
-राजेश माहेश्वरी-
-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-
केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हरियाणा-यूपी से लगती दिल्ली की सीमा पर किसानों का विरोध प्रदर्शन जारी है। इन कानूनों को लेकर किसानों की सरकार संग 11 दौर की वार्ता हुई, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। गणतंत्र दिवस पर किसानों ने प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली निकाली। जो किसान गणतंत्र दिवस से पूर्व दिल्ली के रिंग रोड पर ट्रैक्टर मार्च निकालने के लिए दिल्ली पुलिस से इजाजत मांग रहे थे। उन किसान प्रदर्शनकारियों ने बैरिकेड्स तोड़े, तय रूट के बजाय अलग रास्ता पकड़ा। सारी सीमाएं लांघते हुए लाल किले जैसे ऐतिहासिक स्थल पर कब्जा जमा लिया। लाल किले पर कब्जा जमाने के बाद उग्र किसानों ने उस जगह अपने झंडे फहरा दिए जहां सिर्फ देश का तिरंगा फहरता था। लालकिले की प्राचीर पर प्रदर्शनकारियों द्वारा दूसरा झंडा लगाना राष्ट्रीय झंडे का अपमान है। लाल किले पर इस तरह के झंडे फहराना किस तरह के लोकतंत्र का परिचय देता है? वे कौन से अधिकार हैं जिसने किसानों को हिंसा करने को अधिकृत कर दिया? ये कैसे अन्नदाता हैं जो हमलावर की तरह वार कर रहे हैं? ये घटना सीधे तौर पर देश के सत्ता, संविधान, संप्रभुता और लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनौती है। किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी इस कृत्य की जितना निंदा की जाए उतना ही कम है। ट्रैक्टरों पर तेज आवाज के स्पीकर लगाए उपद्रवी ट्रैक्टरों के जरिए लाल किला परिसर में उपद्रव मचाते रहे। कोई ट्रैक्टरों को गोल-गोल घुमा रहा था तो कोई लाल किला प्राचीर के आगे ट्रैक्टर से करतब दिखा रहा था। वहीं, तलवार बाजी के जरिए लाल किला प्राचीर और मैदान में जमकर करतब दिखाए जा रहे थे। ट्रैक्टरों और ट्रकों पर चढ़कर सेल्फी खींची जा रही थी। और केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी की जा रही थी। हिंसक भीड़ ने लाल किले पर तैनात पुलिसवालों पर लाठी-डंडों से हमला कर दिया। जान बचाने के चक्कर में कई जवान 15 फीट ऊंची दीवार से गिर गए। तो कई को हमलावरों से बचने के लिए कूदना पड़ा। इसका एक वीडियो सामने आया है। इस ट्रैक्टर परेड हिंसा में अब तक 86 पुलिसकर्मी घायल, कई पुलिसकर्मियों की हालत गंभीर बताई जा रही है, 45 पुलिसकर्मियों को अस्पताल में कराया भर्ती, सिविल लाइन अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती, 18 पुलिसकर्मी लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल में भर्ती कराया गया। पुलिस का दावा है कि दिल्ली में हुई हिंसा में कुल 300 पुलिसकर्मियों को चोटें आईं और वे घायल हुए हैं। इतना सारे उपद्रव, हिंसा होने के बाद, दिल्ली पुलिस के 86 पुलिस अधिकारी घायल होने के देखने के बाद भी चंद मीडिया हाउस बोल रहे हैं कि यह किसानों का शांतिपूर्ण आंदोलन था..!
