EducationPolitics

कोरोना की दूसरी लहर में खेल प्रशिक्षण

-भूपिंद्र सिंह-

-: ऐजेंसी सक्षम भारत :-

विश्व के विकसित देशों ने इस आपदा कोरोना के आगे घुटने टेकने के बाद काफी हद तक काबू पा लिया है। हमारा देश पिछले साल मार्च के बाद लॉकडाउन में बहुत कठिनाई से जीवन यापन को आगे बढ़ाता रहा है। हां बीच के कुछ महीनों में ऐसा जरूर लगा कि सब कुछ सामान्य हो गया है, मगर पिछले एक महीने से देश में एक बार फिर कोरोना की दूसरी लहर ने हाहाकार मचा दिया है। उत्तर भारत के अन्य राज्यों की तरह हिमाचल प्रदेश ने भी अपने यहां फिलहाल अगले दस दिनों तक लॉकडाउन लगा दिया है। सामाजिक दूरी व भीड़ में मास्क लगाने के सिद्धांत से भारत इस महामारी से लड़ रहा है, मगर देश के राजनीतिक दलों ने इस सबकी हाल में हुए चुनावों में धज्जियां उड़ा दी हैं। अब देश में कोरोना का प्रकोप सबके सामने है। ऐसे में शिक्षण व प्रशिक्षण संस्थानों का उस समय तक खुलना बहुत कठिन है जब तक स्थिति सामान्य नहीं हो जाती है। पूरे देश की तरह हिमाचल प्रदेश में भी मोबाइल पर इंटरनेट के माध्यम से कुछ-कुछ शिक्षण तो शुरू हो गया है, मगर विद्यार्थियों की फिटनेस व अन्य गतिविधियों के लिए संस्थान के पास कोई भी कार्यक्रम नहीं है।

इस महामारी के कारण विभिन्न खेलों के प्रशिक्षण कार्यक्रम बहुत बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। अंतरराष्ट्रीय खेल प्रतियोगिता के लिए तैयारी करने के लिए आठ से दस वर्षों का समय चाहिए होता है। खेल प्रशिक्षण कार्यक्रम लगातार कई वर्षों तक चलने वाली प्रक्रिया है। इस आपदा के जल्द खत्म होने के आसार नजर नहीं आते हैं। ऐसे में खेल प्रशिक्षण सामाजिक दूरी के सिद्धांत की पालना करते हुए कैसे जारी रहे, इस पर सोचना बहुत जरूरी हो जाता है। खेल प्रशिक्षण के मुख्य तीन घटक स्पीड, स्ट्रैंथ व इंडोरैंस हैं। इन तीनों घटकों के साथ-साथ लचक व फुर्ती के लिए भी शारीरिक क्रियाओं को करना पड़ता है, तभी अच्छे खेल परिणाम आ पाते हैं। विभिन्न खेलों के लिए अलग-अलग प्ले फील्ड चाहिए होती हैं। मगर खेल प्रशिक्षण के शुरुआती दौर में खिलाडि़यों को जनरल फिटनेस की जरूरत होती है। उसके लिए खेल प्रशिक्षण के मुख्य घटकों पर कार्य करना होता है। स्पीड व इंडोरैंस के प्रशिक्षण के लिए अच्छे मैदानों की जरूरत पड़ती है। स्ट्रैंथ, लचक व फुर्ती की क्रियाओं के लिए जिम व किसी वेट ट्रेनिंग हाल की जरूरत होती है।

