
-सनत जैन-
-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-
खुदरा महंगाई दर नवंबर में 5.9 फ़ीसदी रही है। पिछले कुछ माहों में पहली बार यह 6 फ़ीसदी से नीचे आई है। महंगाई दर कम होने की वजह सब्जियों के दाम कम होने से महंगाई दर औसत रूप में कम हुई है। सरकार द्वारा महंगाई के जो आंकड़े जारी किए जाते हैं। वह वास्तविकता से परे होते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि पिछले वर्षों में सरकार ने महंगाई को मापने के जो तरीके अपनाए हैं। समय-समय पर उनमे बदलाव किए गए हैं। उसके कारण भ्रम की स्थिति बनी रहती है। इस भ्रम का शिकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया भी होती हैं। क्योंकि जो आंकड़े उसके सामने रखे जाते हैं। उसी के हिसाब से वह निर्णय लेता है। जिसके कारण आम आदमी की आर्थिक कठिनाइयां बड़े पैमाने पर बढ़ती ही जा रही हैं।
रिजर्व बैंक ने पिछली तिमाहियों में लगातार ब्याज दरों में वृद्धि की है। जिसका असर अब औद्योगिक संस्थानों में स्पष्ट रूप से दिखने लगा है।महंगी ब्याज दर के कारण उत्पादन पर इसका असर पड़ा है। बढ़ते ब्याज के कारण लोगों की ईएमआई बढ़ी है। बाजार में उपभोक्ता वस्तुओं की मांग कम हुई है।बढ़ती हुई ब्याज दरों का असर थोड़ा विलंब से दिखता है। भारत को रुपए के मुकाबले डॉलर में भुगतान करने से आयातित महंगाई का सामना करना पड़ रहा है। जिस पर सरकार और रिजर्व बैंक का कोई नियंत्रण नहीं है। उपभोक्ता उत्पाद की मांग बाजार में लगातार 4 महीने से घट रही है। महंगाई के कारण लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं होने से उनकी क्रय शक्ति कम हो रही है।
खुदरा महंगाई में कमी आने का मतलब यह नहीं है कि आने वाले महीनों में गिरावट का यह सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। नवंबर माह में महंगाई की दर कम हुई है। उसमें मुख्य रूप से सब्जियों के दाम घटने के कारण महंगाई में कमी देखने को मिली है।जबकि इस महंगाई दर को मापने वाले बास्केट में खाद्य पदार्थ और ईंधन को शामिल नहीं किया जाता है। जो आम आदमी की सबसे पहली और मुख्य जरूरत होती है। यदि इसे जोड़ लिया जाए तो 6 फ़ीसदी से ज्यादा महंगाई की वृद्धि नवम्बर माह में भी देखने को मिलेगी।
वर्तमान स्थिति में सरकार को अब चुनावी मोड से बाहर आना चाहिए। अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने महंगाई और बेरोजगारी को नियंत्रित करने की दिशा में सरकार को ठोस निर्णय लेने की जरूरत है।यदि समय रहते इस दिशा में काम नहीं किया गया तो आगे चलकर आर्थिक स्थिति बड़ी भयावह हो सकती है। फिर इसको नियंत्रण कर पाना बहुत मुश्किल होगा। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष भी लगातार इस संबंध में चिंता जता रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का कहना है कि आर्थिक विकास दर अगले साल सबसे ज्यादा प्रभावित होगी जो आर्थिक मंदी का कारण बनेगी। वास्तविकता यह है कि महंगाई लगातार बढ़ रही है। लोगों की क्रय शक्ति कम होती जा रही है। खाद्य पदार्थ और रोजमर्रा के जीवन में खर्च लगातार बढ़ते चले जा रहे हैं। कर्जे की ईएमआई बढ़ रही है। लोगों के हाथ में पैसे नहीं हैं। सरकारी आंकड़े महंगाई कम होने का दावा करते हैं। जबकि वास्तविक रूप से आम आदमी महंगाई से लगातार परेशान हो रहा है। महंगाई घटने की बजाय लगातार बढ़ती ही जा रही है। आम आदमी आंकड़ों के इस खेल सेथोड़े समय के लिए तो प्रभावित हो सकता है। लेकिन वास्तविकता में जब दोनों से अलग होती है। तो लोगों का सरकार के ऊपर से विश्वास कम होता है। इस विश्वास को बनाए रखने की जिम्मेदारी सरकार और रिजर्व बैंक की है।