26 जनवरी की घटना से यह साफ हो चुका है कि ‘टैक्टर परेड’ का किसान आंदोलन से कोई सरोकार नहीं। महज शक्ति-प्रदर्शन और सरकार को झुकाने की रणनीति है। हम भी किसानों को ‘अन्नदाता’ के अलावा देशभक्त भी मानते हैं। उनके बेटे-भाई सीमाओं पर देश की रक्षा में तैनात हैं, तो उसी गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा और संप्रभुता की सीमाओं को क्यों लांघा जा रहा है? गणतंत्र आंदोलनकारी जमात का भी है। उसे संवैधानिक अधिकार हैं, लिहाजा धरने-प्रदर्शन और मोदी सरकार को गालियां देने के सिलसिले जारी हैं। बेशक यह अधिकारों का अवैध अतिक्रमण है और एक सशक्त, परिपक्व गणतंत्र को बदनाम करने की मंशा है। अधिकारों के साथ-साथ दायित्वों का भी एहसास होना चाहिए। किसान अपने गांव, कस्बे, जिले में भी गणतंत्र दिवस का पर्व मना सकते थे। सवाल यह भी है कि अपनी मांगे मनवाने के लिए देश के किसानों ने गणतंत्र के 71 सालों में राजधानी में ‘ट्रैक्टर परेड’ कब निकाली थी? तो इसी बार अराजकता फैलाने, सुरक्षा को तार-तार करने अथवा दुश्मन की साजिशों को साकार करने का दुस्साहस क्यों किया गया? गणतंत्र दिवस पर देश की वैश्विक छवि को कितना गहरा धक्का लगा, ये शायद ही किसी प्रदर्शनकारी ने नहीं सोचा होगा। क्या किसानों की ट्रेक्टर परेड से सरकार के साथ उनकी मांगों का गतिरोध समाप्त हो गया है? देश अपने किसानों की इज्जत करता है। उनके प्रति सहानुभूति भी रखता है, लेकिन देश ये कतई बर्दाश्त नहीं करेगा कि कोई उस किसान को सहारा बनाकर देश की प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करे। 26 जनवरी को जब देश पूरी दुनिया के सामने अपनी ताकत दिखा रहा था, तब किसानों को देश की सरकार ने इंटेलिजेंस इनपुट को अनदेखा करके जवानों के समानांतर मौका दिया। सरकार ने किसान नेताओं के दावों पर भरोसा किया। किसान नेताओं ने वादे किए, लेकिन निभा नहीं पाए। गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़कों से लेकर लाल किले तक चले किसानों के हिंसक आंदोलन के बाद किसान नेता राकेश टिकैत का एक वीडियो सामने आया है। इस वीडियो में टिकैत किसानों से लाठी-डंडा साथ रखने की बात कर रहे हैं। वीडियो में राकेश टिकैत ये कहते दिखाई दे रहे हैं कि किसानों से उनकी जमीन छीन ली जाएगी। सरकार मान नहीं रही है और अब सब आ जाओ, अपनी जमीन नहीं बच रही। एक तरफ कुछ किसान नेता दिल्ली में हुए उपद्रव को दुर्भाग्यपूर्ण बता रहे हैं तो कुछ का कहना है कि उनका उपद्रव करने वालों से कोई लेना देना नहीं है और न ही वे उनके संगठन से हैं। नेता क्या प्रदर्शन में सबसे पीछे चलता है या आंख, मोबाइल बंद रखकर खून खराबा होने देता है? योगेन्द्र यादव, राकेश टिकैत, हन्नान मुल्ला जैसे लोगों पर देश द्रोह का मुकदमा दर्ज करना चाहिए। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस व इन नेताओं में क्या फर्क है। यह लोकतंत्र है, भविष्य के लिए यह सबक है कि वार्ता या समझौता केवल चुने प्रतिनिधि से होना चाहिए, जमानत जब्त हुए नेताओं से नहीं?
लोकतंत्र में इस प्रकार की घटनाओं के लिए कोई स्थान नहीं है। ये हिंसा देश में अराजकता फैलाने की सुनियोजित साजिश है। खून खौलाने वाली एक-एक तस्वीर देखकर यहीं अहसास होता है कि ये सब राष्ट्र विरोधी, अर्बन नक्सल और आतंकवादी ही कर सकते है। नक्सली दिमाग के इन घृणाजीवियों को अब नहीं बख्शा जा सकता और हिंसा करने वालों के खिलाफ कठोर कार्यवाही जरूरी है। आंदोलनकारियों पर पहले भी खालिस्तान समर्थक होने के आरोप लगते रहे हैं। वहीं दिल्ली पुलिस ने किसान आंदोलन के समर्थन में पाकिस्तान से चल रहे 300 से अधिक ट्विटर एकाउंट को भी सर्विलांस किया था। उपद्रवियों ने लाल किले पर कब्जा कर राष्ट्रीय ध्वज के स्थान पर विशेष निशान वाले झण्डे को फहराकर कहीं न कहीं उन पर लग रहे आरोपों को सही सिद्ध कर दिया है। किसान आंदोलन में शरजील इमाम, उमर खालिद और वरवरा राव के पोस्टर गलती से नहीं लगे थे। आज तो पूरे देश ने देख लिया किसानों के नाम पर आंदोलन करने वाले शरजील-उमर खालिद जैसे दंगाईयों के ही चेले हैं। ये आजाद भारत के सबसे शर्मनाक दिनों में से एक है। किसानों को इस अंादोलन और इसके इरादे समझने चाहिए। वास्तव में किसानों की आड़ में तमाम देश विरोधी ताकतें अपना एजेण्डा चला रही हैं। तिरंगा हमारे राष्ट्रीय सम्मान का प्रतीक है, तिरंगे का अपमान देश स्वीकार नहीं करेगा।