वाह लखनऊ विकास प्राधिकरण! बड़ा खेल, बड़े सवाल
लखनऊ में अवैध निर्माण के खिलाफ जोर-शोर से अभियान चलाया जा रहा है। जगह-जगह बुलडोजर गरज रहे हैं, सीलें लगाई जा रही हैं, और हर कार्रवाई की तस्वीरें बड़े गर्व से खींची जा रही हैं। देखने वालों को लगेगा कि लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने शहर से अवैधता मिटाने की कसम खा ली है। लेकिन अगर आप ज़रा गहराई में जाएं, तो यह अभियान कम और नाटक ज़्यादा लगता है।
छोटों पर भारी, बड़ों पर नरमी
अभियान की सबसे दिलचस्प बात यह है कि बुलडोजर का गुस्सा केवल छोटे-मोटे मकानों और दुकानों पर निकल रहा है। ऐसे लोग जिनके पास ना तो मोटी जेब है, ना ऊंचे संपर्क, उनकी संपत्तियां मिनटों में मलबे में तब्दील हो जाती हैं। वहीं दूसरी ओर, बड़े-बड़े धनपशुओं के आलीशान महलों और ऊंची इमारतों को देखकर लगता है कि बुलडोजर की हिम्मत भी जवाब दे जाती है।
ऐसा प्रतीत होता है कि प्राधिकरण ने अनजाने में ही एक ‘धनपशु इम्युनिटी प्रोग्राम’ शुरू कर दिया है। नियम केवल कमजोरों पर लागू होते हैं। जिनकी जेबें भरी हुई हैं और जिनके पास रसूख है, उनके खिलाफ कार्रवाई या तो ‘सॉरी’ कहकर छोड़ दी जाती है या फिर मामूली जुर्माने के साथ मामला रफा-दफा हो जाता है।
छोटे निर्माणों को ध्वस्त करने के बाद अधिकारियों के फोटोशूट का सिलसिला देखने लायक है। सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें डाली जाती हैं, जैसे कि शहर से भ्रष्टाचार और अवैधता का खात्मा कर दिया गया हो। पर सवाल उठता है कि क्या छोटे निर्माणों को गिराकर ही प्राधिकरण अपनी सफलता की कहानियां लिखेगा?
बड़े नामों की चुप्पी का राज़
शहर के बड़े नाम और रसूखदार लोगों की अवैध इमारतें क्यों कार्रवाई से बची हुई हैं? क्या प्राधिकरण की नजरें जानबूझकर उन इमारतों से हट जाती हैं, या फिर यह कोई अनकहा समझौता है?
लखनऊ के लोग यह समझने में नाकाम हैं कि यह अभियान वाकई सुधार लाने के लिए है या केवल एक दिखावा। आखिरकार, जब तक बड़े और रसूखदार नामों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह सब सिर्फ एक नाटक ही माना जाएगा।
लखनऊ की जनता आज भी उस दिन का इंतजार कर रही है, जब एलडीए का बुलडोजर वाकई उन बड़े धनपशुओं की दीवारों को गिराएगा, जिन्होंने कानून को अपनी जेब में रखा हुआ है। पर तब तक यह अभियान ‘वाह भाई वाह!’ के सिवा कुछ और नहीं लगता।
लखनऊ, आप तैयार रहिए! शायद अगला फोटोशूट आपके मोहल्ले में ही हो!