अब आने वाले दिनों में खिलाडि़यों का शारीरिक प्रशिक्षण घर के कमरे से आंगन तक ही सीमित होकर रह जाएगा। एक वर्ष के प्रशिक्षण को हम ट्रांजिशन, प्रैपरेशन एक, दो तथा तीन के बाद फिर प्री कम्पीटीशन व कम्पीटीशन सीजन में बांट कर तैयारी करते हैं। ट्रांजिशन सीजन में पूरे वर्ष की गई ट्रेनिंग की थकावट को दूर करने के लिए मुख्य खेल से दूर रह कर विभिन्न प्रकार की आसान शारीरिक क्रियाओं को मनोरंजन के लिए करते हैं। इस सीजन की अवधि चार सप्ताह तक होती है। अगर अब तक बीते समय को ट्रांजिशन सीजन मान लिया जाता है तो अब प्रैपरेटरी सीजन में जाने के लिए सवेरे-शाम खेल मैदानों की जरूरत होगी। सरकार को चाहिए कि इस लॉकडाउन के बाद सामाजिक दूरी को मद्देनजर रखते हुए एक-एक घंटे के लिए सीमित संख्या में खिलाडि़यों को मैदान व स्टेडियम का पास जारी किया जाए ताकि वे अपना प्रशिक्षण सुचारू रूप से जारी रख सकें। खिलाडि़यों को भी चाहिए कि वे इस समय इंडोरैंस विकसित करने के लिए शहर में रहने वाले शहर की सड़कों व देहात में रहने वाले ग्रामीण इलाकों की सड़कों व वन क्षेत्र के रास्तों का उपयोग करें। इससे सामाजिक दूरी के सिद्धांत का पालन भी हो जाएगा और खिलाडि़यों की ट्रेनिंग का भी प्रबंध हो जाएगा। इस समय की नजाकत को देखते हुए खिलाडि़यों को अपने स्वास्थ्य के लिए आहार का भी विशेष ध्यान रखना होगा। कोरोना के कारण मांस खाने से भी खिलाड़ी परहेज कर रहे हैं। खिलाड़ी के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है।

प्रोटीन की कमी को पूरा करने के लिए गेहूं, दालों, दूध व उससे बने पदार्थ तथा सूखे मेवों को ठीक से समय-समय पर खाना चाहिए। इस सीजन में पेड़ पर ठीक ढंग से पके फलों की कमी आम बात है। समय से पहले पेड़ से तोड़े गए फलों में से बहुत पोषक तत्त्व नष्ट हो गए होते हैं। ये लाभ की जगह खाने वालों की हानि अधिक करते हैं। फलों की कमी को किसी हद तक पूरा करने के लिए मेवों को दस घंटों तक भिगो कर खाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश में अधिकांश लोग गांवों में रहते हैं। कुश्ती, जूडो व मुक्केबाजी आदि सीधे दो खिलाडि़यों के बीच संबंध वाले खेल हैं। जहां कोई नया व्यक्ति बाहर से नहीं आया है, वहां पर हम सीधे संबंध वाले खेलों में भी खिलाडि़यों के बीच प्रशिक्षण की अनुमति दे देनी चाहिए। प्रदेश के आम नागरिकों व विद्यार्थियों को भी इस समय अपने घर-आंगन में ही अपनी सामान्य फिटनेस के लिए शारीरिक क्रियाओं को जरूर करना चाहिए, मगर उन्हें इस समय अपनी सामान्य फिटनेस के लिए खेल मैदानों में भीड़ बढ़ाने नहीं जाना चाहिए। वहां पर राज्य व राष्ट्रीय स्तर के खिलाडि़यों के लिए मौका देना चाहिए। तभी हम अपने भविष्य के विजेता खिलाडि़यों को उनकी लगातार प्रशिक्षण तैयारी में अपना योगदान दे सकते हैं। बहुत ज्यादा प्रदूषण व अनियमित आहार-विहार के कारण भविष्य में हमें किसी भी ऐसी चुनौती का सामना करने के लिए अपने में जरूरी बदलाव कर तैयार रहना होगा, तभी हम सब सामान्य जीवन में एक बार फिर से जी सकेंगे और जब सब कुछ सामान्य होगा, तभी हम उत्सवों व खेलों के बारे में सोच सकते हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker