एनजीटी का टीडीएस सांद्रता के संबंध में आरओ प्यूरीफायर पर पाबंदी के आदेश पर पुनर्विचार से इनकार

नई दिल्ली, 25 अगस्त (ऐजेंसी/सक्षम भारत)। राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने अपने उस आदेश पर पुनर्विचार करने से इनकार कर दिया है जिसमें सरकार को निर्देश दिया गया था कि जिन क्षेत्रों में पानी में पूर्णतः घुले हुए ठोस पदार्थ (टीडीएस) की सांद्रता 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है वहां सरकार आरओ प्यूरीफायरों पर पाबंदी लगाए और लोगों को खनिज रहित पानी के दुष्प्रभावों से अवगत कराए। टीडीएस में अकार्बनिक लवण और कार्बनिक पदार्थ की अल्पमात्रा शामिल हैं। डब्ल्यूएचओ के अध्ययन के अनुसार 300 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम टीडीएस स्तर को शानदार माना जाता है जबकि 900 मिलीग्राम प्रति लीटर सांद्रता को खराब माना जाता है एवं 1200 मिलीग्राम से ऊपर की सांद्रता (पीने के लिए) अस्वीकार्य है। रिवर्स ऑस्मोसिस एक ऐसी जलशोधन प्रक्रिया है जो अणुओं को अर्धपारगम्य झिल्ली के पार भेजने के लिए दबाव के इस्तेमाल के माध्यम से प्रदूषक तत्वों को हटाती है। एनजीटी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि उसके 20 मई के आदेश में ऐसी कोई स्पष्ट त्रुटि नजर नहीं आती है जिसमें संशोधन या जिस पर पुनर्विचार की जरूरत है जैसा कि याचिका में मांग की गयी है। अधिकरण ने कहा कि उसने आदेश जारी करने से पहले याचिकाकर्ता के वकील समेत सभी पक्षों के वकीलों की बातें सुनी। समीक्षा याचिका के साथ ऐसा कोई मान्य दस्तावेज पेश नहीं किया गया जो यह दर्शाता हो कि जारी आदेश में किसी सुधार की जरूरत है। उसने कहा कि वाटर क्वालिटी इंडिया एसोसिएशन की समीक्षा याचिका में कोई दम नहीं है। ऐसे में वह खारिज किये जाने लायक है। अधिकरण ने उसके द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट पर गौर करने के बाद 20 मई को आदेश जारी किया था और पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को निर्देश दिया था। समिति ने कहा था कि यदि टीडीएस 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है तो आरओ प्रणाली उपयोगी नहीं है, बल्कि इससे तो महत्वपूर्ण खनिज पदार्थ पानी से निकल जाएगा और पानी की अनुचित बर्बादी होगी।