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एक और सांप्रदायिक हमला

-: ऐजेंसी/सक्षम भारत :-

हमने बीते कल ही सांप्रदायिक हिंसा, उन्मादी भीड़ और सौहार्द पर सवाल करता विश्लेषण छापा था। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ज्ञानवापी विवाद पर एक हिन्दूवादी बयान दे दिया, जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला 3 अगस्त को आना है। ज्ञानवापी के भीतर त्रिशूल, घंटियां, कुंड, स्वास्तिक आदि चिह्न दीवारों पर अंकित हैं। देव-प्रतिमाएं भी बनी हैं। योगी ने स्पष्ट कर दिया कि ज्ञानवापी मंदिर था अथवा मस्जिद है! ये तमाम ज्ञात तथ्य हैं, क्योंकि अदालत द्वारा नियुक्त दो कमिश्नरों के नेतृत्व में सर्वे कराए गए थे, लेकिन उन्हीं आधारों पर करीब 400 साल पुराना मंदिर-मस्जिद विवाद सुलझाया नहीं जा सकता। जाहिर है कि योगी के बयान के पीछे सांप्रदायिक मानसिकता काम कर रही थी, ताकि उसी आधार पर ध्रुवीकरण कराया जा सके। हमारा देश सांप्रदायिकता बनाम धर्मनिरपेक्षता में बंटा है। हालांकि उनके पैरोकारों को उनके मायने भी ज्ञात नहीं हैं। वे इन दो शब्दों, दो धारणाओं की स्पष्ट व्याख्या भी नहीं कर सकते। इसी दौरान हरियाणा के मेवात इलाके के नूंह जिले में सांप्रदायिक हिंसा ने उन्मादी नाच दिखाया। करीब 100 वाहन जला दिए गए। तोड़-फोड़ भी की। होम गार्ड के 2 जवानों समेत तीन की मौत हो गई। 50 से ज्यादा पुलिस अधिकारी, कर्मचारी और अन्य लोग घायल हुए हैं। कुछ की अवस्था गंभीर बताई गई है। उपद्रवियों ने दुकानों में लूटपाट और आगजनी की है।

नूंह की सीमाएं सील कर धारा 144 लागू करनी पड़ी है। सांप्रदायिक चिंगारियां गुरुग्राम, पलवल, सोहना, फरीदाबाद तक पहुंची हैं, लिहाजा उन इलाकों में भी अलर्ट चस्पां किया गया है। इंटरनेट और एसएमएस सेवाएं फिलहाल बुधवार 2 अगस्त, रात्रि 12 बजे तक, बंद की गई हैं। तीन अन्य जिलों से पुलिस बल मंगवाया गया है। अद्र्धसैनिक बलों की 20 कंपनियां भी तैनात की जा रही हैं। इलाके में सांप्रदायिक तनाव है। गोलीबारी और पथराव की घटनाएं रुक-रुक कर हो रही हैं। बेशक मेवात का इलाका एक ‘चक्रव्यूह’ की तरह है और यह ‘चक्रव्यूह’ मुसलमानों का बुना हुआ है। इलाके की करीब 80 फीसदी आबादी मुस्लिम है और शेष 20 फीसदी आबादी हिन्दुओं समेत अन्य समुदायों की है। मेवात साइबर अपराध का घेरेबंदी वाला अड्डा भी है। यहां की अल्पशिक्षित जमात साइबर अपराधों के जरिए लाखों की फिरौतियां वसूलती है, लेकिन ज्यादातर अपराधी कानून और पुलिस की गिरफ्त से बहुत दूर हैं। अहम और चिंतित सवाल तो यह है कि सांप्रदायिक हमला क्यों किया गया? भीड़ इतनी उन्मादी और जहरीली क्यों हो गई? यह फितरत कब बदलेगी? आखिर सांप्रदायिक उन्माद का सबब क्या है? दरअसल सावन के महीने में भगवान शंकर की शोभा-यात्रा हर साल निकाली जाती है। विश्व हिन्दू परिषद, बजरंग दल और मातृशक्ति दुर्गा वाहिनी सरीखे हिन्दू संगठनों की ‘ब्रजमंडल यात्रा’ में शिरकत भी एक परंपरा है।

इस बार शोभा-यात्रा पर जो पथराव किया गया, सांप्रदायिक हमला किया गया, वह ‘अभूतपूर्व’ था। यह विश्लेषण भी किया जा रहा है कि हरियाणा के भिवानी में जिन दो मुस्लिम युवाओं को जला कर मार दिया गया था और मोनू मानेसर को मुख्य आरोपित तय किया गया था, यह हमला नासिर-जुनैद की हत्या का प्रतिशोध था। मृतक मुस्लिम नौजवानों पर गो-तस्करी का आरोप था। एक वीडियो के जरिए प्रचारित किया गया था कि मोनू मानेसर भी शोभा-यात्रा में शामिल हो सकता है, लिहाजा हमले की व्यूह-रचना पहले से ही तैयार की गई। मोनू नहीं आया और न ही पुलिस अभी तक उसे दबोच चुकी है। उसे संघ परिवार का खुला समर्थन हासिल है। पुलिस कैसे हाथ डाल सकती है? राज्य में भाजपा सरकार है। बहरहाल ऐसी सांप्रदायिक हिंसा और हत्यारे हमलों के मद्देनजर सवाल वहीं अटका रहता है कि हिन्दू-मुसलमान के दरमियान इतनी नफरत, इतना विभाजन क्यों है, जबकि दशकों से वे साथ-साथ जी रहे हैं? उनके दरमियान सामाजिकता भी है, वे एक ही देश के नागरिक हैं।

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