000 व्यक्तियों पर एक ही है। भविष्य में विश्व में स्वास्थ्य सेवा के सुचारू संचालन हेतु लगभग 60 लाख नर्सों की आवश्यकता रहेगी। भारतीय नर्सिंग परिषद के अनुसार भारत में लगभग 31 लाख नर्सेस पंजीकृत हैं, जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित मापदंडों से काफी कम है। हिमाचल प्रदेश में इस अनुपात की स्थिति और भी दयनीय है। प्रदेश स्वास्थ्य विभाग द्वारा 28 जनवरी 2019 को जारी विभागीय पदों के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में नर्सेस के 3321 पद स्वीकृत हैं, जिसमें 2360 पद कार्यरत हैं, जबकि 961 पद रिक्त हैं। इनमें से कुछ पदों पर सरकार द्वारा भर्ती की प्रक्रिया की जा चुकी है। इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि प्रदेश में 2900 व्यक्तियों की सेवा में केवल एक नर्स कार्यरत है, जिसकी कमी का प्रत्यक्ष प्रमाण प्रदेश में इस महामारी काल में प्रदेशवासियों के समक्ष है, जो कि वर्तमान में प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं के ध्वस्त होने का प्रमुख कारण भी है। सतत विकास की अवधारणा एवं स्वास्थ्य सूचकांक के सुधार की दृष्टि से प्रदेश सरकार व स्वास्थ्य विभाग को इस क्षेत्र में बहुत अधिक कार्य करने की आवश्यकता है, क्योंकि प्रदेश में पर्याप्त संख्या में कुशल नर्सें, सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं और विशेष रूप से प्रदेश के दुर्गम ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य संस्थानों को सुदृढ़ करने में इन नर्सेस की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नर्सेस किसी भी स्वास्थ्य संस्थान की आधार होती हैं।

नर्स रोगी या पीडि़त व्यक्ति व स्वास्थ्य विशेषज्ञ डाक्टर के मध्य सेतु का कार्य करती है। डाक्टर या स्वास्थ्य विशेषज्ञ का कार्य रोगी को उसकी बीमारी के अनुसार उपचार करना होता है, परंतु उसके उपरांत उसकी उचित देखभाल करना नर्स का ही दायित्व होता है। उसका विवेकशील व्यवहार, संवेदनशीलता ही रोगग्रस्त व्यक्ति को रोगमुक्त होने के लिए संजीवनी का कार्य करती है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि हमारा समाज डाक्टर वर्ग को तो सम्मानित दृष्टि से देखता है, परंतु नर्स वर्ग की उपेक्षा खटकती है। मानव जीवन में एक नर्स की भूमिका मानव के जन्म समय की प्राथमिक देखभाल से लेकर मृत्यु के अंतिम क्षण तक पूर्ण सक्रियता के साथ रहती है। समाज के कुछ वर्ग नर्स के कार्य को अस्वच्छता की श्रेणी में रखते हैं, जिसके कारण इनके कार्य को हेय दृष्टि से भी देखते हैं व ऐसी मानसिक संकीर्णता का शिकार है कि स्वास्थ्य सेवाओं में कार्यरत लड़कियों विशेषकर नर्सों से शादी-विवाह जैसे सामाजिक संबंधों को लेकर संकुचित धारणा से ग्रस्त रहते हैं। शिक्षण एवं बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी महिला पेशेवरों की तुलना में नर्सों का कार्य अधिक चुनौतीपूर्ण है क्योंकि इनके लिए कोई भी स्थिति सरल व सहज नहीं होती है। असामयिक दुर्घटना, आगजनी या अन्य प्राकृतिक आपदा की स्थिति में इन्हें प्रत्येक क्षण नवीन चुनौती का सामना करना पड़ता है। इनके द्वारा थोड़ी सी लापरवाही भी पीडि़त व्यक्ति के लिए जानलेवा सिद्ध हो जाती है। आपदा और विकट परिस्थितियों का सामना इन्हें अनुशासन, सजगता, जीवटता के साथ करना पड़ता है। एक नर्स की विषम परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता अतुलनीय है। स्वास्थ्य संस्थानों की विविध सेवाओं में महिला वर्ग की संख्या वैश्विक स्तर पर 78 प्रतिशत है, जिसमें अधिकांश महिलाएं नर्स जैसे संवेदनशील पदों पर ही कार्यरत हैं।

वर्तमान में कोविड-19 के उपरांत कोविड-20 के इस अत्यधिक संक्रमण काल में महामारी की इस स्थिति में देश व प्रदेश में अधिकांश नर्सेस विश्व स्वास्थ्य संगठन के निर्धारित सुरक्षा मानदंडों के अभाव के विपरीत अपने कार्य को निरंतर बिना किसी अवरोध के समर्पित भाव से निर्वहन कर रही हैं व इस महामारी के सामाजिक संक्रमण से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण अपने जीवन तक को दांव पर लगा रही हैं। इस महामारी से निपटने में स्वास्थ्य सेवा के साथ-साथ संपूर्ण सामाजिक, प्रशासनिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिदृश्य को ही परिवर्तित कर दिया है। ऐसी विषम परिस्थिति में मानवता को सुरक्षित रखने में नर्सों व अन्य स्वास्थ्य कर्मियों का अद्वितीय योगदान प्रत्येक देशवासी के लिए अमूल्य है। नर्स का कार्य आवश्यक सेवा श्रेणी में आता है, जिस कारण प्रत्येक आपातकालीन स्थिति में इन्हें अपनी सेवा में उपस्थित रहना पड़ता है। इन विकट परिस्थितियों में कई बार असामाजिक एवं अराजक तत्त्वों द्वारा उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं। प्रदेश में श्रम अधिकारों की अवहेलना के कारण निजी स्वास्थ्य संस्थानों में अधिकांश नर्सें आर्थिक व मानसिक शोषण व उत्पीड़न का शिकार हो जाती हैं। उन्हें अल्प वेतन में अधिक कार्य करने के लिए बाध्य किया जाता है, जिससे निजी क्षेत्र में कार्यरत नर्सों में मानसिक तनाव, असुरक्षा व भय की भावना बनी रहती है। इस विकट परिस्थिति में मानवता के प्रति इनके द्वारा किया गया यह कार्य अनुकरणीय है। देश व प्रदेश की समस्त नर्सेस को, नर्सेस दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं हैं।

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